नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय 2015 से वामपंथी अतिवाद (एल डब्ल्यू ई) की रोकथाम के लिए ‘राष्ट्रीय नीति तथा कार्य योजना’ का कार्यान्वयन करता आया है। इसमें सुरक्षा तथा विकास से संबंधित उपायों सहित बहुआयामी नीति तैयार की गई है।
नई नीति की महत्वपूर्ण विशेषताएं अहिंसा के विरूद्ध शून्य सहिष्णुता जिसके साथ विकासात्मक गतिविधियों को तीव्र करना शामिल है ताकि विकास का लाभ गरीबों और प्रभावित क्षेत्रों में संवेदनशील लोगों तक पहुंच सके। गृह मंत्रालय ने 10 राज्यों के 106 जिलों को वामपंथ अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों की कोटि में रखा है। इन जिलों को गृह मंत्रालय की सुरक्षा से संबंधित व्यय योजना (एसआरई) के अंतर्गत रखा गया है, जिसका उद्देश्य परिवहन, संचार, वाहनों का किराये पर लेना, आत्म समर्पण करने वाले माओवादियों को वृत्तिका देना, सेनाओं के लिए अस्थायी अवसंरचना आदि जैसे खर्चों की राज्यों को प्रतिपूर्ति करना है। 106 जिलों में से 35 जिले जो देश भर में वामपंथी अतिवादी हिंसा के 80-90 प्रतिशत के बराबर हैं, को ‘अति प्रभावित जिलों’ की कोटि में रखा गया है। इस कोटिकरण से संसाधनों- सुरक्षा तथा विकास दोनों से संबंधित, का केंद्रित नियोजन हो पाएगा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत से जिलों में से छोटे जिले बनाए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 106 सुरक्षा संबंधित व्यय योजना (एसआरई) वाले जिलों के भौगोलिक क्षेत्र का 126 जिलों में विस्तार किया गया है और उन अत्यधिक प्रभावित 35 जिलों को 36 जिलों में बांट दिया गया है।
पिछले 4 वर्षों के दौरान वामपंथी अतिवाद के परिदृश्य में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। अहिंसा की घटनाओं में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है जिसमें 2013 की तुलना में 2017 में मृत्यु संबंधी मामलों में 34 प्रतिशत की कमी आई है। वामपंथी अतिवादी हिंसा का भौगोलिक विस्तार भी 2013 के 76 जिलों से सिकुड़कर 2017 में 58 जिलों तक रह गया है। इसके अलावा देश में फैली वामपंथी अतिवादी हिंसा का 90 प्रतिशत अकेले इन 30 जिलों तक सीमित है। इसके साथ ही कुछ नये जिले वामपंथी अतिवाद के विस्तार के केंद्र के रूप में उभरकर आए हैं।
गृह मंत्रालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि संसाधनों का नियोजन धरातल पर आए वास्तविक बदलाव के अनुरूप हो रहा है, हाल ही में राज्यों के परामर्श से प्रभावित जिलों की समीक्षा का एक विस्तृत प्रयोग शुरू किया है। तदनुसार सुरक्षा संबंधी खर्च योजना (एसआरई) जिलों की सूची में 8 नये जिले शामिल किए गए हैं और 44 उसमें से हटा दिए गए हैं।
केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के त्रि-जंक्शन पर आदिवासी क्षेत्रों में माओवादियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से केरल के 3 जिलों को एसआरई जिलों की सूची में शामिल किया गया है। इस तथ्य के वाबजूद कि इन नये जिलों में हिंसा की शायद ही कोई घटना हुई हो, यह प्रारंभिक प्रयास है।
इस प्रयोग के परिणामस्वरूप 11 राज्यों के 126 में से 90 जिले अब इस योजना में शामिल होंगे। ‘अति प्रभावित जिलों’ की सूची कांट-छांट कर 36 से 30 पर आ गई है। संशोधित कोटिकरण वास्तविक वामपंथी अतिवाद परिदृश्य का ज्यादा सही प्रतिनिधित्व करता है।