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इस्लाम ने महिलाओं को सभी अधिकार दिये हैं लेकिन समाज उन्हें अधिकारों से वंचित कर देता है: मौलाना कल्बे जवाद नकवी

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: मरहुमा मरजिया बेगम के चालीसवें की मजलिस को इमामे जुमा मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों के विषय पर मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि इज्जत अच्छे किरदार और अखलाक से मिलती है,बडा पद और अधिक धन की बिना पर मिलने वालीह इज्जत की आयु कम होती है।जब तक पद और धन व्यक्ति के पास होता है तब तक उसकी बडी इज्जत होती है लेकिन पद और धन के समाप्त होने के बाद सम्मान भी समाप्त हो जाता है,इसलिए ऐसे सम्मान की कोई कीमत नहीं होती जो कभी हो और कभी न हो। अगर इंसान अल्लाह की खुशी और तकवे को अपनाये तो वह उसकी इज््जत भी हमेशा होती है।मोलानाने तकवे की व्याख्या करते हुए कहा कि तकवा का अर्थ हैं कि इंसाऩ में एकांत में अल्लाह से डरता रहे क्योंकि मनुष्य एकांत में पाप अधिक करता है,जब कोई नहीं देख रहा हो तब भी यह विश्वास हो कि कोई देख रहा यही तकवा है।मौलाना ने अधिक व्याख्या करते हुए कहा कि तकवा शरीर की सिफत नही है बल्कि आत्मा की सिफत है, बल्कि यूं कहा जाये कि सभी गुण और कमालात का संबंध आत्मा से होता है,सखावत,सब्र, धैर्य और साहस व बहादुरी जैसे गुणों व कमालात का संबंध मानव की आत्मा से होता ह,यदि बहादुरी शरीर की सिफत होती तो हर लंबा चैड़ा और डील डोल वाला व्यक्ति बहादुर होता लेकिन चूँकि बहादुरी आत्मा विशेषण है इसलिए बहादुरी का संबंध डील डोल और लंबे-चैड़े शरीर से नहीं होता।

मौलाना ने कहा कि आत्मा पुरुष और महिला में एक ही है इसलिए जो कमालात और सिफात पुरुष में हो सकते हैं वही स्त्री में भी हो सकते हैं। इसलिए यह कहना कि स्त्री पुरूष से कम है या वे गुण स्त्री में नहीं हो सकते जो पुरूष में हो सकते हैं गलत है। मौलाना ने मौजुदा हालात और महिलाओं के अधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा कि इस्लाम ने औरत और पुरुष को समान अधिकार दिए हैं लेकिन समाज उन्हें अधिकारों से वंचित कर देता है,यदि निकाह के वक्त सभी शर्तें सुरक्षित कर दी जाएं तो बाद के लिए कोई कठिनाई ही न आए,लेकिन हमारा समाज इन शर्तों को बुराई समझता है।मौलाना ने अधिक वर्णन करते हुए कहा कि तलाक तो अलग मुद्दा है अगर महिला राजी ना चाहे तो निकाह भी नही हो सकता क्योंकि निकाह बिना महिला की सहमति के नहीं हो सकता। जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम में चार शादियों की अनुमति है उन्हें पता होना चाहिए कि शादी बिना महिला की अनुमति के नहीं हो सकती, अगर महिला यह जानती हैं कि जिस पुरुष से वह निकाह कर रही है उसकी पहले से कोई पत्नी मौजूद है तो वह शादी की अनुमति ही क्यों दे रही है? अगर वे अनुमति देती है तो गलती महिला की है नाका पुरुष दोषी है।

मजलिस के अंत में मौलाना ने मरहुमा मरजिया बेगम की सिफात और कौमी दर्दमंदी का जिक्र करते हुए कहा कि मरहुमा मरजिया बेगम हर हाल में रजी रहीं,जब गरीबी का आलम था तब भी उनके माथे पर शिकन नहीं आई और न जुबान पर शिकायत आई और जब अच्छे हालात हुये तब भी उनके स्वभाव और रहन-सहन मंे कोई परिवर्तन नहीं आया। उन्होंने हमेशा अजादारी आंदोलन और वक्फ आंदोलनों में अपनी औलाद को भेजा और कभी मना नहीं किया।उनका त्याग कभी भूला नही जा सकता। आखरि मजलिस में मौलाना ने जनाबे मुस्लिम बिन ओसजाह और उनके कमसिन पुत्र की शहादत का वाकया बताते हुए महिलाओं की महानता और अजमत को स्पष्ट किया।

मरहुमा मरजया बेगम की मजलिस चेहलुम मंे विद्वानों और ओलमा ने बड़ी संख्या में भाग लिया।मजलिस में मौलाना डॉ0 सैयद कल्बे सादिक नकवी, मौलाना रजा हुसैन, पूर्व राज्यपाल सिब्ते रजी, श्री स्वामी सारंग, मौलाना हबीब हैदर, प्रोफेसर कमलुद्दीन अकबर, मौलाना मिर्जा जाफर अब्बास, मौलाना सैफ अब्बास नकवी, मौलाना मोहम्मद इसहाक,जनाबा अब्दुुंनसीर नासिर, जगरन के संपादक श्री अशतोश शुक्ला, श्री तारिक खान और अन्य विद्वान और सदस्या उपस्थित रहे।शकील हसन शमसी संपादक डेली इन्किलाब और मरहुमा के अन्य बेटो एवं पसमानदगान ने मजलिस के बाद सभी का धन्यवाद किया।

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