नई दिल्ली: 17 दिसम्बर, 2017 को इंडियन एक्सप्रेस में दिए गए एक लेख में “तीन तलाक” पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पक्ष को असंगत रूप से प्रकाशित किया गया है । यह लेख शरारत पूर्ण है और इसमें तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया गया है।
मंत्रालय ने हमेशा तीन तलाक का विरोध किया है। माननीय मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने जनवरी 2017 में तीन तलाक के विषय पर विचार विमर्श के लिए मंत्रियों के समूह के गठन का अनुरोध किया था। माननीय उच्चतम न्यायालय में “तीन तलाक” के मामले में मंत्रालय प्रतिवादी था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने तुरंत तलाक को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखने के लिए, मंत्रिमंडल के प्रस्ताव का पूरी तरह से समर्थन किया है।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को एक विधेयक का अनुमोदन किया जो तीन तलाक को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखता है और तुंरत तलाक के लिए एक मुस्लिम पति को तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकती है।
किसी भी रूप में तीन तलाक –मौखिक, लिखित अथवा इलैक्ट्रोनिक रूप में – प्रतिबंधित कर दिया गया है और इसे संज्ञेय अपराध बना दिया गया है। यह बिल पीडि़त मुस्लिम महिला, उस पर आश्रित बच्चों को गुजारा भत्ता भी प्रदान करता है और नाबालिग बच्चों को अभिरक्षण संबंधित अधिकार प्रदान करता है।
यह मंत्रालय, मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक और वैधिक रूप से सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयत्नशील है और उनके सहयोग के लिए इसने अपना पक्ष हमेशा मजबूत रखा है। अतः इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित समाचार, मंत्रालय के विचारों से कोसों दूर है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय कड़े शब्दों में कहता है कि सम्बंधित अखबार को इस गंभीर जटिल विषय पर आलेख प्रकाशित करने से पूर्व स्पष्टीकरण के लिये इस मंत्रालय से सम्पर्क करना चाहिए था।