नई दिल्लीः केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना, न केवल धान, गेहूँ या दलहन, तिलहन के क्षेत्र में कार्य कर रहा है बल्कि फसल विविधीकरण, पशुधन विकास, मत्स्य प्रबंधन, जल प्रबंधन, बागवानी, कृषि-वानिकी तथा मृदा विज्ञान के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य कर रहा है। आईसीएआर – पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना का उद्धेश्य सातों पूर्वी राज्यों में टिकाऊ खेती के लिए कार्य करना है जिसका भौगोलिक क्षेत्रफल मात्र 22.5 प्रतिशत है जबकि जनसंख्या 34 प्रतिशत है। इसी प्रकार, कुल पशुधन का 31 प्रतिशत पशुधन भी इस क्षेत्र में पाया जाता है। श्री राधा मोहन सिंह ने यह बात आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के 18वें स्थापना दिवस के अवसर पर कही।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि पूर्वी भूभाग पर पूरे देश की खाद्य सुरक्षा निर्भर करती है। गांगेय क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण पूरे देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सक्षम है। इसी क्रम में पूर्वी पठारी भूभाग दलहन, फलों, सब्जियों की पैदावार बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है। श्री सिंह ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में पूर्वी क्षेत्र चावल, सब्जी एवं मीठे जल की मछलियों के उत्पादन में अग्रणी है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर चावल, सब्जी एवं मछली उत्पादन में क्रमशः 50 प्रतिशत, 45 प्रतिशत एवं 38 प्रतिशत की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है। यदि इस क्षेत्र के समुचित विकास पर ध्यान दिया जाए तो यह क्षेत्र अनाज के साथ दलहन, तिलहन, फल-सब्जियों, दुग्ध एवं मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि यांत्रिकीकरण, जलवायु परिवर्तन का खेती पर दुष्प्रभाव, आर्द्र भूमि की अधिकता, अत्यधिक जनसंख्या घनत्व, भूमिहीन किसानों की आजीविका, 100 लाख हेक्टेयर, परती भूमि का विकास एक महत्वपूर्ण चुनौती है जिसपर पूरे जोर-शोर से कार्य करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार भूजल, जो कि पूर्वी क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, परंतु भूजल दोहन ऊर्जा की कमी के कारण बहुत कम मात्रा में किया जा रहा है। केंद्र सरकार में उर्जा उत्पादन की बढोत्तरी तथा घरों को बिजली के अलावा खेती के लिए अलग से देश के किसानों के लिए पर्याप्त राशि की व्यवस्था के कारण इस समस्या से भी शीघ्र निदान मिलेगा।
श्री सिंह ने कहा कि आईसीएआर द्वारा समेकित फार्मिंग प्रणाली पर गहन शोध व तकनीकी सृजन तथा प्रसार के लिए मोतिहारी में एक नये शोध केन्द्र की स्थापना की गयी है एवं छह वैज्ञानिकों की नियुक्ति भी की गई है। पटना, पूसा, सबौर, मधेपुरा, कैमुर एवं बक्सर में समेकित कृषि प्रणाली मॉडल का विकास किया गया है। ये मॉडल खाद्य एवं पोषण सुरक्षा एवं आय बढ़ाने में सहायक होगें। राज्य में करीब 1450 किसानों ने समेकित कृषि प्रणाली को अपनाया है जिससे उनको प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष 1.8 से 2.5 लाख तक आमदनी हुई है। श्री सिंह ने कहा कि कृषि के साथ अन्य विकल्पों जैसे डेयरी, मत्स्य, मधुमक्खी, रेशम, मशरूम, फसल प्रसंस्करण व मूल्य संवर्द्धन आदि के उचित उपयोग से कृषक अतिरिक्त रोजगार दिवस व आमदनी अर्जित कर सकेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि बिहार एवं झारखंड प्रदेश के लिए प्रगतिशील कृषक डेटा बेस तैयार किया गया है जिसमें कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में कृषकों द्वारा किये गये कार्य की जानकारी दी गई है ताकि अन्य कृषक इन जानकारियों का लाभ उठा सके एवं उस कृषक से संपर्क स्थापित कर सके।