20 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

जानिये क्या है मधुमेह?

सेहत

मधुमेह चयापचय रोगों का समूह है। यह रोग व्यक्ति में उच्च रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर या अपर्याप्त इंसुलिन के उत्पादन के कारण होता है। इस रोग में शरीर की कोशिकाएं ठीक से इंसुलिन का उत्पादन या इंसुलिन के उत्पादन के प्रति प्रतिक्रिया नहीं कर पाती है। “मधुमेह” शब्द कई एटियलजि चयापचय विकारों जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, वसा (डिस्लिपिडेमिया) की गड़बड़ी और प्रोटीन चयापचय के परिणामस्वरूप इंसुलिन के स्राव या इंसुलिन की कार्यप्रक्रिया यानि कि दोनों में होने वाले दोष के कारण क्रोनिक हाइपरग्लाइसिमिया द्वारा पहचाना जाता है।

इस रोग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं: –

  • बहुमूत्रता (अक्सर पेशाब)।
  • अतिपिपासा (प्यास बढ़ना)।
  • अतिक्षुधा (भूख बढ़ना)।

मधुमेह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

मधुमेह टाइप-१: शरीर में शारीरिक ख़राबी या परेशानी के कारण इंसुलिन का निर्माण बंद हो जाता है तथा व्यक्ति को इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता होती है। मधुमेह के इस प्रकार को पहले “इंसुलिन निर्भर मधुमेह” (आईडीडीएम) या “किशोर मधुमेह” के रूप में जाना जाता था|

मधुमेह टाइप-२: यह इंसुलिन में प्रतिरोध के कारण होता है। इस स्थिति में कोशिकाएं पर्याप्त इंसुलिन का उपयोग नहीं करती हैं तथा कभी-कभी इंसुलिन कम मात्रा में बनता है। मधुमेह के इस प्रकार को पहले “नॉन इंसुलिन निर्भर मधुमेह” (एनआईडीडीएम) या “वयस्क शुरुआती मधुमेह” के रूप में जाना जाता था|

मधुमेह का तीसरा प्रकार जैस्टेशनल/गर्भकालीन मधुमेह: होता है यह मधुमेह की वह स्थिति होती है, जिसमें महिलाओं में मधुमेह का निदान पहले कभी न हुआ हों तथा गर्भावस्था के समय उनके रक्त में शर्करा का उच्च स्तर पाया जाता हैं। यह डीएम टाइप-२ को पैदा कर सकता हैं।

मधुमेह के अन्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

बीटा कोशिकाओं का आनुवंशिक दोष, (अग्न्याशय का वह हिस्सा जो कि इंसुलिन बनाता है): जिसे परिपक्वता की अवस्था यानि कि युवाओं में शुरुआती मधुमेह (मोडी) या नवजात मधुमेह के नाम से जाना जाता है (एनडीएम)।

अग्न्याशय के रोग या अग्न्याशय: की क्षति जैसे कि अग्नाशयकोप और सिस्टिक फाइब्रोसिस की स्थिति पैदा हो सकती है।

कुछ चिकित्सीय स्थितियां: जैसे कि कुशिंग सिंड्रोम में कोर्टिसोल की अधिक मात्रा इंसुलिन के कार्य को बाधित करती है।

बीटा कोशिकाओं को नष्ट करने वाली दवाईयां: जैसे कि ग्लूकोर्टिकोइटड या रसायन इंसुलिन की कार्यक्षमता को कम करती है।

लक्षण: मधुमेह के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:

  • बहुमूत्रता: अक्सर पेशाब (विशेष रूप से रात में)।
  • अतिपिपासा: बहुत प्यास लगना।
  • अतिक्षुधा: बार-बार भूख लगना।
  • कमजोरी।
  • वज़न में कमी और मांसपेशी बल्क की क्षति।
  • अक्सर थ्रश संक्रमण (फंगस इन्फेक्शन)।
  • कट या घाव का धीरे-धीरे उपचारित होना।
  • धुंधली दृष्टि।

मधुमेह टाइप-१ सप्ताहों या दिनों तक बहुत जल्दी विकसित हो जाता है। बहुत सारे लोग कई वर्षों तक महसूस किए बिना मधुमेह टाइप-२ से पीड़ित रहते हैं, क्योंकि इसके प्रारंभिक लक्षण बेहद सामान्य होते हैं। उन्हें ज्ञात नहीं होता हैं कि वे मधुमेह से पीड़ित है।

