नई दिल्ली: अगर किसी एक क्षेत्र को सबसे ज्यादा सरकारी मदद की जरूरत है, तो वह कृषि क्षेत्र है, जिसे आगामी बजट में सर्वोच्च प्राथमिकता देने की जरूरत है। कृषि के क्षेत्र में खरीफ के उत्पादन में बड़ी गिरावट देखी जा रही है, जिसके कारण चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के प्रदर्शन में कृषि क्षेत्र की रफ्तार में गिरावट दर्ज की गई। एसोचैम ने रविवार को यह बातें कही।
एसोचैम ने कहा कि साल-दर-साल आधार पर वित्त वर्ष 2017-18 की जुलाई-सितंबर तिमाही में कृषि का जीवीए (सकल मूल्य वृद्धि) 4.1 फीसदी से गिरकर 1.7 फीसदी रहा। इसकी गणना मूल कीमतों के आधार पर की जाती है।
मौजूदा कीमतों में गिरावट 10 फीसदी से घटकर 3.7 फीसदी पर आ गई है। इसके कारण चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में खाद्यान्न उत्पादन में तेज गिरावट दर्ज की गई और यह 2.8 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 की समान अवधि में यह 10.7 फीसदी पर थी।
एसोचैम ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से, खरीफ उत्पादन में इस गिरावट पर मॉनसून के दूसरे चरण में हुई कम बारिश का भी असर रहा है। इसके अलावा कई कृषि वस्तुओं के मूल्य में संकट के कारण भी प्राप्तियों में कमी देखी गई है, जैसा कि वर्तमान कीमतों पर वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही है।’’
चेंबर के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा कि कृषि क्षेत्र का आधे से ज्यादा जीवीए में पशुधन, मछली पालन और वानिकी का योगदान है। इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को विशेष रूप से अर्थव्यवस्था के इन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही कृषि अवसंरचना जैसे सिंचाई पर भी जोर देना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी बड़ी आबादी को ग्रामीण इलाकों में रोजगार प्राप्त है, भारत का उपभोग आधारित विकास और निवेश तब तक अधूरा है, जब तक कि समूचे कृषि क्षेत्र को संकट से नहीं उबारा जाता है। भारतीय कारोबारी जगत का प्रमुख हिस्सा मुख्य रूप से कृषि मांग पर निर्भर है, अगर तुरंत अल्पकालिक और दीर्घकालिक कदम नहीं उठाए गए तो कृषि मांग में कमजोरी बरकरार रहेगी। निकट अवधि में जारी रबी सीजन में किसानों को सभी किस्म की मदद मुहैया करानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिचौलिये उनका लाभ ना उठा पाएं।’’