नई दिल्लीः भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार और विश्व बैंक ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा एवं विदर्भ क्षेत्रों में रहने वाले छोटे एवं सीमांत किसानों की सहायता करने के उद्देश्य से आज यहां 420 मिलियन अमेरिकी डॉलर की एक परियोजना पर हस्ताक्षर किए। इस परियोजना से कृषि क्षेत्र में जलवायु की दृष्टि से लचीले माने जाने वाले तौर-तरीकों को बढ़ाने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कृषि अथवा खेती-बाड़ी आगे भी इन किसानों के लिए वित्तीय दृष्टि से एक लाभप्रद आर्थिक गतिविधि बनी रहे।
उपर्युक्त परियोजना से 3.0 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में निवास कर रहे 7 मिलियन से भी अधिक किसानों के लाभान्वित होने और इस क्षेत्र में जलवायु की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील माने जाने वाले 15 जिलों के दायरे में आने वाले 5,142 जिलों को कवर किए जाने की आशा है। अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) से प्राप्त 420 मिलियन डॉलर के ऋण में छह वर्ष की मोहलत अवधि और 24 साल की परिपक्वता अवधि है।
‘जलवायु लचीली कृषि के लिए महाराष्ट्र परियोजना’ से जुड़े समझौतों पर भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव श्री समीर कुमार खरे, महाराष्ट्र सरकार की ओर से कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री बिजय कुमार और विश्व बैंक की ओर से भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर श्री जुनैद अहमद ने हस्ताक्षर किए।
‘जलवायु लचीली कृषि के लिए महाराष्ट्र परियोजना’ को ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में क्रियान्वित किया जाएगा जो मुख्यत: वर्षा जल से सिंचित कृषि पर निर्भर रहते हैं। इस परियोजना के तहत खेत एवं जल-संभर स्तर पर अनेक गतिविधियां शुरू की जाएंगी। इसके तहत सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों, सतही जल भंडारण के विस्तार और जलभृत पुनर्भरण की सुविधा जैसी जलवायु-लचीली प्रौद्योगिकियों का व्यापक उपयोग किया जाएगा जिससे दुर्लभ जल संसाधनों का और भी अधिक कारगर ढंग से उपयोग करने में उल्लेखनीय योगदान मिलने की आशा है। इस परियोजना के तहत अल्प परिपक्वता अवधि वाली और सूखा एवं गर्मी प्रतिरोधी जलवायु-लचीली बीज किस्मों को अपना कर जलवायु के कारण फसलों के प्रभावित होने के जोखिमों को कम करने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
हाल के वर्षों में प्रतिकूल मौसम से महाराष्ट्र में कृषि बुरी तरह प्रभावित हुई है। महाराष्ट्र में मुख्यत: छोटे और सीमांत किसानों द्वारा खेती की जाती है। महाराष्ट्र के किसानों की फसल उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है और वे काफी हद तक वर्षा जल पर ही निर्भर रहते हैं। हाल के वर्षों में भंयकर सूखा पड़ने से इस राज्य में कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन अथवा पैदावार बुरी तरह प्रभावित हुई है।
जलवायु-लचीली कृषि जिंसों से जुड़ी उभरती मूल्य श्रृंखलाओं को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से इस परियोजना के तहत किसान उत्पादक संगठनों की क्षमता बढ़ाई जाएगी, ताकि वे टिकाऊ, बाजार उन्मुख और कृषि-उद्यमों के रूप में परिचालन कर सकें। इससे उन विभिन्न स्थानीय संस्थानों के जलवायु-लचीली कृषि एजेंडे को मुख्य धारा में लाने में मदद मिलेगी जो कृषि समुदाय को खेती-बाड़ी से संबंधित सेवाएं मुहैया कराते हैं।
इस अवसर पर वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव श्री समीर कुमार खरे ने कहा कि भारत सरकार किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और वह कृषि क्षेत्र में नई जान फूंकने और किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए अनेक योजनाएं क्रियान्वित कर रही है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए कृषि प्रणालियों को निश्चित तौर पर लचीला होना चाहिए तथा इसके साथ ही उनके तहत बदलाव को अपनाने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर श्री जुनैद अहमद ने इस परियोजना की अहमियत पर विशेष जोर देते हुए कहा कि भारत को आने वाली पीढि़यों के दौरान भी अपने सतत विकास को बनाए रखने तथा विश्व की सबसे बड़ी मध्यम-वर्गीय अर्थव्यवस्थाओं में स्वयं को भी शुमार करने के लिए एक ऐसे अपेक्षाकृत अधिक संसाधन-कुशल विकास पथ को अपनाना चाहिए जो समावेशी हो।