कारण: मधुमेह टाइप-१: इस प्रकार का मधुमेह तब होता है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन पैदा करने वाली कोशिकाओं पर हमला करती है तथा उन्हें नष्ट कर देती है। इंसुलिन पैदा नहीं होता है तथा ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है, जो कि शरीर के अंगों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। मधुमेह टाइप-१ को “इंसुलिन निर्भर मधुमेह” के रूप में जाना जाता हैं। इसे कभी-कभी किशोर मधुमेह या प्रारंभिक शुरूआती मधुमेह के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि आमतौर पर यह चालीस साल की उम्र से पहले या किशोरावस्था के दौरान विकसित होता है। मधुमेह टाइप-१, मधुमेह टाइप २ की तुलना में कम पाया जाता है।

मधुमेह टाइप-२: मधुमेह टाइप-२ के दौरान शरीर में पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता है या शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के उत्पादन के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करती है। इसे इंसुलिन प्रतिरोध के रूप में जाना जाता है। मधुमेह टाइप-२, मधुमेह टाइप १ की तुलना में अधिक पाया जाता है।

मधुमेह टाइप-२ हेतु जोखिम के कारक:

  • मोटापा या अधिक वज़न।
  • इमपेयर्ड ग्लूकोज़ टालेरेन्स।
  • उच्च रक्तचाप।

डिस्लिपिडेमिया- उच्च घनत्व लाइपो प्रोटीन (एचडीएल) (“अच्छा”) कोलेस्ट्रॉल का कम स्तर और ट्राइग्लिसराइड्स के उच्च स्तर, कम घनत्व लिपो प्रोटीन (एलडीएल) के उच्च स्तर। इसे डिस्लिपिडेमिया कहते है।

  • जैस्टेशनल/गर्भकालीन मधुमेह।
  • बैठे रहने वाली जीवन शैली।
  • पारिवारिक इतिहास।
  • उम्र।

निदान: मधुमेह रोगियों का नैदानिक निदान अक्सर लक्षण जैसे कि अधिक प्यास लगने और अधिक पेशाब जाने तथा बार-बार होने वाले संक्रमण के आधार पर किया जाता है।

रक्त परीक्षण – फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज, भोजन के दो घंटे के बाद किए जाने वाला परीक्षण और ओरल ग्लूकोज़ टालेरेन्स परीक्षण, रक्त शर्करा के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है।

ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबीन (एचबीए१सी) का उपयोग मधुमेह के निदान करने के लिए किया जाता है।

मधुमेह का निदान, रक्त में ग्लूकोज और एचबीए१सी के स्तर द्वारा किया जा सकता है।

मधुमेह के लिए नैदानिक मानदंड।

अवस्था।

 

दो घंटे के बाद प्लाज्मा ग्लूकोज फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज। एचबीए१सी
mmol/l(mg/dl) mmol/l(mg/dl) %
सामान्य <७.८ (<१४०) <६.१ (<११०) <६.०
इमपेयर्ड फास्टिंग ग्लूकोज़ <७.८ (<१४०) ≥ ६.१(≥११०) और  <७.०(<१२६) ६.०–६.४
इमपेयर्ड ग्लूकोज़ टालेरेन्स ≥७.८ (≥१४०) <७.०(<१२६) ६.०–६.४
मधुमेह ≥११.१ (≥२००) ≥७.० (≥१२६) ≥६.५

* ७५ ग्राम ओरल ग्लूकोज लोड के दो घंटे के बाद वीनस प्लाज्मा ग्लूकोज की जाँच।

अन्य परीक्षण –

फास्टिंग लिपिड प्रोफाइल, जिसमें कुल, एलडीएल, और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स शामिल हैं।

यकृत (लीवर) प्रक्रिया परीक्षण।

गुर्दें (किडनी) प्रक्रिया परीक्षण।

मधुमेह टाइप-१ में, थायरॉयड स्टेमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) परीक्षण, डिस्लिपिडेमिया या पचास साल से अधिक उम्र की महिलाओं में अवश्य करवाया जाना चाहिए।

