विषय-सतत वैश्विक ऊर्जा भविष्य
यहां इस ओपेक फोरम में आप सभी से मिलकर मैं वास्तव में अत्यंत प्रसन्न हूं। मैंने इससे पहले वर्ष 2015 में इस फोरम में शिरकत की थी। हाल के वर्षों की तुलना में यह साल एक प्रमुख क्रेता देश द्वारा अपने दृष्टिकोण को पेश करने की दृष्टि से संभवतः कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ऊर्जा विजन के ये चार स्तम्भ हैं-ऊर्जा तक पहुंच, ऊर्जा की दक्षता, ऊर्जा की निरंतरता और ऊर्जा की सुरक्षा। एक स्थिर ऊर्जा भविष्य के लिए ऊर्जा की निरंतरता को अन्य तीन स्तम्भों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। भारत ने पेरिस समझौते के प्रति अत्यंत मजबूत प्रतिबद्धता दर्शाई है और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को बढ़ावा देने में अगुवाई की है। तेल एवं गैस क्षेत्र में हमने ‘यूरो IV’ मानकों को अपनाया है, हमने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ‘यूरो 6’ मानकों पर अमल शुरू किया है और अब हम अप्रैल, 2020 तक पूरे भारत में ‘यूरो 6’ को अपनाने की तैयारी में हैं। जैव ईंधनों को बढ़ावा देना, ऊर्जा की दक्षता और गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होना भी हमारी प्राथमिकताएं हैं।
चूंकि इस फोरम में उत्पादक एवं उपभोक्ता देशों के मंत्रिगण और उद्योग जगत की अनेक हस्तियां शिरकर कर रही हैं, इसलिए सतत मूल्य निर्धारण पर विचार-विमर्श करने की दृष्टि से यह बिल्कुल सही फोरम है। तेल एवं गैस वैसे तो व्यापार से जुड़ी वस्तुएं हैं, लेकिन यह बुनियादी आवश्यकता भी है। चाहे आम आदमी का रसोई घर हो अथवा कोई विमान, ऊर्जा अत्यंत आवश्यक है। पूरा विश्व ऊर्जा की कीमतों में लंबे समय तक तेज उतार-चढ़ाव के साथ-साथ ऐसे ठोस कदमों का भी साक्षी रहा है, जो बाजार के बुनियादी तत्वों से अलग रहे हैं। अब समय आ गया है कि पूरी जवाबदेही के साथ इस तरह का मूल्य निर्धारण किया जाए, जिससे कि उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के ही हितों में संतुलन स्थापित हो जाए। हमें तेल एवं गैस दोनों ही के लिए पारदर्शी एवं लचीले बाजारों की ओर उन्मुख होने की भी जरूरत है।
हम तेल एवं गैस के क्षेत्र में अक्सर ऐसी वैश्विक व्यापारिक प्रथाओं से रू-ब-रू होते हैं, जो ऊर्जा तक पहुंच और किफायती ऊर्जा सुलभ कराने में योगदान नहीं कर रही हैं और इस तरह से ऊर्जा की निरंतरता में बाधक साबित हो रही हैं। तेल एवं गैस के मूल्य अब भू-राजनीति की अनिश्चितताओं के अधीन हो गए हैं। कभी आंतरिक, तो कभी बाह्य राजनीतिक हालात के कारण कुछ देशों में उत्पादन घट जाता है। हम ओपेक और इसके सदस्य देशों से इस तरह की प्रतिबद्धता की उम्मीद करते हैं, जिसके तहत वे कीमतों में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन में कमी को पाटने हेतु अपेक्षा से कहीं ज्यादा ठोस कदम उठाएंगे।
वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़कर उस तर्कसंगत सीमा से ऊपर चली गई हैं जो पूरी दुनिया, विशेषकर भारत जैसे देश के लिए जायज है, जबकि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को नई गति प्रदान करने वाला एक मुख्य वाहक है। इन कीमतों की वजह से पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था में दबाव बढ़ता जा रहा है, क्योंकि इसके चलते भारत में हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पहले से ही व्यापार युद्ध, भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और यूरो क्षेत्र में फिर से अस्थिरता द्वारा पैठ बनाने के खतरों से जूझ रहा है। अतः कच्चे तेल की कीमतें यदि निरंतर मौजूदा स्तरों पर ही टिकी रहीं, तो पहले से ही सुस्त चल रही वैश्विक आर्थिक विकास दर और भी नीचे आ जाएगी। मुझे इस बात का अंदेशा है कि इस वजह से दुनिया के अनेक हिस्सों में ऊर्जा की किल्लत बढ़ जाएगी।
वैसे तो हम इस बात के पक्ष में नहीं हैं कि कच्चे तेल की कीमतें घट कर 30 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ जाए, लेकिन हम इसके मौजूदा उच्च मूल्य के भी पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि इससे हमारा राजकोषीय संतुलन बिगड़ जाता है और हमारी विकास प्रक्रिया कमजोर पड़ने लगती है। इससे विशेषकर विकासशील एवं अल्प विकसित देशों के नीचे तबकों के लोगों की मुश्किलें एकदम से काफी बढ़ जाती हैं।
यदि पूरी दुनिया को समग्र रूप से विकसित होना है, तो उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच पारस्परिक सहयोगात्मक संबंध होने चाहिए। यह उत्पादकों के हित में है कि अन्य अर्थव्यवस्थाएं निरंतर एवं त्वरित रूप से विकसित होती रहीं, ताकि स्वयं ऊर्जा बाजारों का भी निरंतर विकास सुनिश्चित हो सके। यह ऊर्जा की निरंतरता की कुंजी है। प्रमुख आपूर्तिकर्ता होने के नाते यह ओपेक की जिम्मेदारी है कि वह आपूर्ति संबंधी संतुलन को बनाये रखे।
मैं अपने महान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए अपना संबोधन समाप्त कर रहा हूं, जिन्होंने कहा था कि ‘धरती हमें इतना देती है कि हर व्यक्ति की जरूरत पूरी हो सके, लेकिन वह हर व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं कर सकती।’