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कुछ ऐसा रहा अयोध्या राम जन्मभूमि-मस्जिद विवाद का अदालती सफर

देश-विदेश

अयोध्या में राम जन्मभूमि-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट मे अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी। गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामलों को लेकर कुछ और ट्रांसलेशन और डॉक्यूमेंट्स के चलते अगली तारीख दी है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अयोध्या विवाद को भूमि विवाद के तौर पर लिया जाए ना कि किसी और तरीके से देखा जाए।

लेकिन, अयोध्या में राम मंदिर-मस्जिस का यह विवाद काफी पुराना है जिसमें कई दशक के बाद भी अब तक इस पर अंतिम फैसला नहीं सुनाया जा सका है। आइये यह जानने का प्रयास करते हैं कि रामलला का अदालती सफर कब और कैसे शुरू हुआ और अब किस मुकाम पर आया है-

1885 से ही शुरू हुआ अयोध्या विवाद

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई गुरुवार से सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो रही है। लेकिन यह आज का मामला नहीं है। इस विवाद का अदालती सफर आजादी से काफी पहले सन 1885 में ही शुरू हो गया था। निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवरदास ने उस वक्त स्थानीय सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने अपील दायर की थी कि बाबरी मस्जिद से लगे रामचबूतरा पर उन्हें मंदिर निर्माण की इजाजत दी जाए।

हालांकि मंदिर-मस्जिद विवाद 1528 में ही सामने आ चुका था। मान्यता के अनुसार भारत के पहले मुगल शासक बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसके बाद से ही मंदिर-मस्जिद को लेकर दोनों समुदायों में समय-समय पर छिट-पुट तनाव का जिक्र मिलता है।

1949 में ही अयोध्या पर दिखा भारी तनाव

अयोध्या विवाद के इस तनाव के नए अध्याय का सूत्रपात 22-23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ, जब विवादित रामजन्मभूमि पर बनी मस्जिद में रामलला की स्थापना की गई। हिंदुओं का कहना था कि रामलला यहां स्वयं प्रकट हुए और रामलला के प्राकट्य के साथ उन्होंने मस्जिद में ही रामलला की पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

जबकि मुस्लिमों का कहना था कि मस्जिद में रामलला को साजिशन स्थापित किया गया और हाजी फेकू आदि कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने प्रशासन से रामलला की मूर्ति को मस्जिद से हटाने की मांग की। गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को फैजाबाद की अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी और वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक लगाए जाने की मांग की। पांच दिसंबर 1950 को रामचंद्रदास परमहंस भी आम हिंदुओं की ओर से रामलला के पूजन-दर्शन के अधिकार की मांग को लेकर सिविल कोर्ट पहु़ंचे। स्थानीय अदालत में करीब एक दशक तक यह विवाद रामलला की मूर्ति विवादित इमारत में बरकरार रखने और हटाने की मांग का सबब बना रहा।

1959 में निर्मोही अखाड़ा ने मुकदमा ठोका

17 दिसंबर 1959 को निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

ठीक दो वर्ष बाद ही विवाद में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी दस्तक दे दी। बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए 18 दिसंबर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर किया। एक स्थानीय वकील उमेश पांडेय की याचिका को संज्ञान में लेते हुए एक फरवरी 1986 को जिला जज ने विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश सुनाया। यही नहीं जज ने इमारत के अंदर हिंदुओं को पूजा-पाठ की इजाजत भी दे दी।

एक जुलाई 1989 को सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला के सखा की हैसियत से अदालत में वाद दाखिल किया। इसके बाद का दौर मंदिर आंदोलन के नाम रहा। अदालती प्रक्रिया के समानांतर मंदिर को लेकर कारसेवा का क्रम चला और छह दिसंबर 1992 को लाखों की संख्या में एकत्र कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया।

2002 से आयी अदालती प्रक्रिया में तेजी

अप्रैल 2002 से अदालती प्रक्रिया में तेजी आई और विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। साल 2003 के मार्च से अगस्त माह के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल के इर्द-गिर्द के भू-क्षेत्र में खुदाई कराई और दावा किया कि जिस भूमि पर मस्जिद बनी थी, उसके नीचे मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

कालांतर में मंदिर-मस्जिद विवाद के निर्णय में खुदाई से प्राप्त रिपोर्ट निर्णायक भी बनी। 30 सितंबर 2010 को हाईकोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ ने मंदिर-मस्जिद विवाद के संबंध में फैसला दिया। इसमें 120 गुणे 90 फीट की विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, रामलला एवं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर बांटे जाने की बात कही गई।

अयोध्या पर हाईकोर्ट के फैसला को सभी पक्षों ने दी चुनौती

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में भले ही सभी पक्षों को संतुष्ट करने की कोशिश की पर यह फैसला किसी को मान्य नहीं हुआ और संबंधित पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यही नहीं एक साल के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक भी लगा दी।

21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने आपसी सहमति से मसले के हल का सुझाव दिया और जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता की पेशकश भी की।

अयोध्या विवाद में कूदे श्री श्री रविशंकर

आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी पिछले साल राम मंदिर विवार को बातचीत के जरिए सुलझाने की पहल की थी। इस सिलसिले में उन्होंने लखनऊ जाकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी। यही नहीं वे अयोध्या भी गए और इस मामले से जुड़े पक्षकारों से भी मिले। ये बात अलग है कि पक्षकारों ने उनकी इस कोशिश को तवज्जो नहीं दी और कहा कि अब जबकि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रही है ऐसे में इस तरह के प्रयासों का कोई खास मतलब नहीं है।

Live हिन्दुस्तान

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