प्रबंधन: वर्तमान समय में, मधुमेहरोधी छह प्रकार की ओरल दवाएं उपलब्ध हैं : बाइग्वानाइड,  (मेटफॉर्मिन) सल्फोनिलयूरियास (गिल्मापेराइड), मैग्लीटिनाइड (रिपेगिल्नाइड), थाईज़ोलिडानिडिआंस (पियोग्लिटाजोन),  डाईपेप्पटीडाइल पेप्टीडेज़ चतुर्थ अवरोधक, सिटेगलिप्टिन और अल्फ़ा – ग्लुकोसिडेस अवरोधक (ऐकरवोस)।

दवाएं:

इंसुलिन: आमतौर पर मधुमेह टाइप-१ का उपचार सिंथेटिक इंसुलिन एनालॉग या एनपीएच (नूट्रल प्रोटामिन हेजाडॉर्न) इंसुलिन के संयोजन के साथ नियमित किया जाता है। आमतौर पर मधुमेह टाइप-२ में, जब लंबे समय तक रहने वाले इंसुलिन फॉर्म्युलेशन का उपयोग किया जाता है, तो मौखिक दवाओं का सेवन करते समय इंसुलिन के उपयोग की आवश्यकता भी महसूस हो सकती है।

  • सहवर्ती चिकित्सीय स्थितियों का उपचार (जैसे कि उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया)।
  • जीवन शैली में सुधार लाने के लिए उपाय।
  • नियमित व्यायाम।
  • उचित आहार।
  • धूम्रपान निषेध।
  • अल्कोहल निषेध।

अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के विकल्प रक्त शर्करा के स्तर को स्वीकार्य सीमा के भीतर बनाए रखने में सहायता करते हैं।

जटिलताएं: यदि मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति अपनी रक्त शर्करा के स्तर को अच्छी तरह से नियंत्रित रखते हैं, तो उनमें मधुमेह की जटिलताएं बेहद कम और कम गंभीर हो सकती है।

मधुमेह की जटिलताएं निम्नलिखित होती है:

एक्यूट:

१.  मधुमेह कीटोअसिदोसिस (डीकेएन): यह मधुमेह की तीव्र और खतरनाक जटिलता होती है, जिसके परिणाम स्वरूप आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है। यह आमतौर पर, इंसुलिन का स्तर कम होने के कारण देखा जाता है, जिसका कारण यकृत (लीवर) का ईंधन के लिए फैटी एसिड का उपयोग करना है। फैटी एसिड से ईंधन बनता है। कीटोन से कीटोन बॉडिज़ बनती है। कीटोन चयापचय अनुक्रम में मध्यवर्ती का कार्य करता है। यदि यह अवस्था निश्चित अवधि तक बनी रहती है, तो यह सामान्य स्थिति है, लेकिन यदि यह अवस्था लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह गंभीर समस्या पैदा कर सकती है। कीटोन बॉडिज़ का उच्च स्तर शरीर के रक्त में रक्त पीएच में कमी करता है, जिसके परिणामस्वरूप डीकेए पैदा होता है। आमतौर पर, डीकेए से पीड़ित रोगी के शरीर में पानी की कमी हो जाती है तथा उसकी साँस तेज़ और गहरी चलने लगती है। पेट में दर्द होता है तथा यह स्थिति अति गंभीर भी हो सकती है।

२. अतिग्लूकोसरक्‍तता: अतिग्लूकोसरक्त अन्य क्रोनिक जटिलता होती है। यदि व्यक्ति के रक्त में शर्करा की उच्च मात्रा (आमतौर पर ३००एमजी/डीएल से ऊपर माना जाती है (१६ एमएमओएल/एल)) बहुत अधिक होती है, तो पानी आज़्माटिकली कोशिकाओं से बाहर आ जाता है तथा यह रक्त में मिल जाता है एवम् अंत में किडनी शर्करा को पेशाब में भेजना शुरू कर देती है, जिसके परिणामस्वरुप पानी की कमी और रक्त ओस्मोलेरिटी में बढ़ोत्तरी हो जाती है। यदि तरल पदार्थ (मुंह या नसों) से नहीं दिया जाता है, तो आसमाटिक के प्रभाव के कारण, पानी की कमी के साथ शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। अंत में निर्जलीकरण की समस्या पैदा हो जाती है। शरीर की कोशिकाओं में निर्जलीकरण तेज़ी से होता है, क्योंकि शरीर का पानी कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित हो जाता है। इस अवस्था में इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन बेहद सामान्य होता हैं, लेकिन यदि यह अधिक होता है, तो स्थिति ख़तरनाक भी हो सकती है।

