नई दिल्ली: भारत सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के व्यापक अभियान के आधार पर दो साल या उससे भी अधिक समय तक निष्क्रिय रहने के कारण अब तक लगभग 2.24 लाख कंपनियों के नाम सूची से हटा दिए गए हैं या उन्हें बंद कर दिया गया है।
डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों को बंद करने की कार्रवाई करने के बाद कानून के अनुसार उनके बैंक खातों के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके अलावा 58,000 खातों से जुड़ी 35,000 कंपनियों के बारे में 56 बैंकों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर प्रारंभिक जांच से पता चला है कि विमुद्रीकरण के बाद 17,000 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि जमा कराई गई थी और फिर उसे वापस निकाल लिया गया था। एक कंपनी का मामला उल्लेखनीय है जिसके खाते में 8 नवंबर, 2016 को शुरुआती बैलेंस ऋणात्मक यानी निगेटिव था। इसी कंपनी ने विमुद्रीकरण के बाद 2,484 करोड़ रुपये जमा कराए थे और फिर उसे वापस निकाल लिया था।
बैंक खातों के संचालन पर प्रतिबंध लगाने के अलावा बंद कर दी गई इन समस्त कंपनियों की चल एवं अचल संपत्तियों की बिक्री और हस्तांतरण पर तब तक के लिए पाबंदी लगाने की कार्रवाई भी की जा चुकी है जब तक कि उनके कामकाज की बहाली नहीं हो जाती है। राज्य सरकारों को सलाह दी गई है कि वे इस तरह के लेन-देन के पंजीकरण को नामंजूर करके इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें।
एक कंपनी के तकरीबन 2,134 खाते होने के बारे में जानकारी मिली है। इस तरह की कंपनियों के बारे में मिली जानकारियों को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू), वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इत्यादि सहित प्रवर्तन अधिकारियों के साथ साझा किया गया है, ताकि आगे और आवश्यक कार्रवाई की जा सके। कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत छानबीन/निरीक्षण/जांच के लिए भी अनेक कंपनियों की पहचान की गई है और इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई की जा रही है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने विभिन्न प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता से ऐसी गलत (डिफॉल्टिंग) कंपनियों के खिलाफ चलाए गए अभियान की निगरानी के लिए राजस्व सचिव और कॉरपोरेट मामलों के सचिव की संयुक्त अध्यक्षता में एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) का गठन किया है।
इसके अलावा, 2013-14 से लेकर 2015-16 तक के तीन वित्त वर्षों की निरंतर अवधि के दौरान वित्तीय विवरण और/या वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में विफल रही कंपनियों के बोर्ड में शामिल निदेशकों को अयोग्य करार दिया गया है। इस कार्रवाई से लगभग 3.09 लाख निदेशक प्रभावित हुए हैं। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि 3,000 से अधिक अयोग्य निदेशकों में से प्रत्येक 20 से अधिक कंपनियों में निदेशक हैं, जो कानून के तहत निर्धारित सीमा से अधिक है।
इसी तरह नियामक तंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से ‘पूर्व चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस)’ स्थापित करने हेतु एक अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन विकसित करने के लिए अलग से पहल की जा रही है। यह प्रणाली एसएफआईओ में स्थापित की जाएगी।