देहरादूनः राजपुर रोड स्थित मंथन सभागार में वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण मंत्री उत्तराखण्ड सरकार डाॅ हरक सिंह रावत की अध्यक्षता एवं मा मंत्री संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल उत्तराखण्ड सरकार प्रकाश पंत के आतिथ्य में वन पंचायतों की गोश्ठी एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें वन पंचायतों के सशक्तीकरण, वन पंचायतों के द्वारा वन प्रबन्धन के साथ-2 वहां के निवासियों की आजीविका सुनिश्चित करने के विशय में विस्तार पूर्वक चर्चा की गयी। कार्यशाला में वन पंचायतों के सदस्यों द्वारा वन पंचायत नियमावली के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं तथा वन प्रबन्धन के कुशल संचालन के सम्बन्ध में अनेक विचारणीय सुझाव भी दिये गये। देहरादूनः राजपुर रोड स्थित मंथन सभागार में वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण मंत्री उत्तराखण्ड सरकार डाॅ हरक सिंह रावत की अध्यक्षता एवं मा मंत्री संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल उत्तराखण्ड सरकार प्रकाश पंत के आतिथ्य में वन पंचायतों की गोश्ठी एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम विशय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें वन पंचायतों के सशक्तीकरण, वन पंचायतों के द्वारा वन प्रबन्धन के साथ-2 वहां के निवासियों की आजीविका सुनिश्चित करने के विशय में विस्तार पूर्वक चर्चा की गयी। कार्यशाला में वन पंचायतों के सदस्यों द्वारा वन पंचायत नियमावली के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं तथा वन प्रबन्धन के कुशल संचालन के सम्बन्ध में अनेक विचारणीय सुझाव भी दिये गये।
कार्यशाला में मा वन मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत ने कहा कि वर्तमान वन पंचायत नियमावली अत्यधिक जटिल है जिससे इसके क्रियान्वयन में व्यवहारिक दिक्कतें सामने आ रही हैं तथा उन्होने वर्तमान नियमावली को अधिक यथार्त बनाने व क्रियान्वयन में सरलता लाने के लिए संषोधन की बात कही। उन्होने कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि वन पंचायतें मात्र संख्याबल के अधार पर ना दिखें बल्कि अगर वन पंचायतें संख्या में कम भी हो तो भी चलेगा लेकिन सक्रिय होनी चाहिए ऐसा प्रयास किया जायेगा। उन्होने बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्श कम से कम 2 लाख रू0 के कार्य अनिवार्य रूप से देने, आरक्षित वनों को छोड़कर षेश सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन वन पंचायतों को सौंपने, वनों में अग्नि सुरक्षा हेतु स्थानीय वन पंचायतों को भागीदार बनाने, मनरेगा के बजट का 20 प्रतिषत् हिस्सा प्रत्येक वर्श वन पंचायतों को अनिवार्य रूप से आंवटित करने, वन पंचायतों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी को अधिक करने, वन पंचायतों का प्रशासनिक नियंत्रण राजस्व विभाग से हटाकर वन विभाग के अधीन करने तथा जंगल में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और वन्यजीवों की संख्या को संतुलित करने वाली नीतियों को नियमावली में सम्मिलित करने की बात कही। उन्होने राज्य में महिला नर्सरी के लिए 2 लाख रू0 की धनराशि तथा बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्श कम से कम 2 लाख रू0 के कार्य अनिवार्य रूप से सौंपने या देने की घोषणा की । उन्होने कहा कि वन पंचायतों का एक महा सम्मेलन गढवाल मण्डल का कोटद्वार तथा कुमाउ मण्डल का पिथौरागढ में आयोजित किया जायेगा।
कार्यशाला में संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल उत्तराखण्ड सरकार प्रकाष पंत ने कहा कि उत्तराखण्ड की वन पंचायतें भारत ही नही विश्व में भी एक अनूठा प्रयोग है तथा इसकी स्थापना का मुख्य उददेश्य यह था कि ्स्थानीय समुदाय वनों का कुशल प्रबन्धन कर सकेगा साथ ही वन और वन उत्पादों के माध्यम से अपनी जीविका को भी चलाता रहेगा। उन्होने कहा कि समय के साथ-2 आवश्यकता अनुसार नियमावली में परिवर्तन होता आया है तथा वर्तमान में भी अगर कुछ ऐसे बिन्दु सामने आ रहे हैं जो इसके कुशल क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं तो इसमें अवश्य संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कैम्पा, जायका, केन्द्र तथा राज्य सैक्टर जैसी विभिन्न ऐजेसियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले फण्ड का व्यवस्थित तरीके से सदुपयोग किया जाये और वित्त का इस प्रकार आवंटन किया जाये ताकि सभी वन पंचायतों को समान रूप से आवश्यकतानुसार वित्त की आपूर्ति होती रहे। उन्होने उपस्थित अधिकारियों को ऐसे स्थानीय तथा बाहरी स्थानों का भ्रमण करते हुए नवनमेशी और प्रेरणादायी उदाहरणों को अमल में लाया जाये, जहां उत्कृश्ट कार्य हुए हैं। उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि हमें वन प्रबन्धन व पर्यावरण संरक्षण के तहत वन पंचायतोें को स्वतः संशोधन निर्मित सक्षम बनाने के प्रयास किये जाने चाहिए और हमारी ओर से वित्तीय प्रबन्धन व अन्य सभी प्रकार की जरूरी सहायता की जायेगी।
कार्यशाला में वन पंचायतों के सरपचों/सदस्यों ने वन पंचातयों के प्रबन्धन में आ रही बाधाओं तथा उसके समाधान के बारे में महत्वपूर्ण सुझाव दिये। उनके द्वारा वन पंचायतों को आरक्षित वनों को छोड़कर बाकी सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन करने, विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाला फण्ड समय से व पर्याप्त देने, प्रत्येक वर्श मनरेगा के तहत मिलने वाले बजट का 20 प्रतिशत् हिस्सा वन पंचयतों के लिए आरक्षित करने, सम्पूर्ण 11 वन पंचायतों वाले जनपदों में वन पंचायतों के सशक्तीकरण हेतु अलग-2 वन प्रभाग बनाने, राज्य की सभी वन पंचायतों को कम से कम प्रतिवर्श 50 करोड़ का बजट अनिवार्य रूप से आरक्षित करने, विभिन्न प्रकार की वित्तीय ऐजेसियों के फण्ड को खर्च करने वन पंचायतों की भागीदारी सुनिश्चित करने इत्यादि सुझाव दिये गये।
कार्यशाला में प्रमुख वन संरक्षक राजेन्द्र कुमार महाजन, प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत रेखा पै जी, अपर प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड कैम्पा समित सिन्हा, अपर वन संरक्षक जायका उत्तराखण्ड अनूप मलिक, विभिन्न जनपदों के वनाधिकारी, राज्य भर से वन पंचायत सरपंच/सदस्य उपस्थित थे।