लखनऊ: प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त, श्री संजय आर. भूसरेड्डी ने बताया कि वैज्ञानिक संस्तुतियों के अनुसार फसल वर्ष में एक बार ही कोराॅजन का प्रयोग गन्ने की फसल में लगने वाले बेधक कीटों के नियंत्रण हेतु पर्याप्त है, क्यांेकि यह कीटनाशक काफी महंगा है और इसका प्रभाव भी काफी समय तक बना रहता है और यह वातावरण में जल्दी नष्ट नहीं होता है। अतः किसानांे के लिए आर्थिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी इसका अधिक उपयोग किया जाना हितकर नहीं है। यह एक अतिघातक श्रेणी का रसायन है, जिसका पर्यावरण तथा मृदा स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
श्री भूसरेड्डी ने बताया कि कोराॅजन कीटनाशक की आपूर्ति कम्पनी क्नचवदज द्वारा विभिन्न प्रचार माध्यमों से दर्शाया जा रहा है कि कोराॅजन के प्रयोग से गन्ने का पौधा मजबूत, अधिक मोटा एवं अधिक लम्बा होता है तथा इसकी वृद्धि लगातार होती है और गन्ना ैलउउमजतपबंस रूप में दिखाई देता है तथा किसान को अच्छा लाभ प्राप्त होता है।
गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने बताया कि आई.आई.एस.आर., लखनऊ की रिपोर्ट 23 मार्च, 2017 के अनुसार इसका उपयोग केवल दीमक एवं कंसुआ तथा टाॅप बोरर नियंत्रित करने हेतु किया जा सकता है तथा इसका प्रयोग मई के अन्तिम सप्ताह या जून के प्रथम सप्ताह में केवल एक बार करना पर्याप्त है। इसी प्रकार गन्ना शोध परिषद्, शाहजहांपुर द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि इसका उपयोग अंकुर बेधक व चोटी बेधक कीट के नियंत्रण हेतु किया जा सकता है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर, जो कि एक भारत सरकार की संस्था है, के द्वारा भी इसकी सिफारिश दीमक एवं कंसुआ तथा टाॅप बोरर नियंत्रित करने हेतु की गई है।
श्री भूसरेड्डी ने बताया कि वैज्ञानिक रिपोर्टांे से यह पुष्टि हुई हैं कि कोराॅजन का प्रयोग फसल की बोरर से सुरक्षा हेतु केवल एक बार करना पर्याप्त है। कोराॅजन एक महंगी दवा है, जिसके अधिक प्रयोग से गन्ना फसल की लागत में काफी बढ़ोत्तरी हो जाती है तथा इसका प्रयोग आर्थिक दृष्टि से तभी उचित है, जब खेत में कम से कम 15 प्रतिशत पौधों में बोरर का प्रकोप दिखाई पड़े। क्नचवदज कम्पनी के कोराॅजन द्वारा गन्ने की पैदावार में अत्यधिक वृद्धि हेतु किये जा रहे भ्रामक प्रचार के लिये निर्माता कम्पनी क्नचवदज को नोटिस भी निर्गत किया जा रहा है।