20 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

टापर्स कान्क्लेव के चैथे दिन ‘‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था व उत्तराखण्ड में इसका विकास‘‘ विषय पर व्याख्यान देते हुएः पद्मश्री डाॅ अनिल जोशी

टापर्स कान्क्लेव के चैथे दिन ‘‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था व उत्तराखण्ड में इसका विकास‘‘ विषय पर व्याख्यान देते हुएः पद्मश्री डाॅ अनिल जोशी
उत्तराखंड

देहरादून: शहरों का अस्तित्व गांवों के अस्तित्व पर निर्भर करता है। शहरों की बजाय गांवों को प्राथमिकता का केंद्र बनाना होगा। हम जितना प्रकृति से लेते हैं, उतना ही प्रकृति को देना भी होगा। राजभवन में आयोजित टाॅपर्स कान्क्लेव के चैथे दिन के प्रथम सत्र में ‘‘ग्रामीण अर्थव्यवस्था व उत्तराखण्ड में इसका विकास’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए पद्मश्री डाॅ. अनिल जोशी ने उक्त  विचार व्यक्त किए।

डाॅ. अनिल जोशी ने कहा कि हम कितनी ही आधुनिक सुविधाएं जुटा लें परंतु भोजन, पानी, हवा जैसी मूलभूत जरूरत हमारे गांव ही पूरा कर सकते हैं। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमारी प्रत्येक गतिविधि गांव पर निर्भर है। ग्रामीण समुदाय सर्वश्रेष्ठ आविष्कारक हैं। नए विज्ञान का हमारे गांवों के पारम्परिक ज्ञान से समन्वय होना चाहिए। अर्थव्यवस्था व इकोलोजी में संतुलन आवश्यक है। हमारी सांस्कृतिक विरासत, विकास का अभिन्न अंग हो। मानव जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम जितना प्रकृति से ग्रहण करते हैं, उतना या उससे ज्यादा प्रकृति को दुबारा लौटाएं। ”Consumer should be contributor” हमारे ग्रामीण जीवन का दर्शन शास्त्र है। शहरों में इस भावना का अभाव है।

पद्मश्री डाॅ. अनिल जोशी ने कहा कि उन्हें यह पढ़कर बड़ी खुशी हुई कि टाॅपर्स कान्क्लेव का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल डाॅ. कृष्णकांत पाल ने अपने सम्बोधन में विश्वविद्यालयों से गांवों को गोद लेने की बात कही है। हमें इस भावना के पीछे के मूल को समझना चाहिए।  गांवों की बौद्धिकता को नए विज्ञान से जोड़ दिया जाए तो आर्थिक विकास में गांव अपनी महत्वपूर्ण भुमिका निभा सकते हैं। गांवों के बिना शहरों का अस्तित्व भी मुश्किल है।

उत्तराखण्ड में ग्रामीण विकास के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए डाॅ. अनिल जोशी ने कहा कि हमें पारम्परिक खेती को अपनाना होगा। हम पंजाब, हरियाणा से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों  की पारम्परिक फसलों में न्यूट्रीशन वेल्यू अधिक है। हमें इसका लाभ उठाना चाहिए। अपनी फसलों को मार्केट ब्रांड के रूप में विकसित करने पर ध्यान देना होगा।

हमारे यहां धार्मिक पर्यटन है। चारधाम व अन्य तीर्थ स्थलों में चैलाई आदि स्थानीय उत्पादों से तैयार प्रसाद की बिक्री की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। हाॅर्टीकल्चर बड़ी ताकत बन सकता है। कृषि व हाॅर्टीकल्चर के लिए घाटी आधारित अवधारणा (valley based approach) अपनानी होगी। इसके लिए सब्जियों व फलों के संग्रहण व प्रोसेसिंग की व्यवस्था करनी होगी। इन उत्पादों को क्षेत्रीय पहचान दिए जाने की जरूरत है। बकरी पालन, पोल्ट्री, मधुमक्खी पालन भी सहायक हो सकते हैं। बायोमास, सोलर एनर्जी, फाईबर  भी पर्वतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकते हैं। डाॅ. अनिल जोशी ने कहा कि राज्य के विभिन्न स्थानों पर बहुत से लोग इन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। परंतु व्यक्तिगत प्रयासों को सामुदायिक प्रयासों में बदले जाने की आवश्कता है।

एच.एन.बी. गढ़वाल यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. एस.पी. सिंह ने अपने सम्बोधन में जलवायु के परिवर्तन से हिमालय पर होने वाले प्रभावों के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि हिमालय अपने आप में एक सिस्टम है। यह एक वाटर टाॅवर है, जिस पर कि विकास की दौड़ के कारण विपरीत प्रभाव हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिस प्रकार विकसित देश जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं, फिर भी भारत एक मानसूनी देश होने के कारण इसका सबसे अधिक नुकसान उठा रहा है, उसी प्रकार भारत के अन्दर हिमालयी प्रदेश जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।

   उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन में इंसानी हस्तक्षेप सबसे अधिक जिम्मेदार है। जिस प्रकार से हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के साथ प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहे हैं, इससे होने वाले प्रभावों से, हम में से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। और इसका सबसे अधिक प्रभाव हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय की वनस्पति में भी परिवर्तन आ रहा है। बहुत सी वनस्पतियां हिमालय से लुप्त होती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में कौन-कौन सी वनस्पतियां लुप्त हुयी है यह एक शोध का विषय हो सकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अल्पकालिक नहीं बल्कि दीर्घकालिक रहेगा।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More