३. हाइपोग्लाइसीमिया: अधिकांश मधुमेह के उपचार में हाइपोग्लाइसीमिया या रक्त में शर्करा की असामान्य मात्रा को क्रोनिक जटिलता माना जाता है। यह स्थिति मधुमेह या नॉन मधुमेह से पीड़ित रोगियों में नहीं होती है, या बेहद दुर्लभ पायी जाती है। रोगी चिड़चिड़ा, पसीने से तरमदर और कमजोर हो जाता है तथा बहुत सारे लक्षण सिम्पथेटिक एक्टिवेइशन की स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली पर प्रकट होते है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी स्थिर भय और आतंक महसूस करता है।

४. मधुमेह कोमा: मधुमेह कोमा, मधुमेह की आपातकालीन चिकित्सीय स्थिति होती है, जिसमें मधुमेह से पीड़ित रोगी बेहोश हो जाता है। यह मधुमेह की क्रोनिक जटिलताओं में से एक जटिलता है।

  • गंभीर मधुमेह हाइपोग्लाइसीमिया।
  • मधुमेह कीटोअसिदोसिस की मात्रा में बढ़ोत्तरी से गंभीर हाइपरगेइसीमिया, निर्जलीकरण, आघात और थकावट होती है, जिसके परिणामस्वरूप बेहोशी की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • हाईपरोस्मोलर नोंकेटोटिक कोमा मधुमेह की वह स्थिति है, जिसमें हाइपरग्लाइसिमिया और निर्जलीकरण अकेले बेहोशी पैदा करने के लिए पर्याप्त होता हैं।

क्रोनिक

१.   मधुमेह कार्डियोमायोपैथी: यह स्थिति हृदय को नुकसान पहुंचा सकती है, जो कि डायस्टोलिक शिथिलता को पैदा करता है तथा अंत में हृदय की विफलता को भी पैदा करता हैं।

२.   मधुमेही नेफ्रोपैथी: यह किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है, जो कि क्रोनिक गुर्दे की विफलता को पैदा करता हैं। अंततः इस स्थिति में डायलिसिस की आवश्यकता होती है। वयस्कों में गुर्दें (किडनी) की विफलता का सबसे सामान्य कारण मधुमेह हो सकता है।

३.   मधुमेह न्युरोपैथी: रोगी की संवेदनशीलता कम हो जाती है। आमतौर पर, संवेदनशीलता सबसे पहले पैरों में आती है, जिसे मधुमेह पैरों की स्थिति कहते है। फिर बाद में संवेदनशीलता हाथों और उँगलियों में आती है। मधुमेह न्यूरोपैथी का अन्य रूप मोनो न्युराईटिस या ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी होता है। मधुमेह न्यूरोपैथी मांसपेशियों की कमजोरी के कारण होता है।

४.   मधुमेह रेटिनोपैथी: रेटिना में मैकुलर शोफ (मैक्युला की सूजन) के साथ-साथ नाज़ुक और खराब गुणवत्ता वाली नई रक्त वाहिकाओं का विकास गंभीर दृष्टि की हानि या अंधापन को पैदा कर सकता है। रेटिना की क्षति (माइक्रोएंजियोपैथी) अंधेपन का सबसे सामान्य कारण है।

५.   मधुमेह डिस्लिपिडेमिया: भारतीय उपमहाद्वीप में किए गए सर्वव्यापी अध्ययन में यह पाया गया है, कि मधुमेह टाइप-२ से पीड़ित बहुत सारे भारतीय रोगियों का आधार डिस्लिपिडेमिक है। डिस्लिपिडेमिया का सबसे सामान्य पैटर्न कम घनत्व लिपो प्रोटीन (एलडीएल) के उच्च स्तर और उच्च घनत्व लाइपो प्रोटीन (एचडीएल) का दोनों पुरूष और महिलाओं के बीच होना है। बहुत सारे पुरुषों के बीच उच्च एलडीएल की समस्या पायी जाती है, जबकि बहुत सारी महिलाओं के बीच कम एचडीएल बड़ी समस्या बन कर सामने आता है।

Related posts

9 comments

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More