नई दिल्लीः वित्त वर्ष 2010-11 की अप्रैल-जून अवधि (प्रथम तिमाही) से ही वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) के बजट प्रभाग का सार्वजनिक ऋण प्रबंधन प्रकोष्ठ (पीडीएमसी) (पूर्ववर्ती मध्य कार्यालय) नियमित रूप से ऋण प्रबंधन पर तिमाही रिपोर्ट जारी करता रहा है। वर्तमान तिमाही रिपोर्ट का वास्ता जुलाई-सितंबर 2017 की तिमाही (वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही) से है।
वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान सरकार ने 1,89,000 करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 32.68 प्रतिशत) मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियां जारी कीं, जो वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही के दौरान जारी की गई 1,68,000 करोड़ रुपये (बजट अनुमान का 29.0 प्रतिशत) मूल्य की दिनांकित प्रतिभूतियों की तुलना में अधिक है। इस तरह वित्त वर्ष 2017-18 की प्रथम छमाही के दौरान सकल उधारियां 3,57,000 करोड़ रुपये या बजट अनुमान का 61.68 प्रतिशत रहीं, जबकि वित्त वर्ष 2016-17 की प्रथम छमाही में सकल उधारियां बजट अनुमान का 56.8 प्रतिशत थीं। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों दोनों की ही नीलामियां सुचारू रूप से आयोजित की गईं। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान जारी की गई सरकारी प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता (डब्ल्यूएएम) और भारित औसत यील्ड (डब्ल्यूएवाई) क्रमश: 14.58 साल और 6.77 प्रतिशत रहीं। विमुद्रीकरण की बदौलत दूसरी तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था में तरलता अधिशेष (सरप्लस) के रूप में रही। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान भारत सरकार की नकदी की स्थिति कुछ हद तक दबाव में रही और भारत सरकार को कुछ अवसरों पर आरबीआई से अर्थोपाय (डब्ल्यू एवं एम) अग्रिम लेने की आवश्यकता पड़ गई। इसके अलावा, नकद प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देशों के जरिए प्राप्तियों के रुझान के अनुसार ही व्यय का समय तय करने का प्रयास किया गया था। तरलता (लिक्विडिटी) की विद्यमान और बन रही स्थिति के आकलन के आधार पर आरबीआई ने दूसरी तिमाही के दौरान 600 अरब रुपये की कुल राशि के लिए खुला बाजार परिचालन के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की।
केंद्र सरकार का सार्वजनिक ऋण (‘सार्वजनिक खाते’ के तहत देनदारियों को छोड़कर) सितंबर 2017 के आखिर में अनंतिम रूप से बढ़कर 65,65,652 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जबकि जून, 2017 के आखिर में यह ऋण राशि 64,03,138 करोड़ रुपये थी। आंतरिक कर्ज सितंबर 2017 के आखिर में सार्वजनिक ऋण का 93.0 प्रतिशत था, जबकि विपणन योग्य प्रतिभूतियां सार्वजनिक ऋण का 82.6 प्रतिशत आंकी गईं। डेट पोर्टफोलियो में रोलओवर जोखिम अब भी कम ही है।
सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) पर यील्ड में 3 अगस्त, 2017 तक गिरावट का रुख देखा गया, लेकिन उसके बाद से ही इसमें बढ़त का रुख देखा जा रहा है। एफपीआई द्वारा निवेश के लिए संशोधित मध्यम अवधि रूपरेखा के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एफपीआई की सीमाओं को जी-सेक में बढ़ाकर 2.42 लाख करोड़ रुपये और एसडीएल के लिए 0.33 लाख करोड़ रुपये कर देने से यील्ड शुरू में अपेक्षाकृत कम थी। हालांकि, बाद में महंगाई दर बढ़ जाने (थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर अगस्त 2017 में 3.24% एवं सितंबर 2017 में 2.60% और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर अगस्त में 3.28% तथा सितंबर 2017 में भी यही स्थिति रही) के कारण यील्ड में अगस्त के आरंभ से बढ़त का रुख दिखने लगा। कच्चे तेल की कीमत जून के 47 डॉलर से बढ़कर 27 सितंबर, 2017 को 59 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई, जिससे व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन (बीओपी) की स्थिति पर दबाव पड़ा और इसका असर महंगाई पर पड़ने की संभावना है। जीएसटी राजस्व (रिफंड दावों की अदायगी के बाद शुद्ध राशि) से जुड़ी चिंताओं ने भी यील्ड पर असर डाला। वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही के दौरान एकमुश्त आधार पर सरकारी प्रतिभूतियों का कुल कारोबार पिछली तिमाही की तुलना में 10.20 प्रतिशत बढ़ गया।