नई दिल्ली: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केन्द्र के तकनीकी सहयोग से आयुष्मान भारत के तहत व्यापक स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान के लिए स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्रों को परिचालनगत करने पर दो दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में भाग लेने वालों में राज्यों के प्रमुख सचिव एवं एनएचएम के मिशन निदेशक, राष्ट्रीय ज्ञान साझेदार, सीपीएचसी के नवोन्मेषण एवं अध्ययन केन्द्रों के प्रतिनिधि एवं विकास साझेदार शामिल थे। परामर्श समारोह की अध्यक्षता भी नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पॉल, सचिव (स्वास्थ्य) श्रीमती प्रीति सूडान एवं एएस तथा एमडी के श्री मनोज झालान द्वारा की गई।
बैठक का मुख्य उद्देश्य एचडब्ल्यूसी को व्यापक स्वास्थ्य देखभाल की प्रदायगी में सक्षम बनाने के लिए तथा प्रारूप परिचालनगत दिशा-निर्देशों के इनपुट प्राप्त करने के लिए विविध घटकों का एक साझा एवं समान समझ विकसित करना था।
कार्यशाला की कार्रवाईयां व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के विभिन्न घटकों के पूर्वालोकन प्रस्तुतीकरण के साथ आरंभ हुई। इसमें मझोले स्तर के स्वास्थ्य प्रदाताओं जैसे प्रेरित प्रत्याशियों को चुनने एवं बहुद्देशीय श्रमिकों (पुरूष एवं महिला) एवं आशा समेत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल टीम को सुदृढ़ बनाने के महत्व पर जोर दिया गया। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में भरोसा एवं विश्वास पैदा करने और निजी खर्च में कमी लाने के लिए चयनित से व्यापक स्वास्थ्य देखभाल की तरफ रूपांतरण, पुरानी बीमारियों के लिए दवाओं की अबाधित उपलब्धता और देखभाल की सतत सुविधा उपलब्ध कराने के महत्व को भी रेखांकित किया गया। प्रस्तुतीकरण में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सृजित मंचों की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया गया,जिनका प्रभावी रूप से उपयोग एचडब्ल्यूसी को परिचालनगत करने एवं उसे बढ़ावा देने में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, तपेदिक उन्मूलन की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की पूर्ति करने के लिए एचडब्ल्यूसी में तपेदिक के लिए सक्रिय मामलों की खोजों को समेकित करने पर भी बल दिया गया ।
राज्यों के भागीदारों ने निम्नलिखित विषयों पर समूह बनाकर कार्य किया : एचडब्ल्यूसी के लिए बुनियादी ढांचा एवं योजना निर्माण, मानव संसाधन, मध्य स्तर के स्वास्थ्य प्रदाताओं को संस्थागत बनाने, शहरी क्षेत्रों में एचडब्ल्यूसी के लिए आवश्यक इनपुट, रेफरल एवं देखभाल की निरंतरता सुनिश्चित करना, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए आईटी प्रणलियों को कार्यशील बनाना, अनिवार्य दवाओं एवं नैदानिकी तक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर को विस्तारित करना एवं वित्त पोषण। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों के लिए विभिन्न मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगने का अवसर भी उपलब्ध कराया गया।
राज्यों से निश्चित समय सीमा निर्धारित करते हुए राज्य विशिष्ट कार्य योजनाएं विकसित करने को कहा गया। कार्यान्वयन के पहले वर्ष में, राज्यों से चुने हुए प्रखंडों एवं जिलों में एचडब्ल्यूसी के रूप में सभी पीएफसी की प्राथमिकता तय करने को कहा गया, जहां बुनियादी ढांचा तथा मानव संसाधन का तंत्र पहले से ही मौजूद था। आकांक्षी जिलों से प्राथमिकता तय करने को कहा गया। एचडब्ल्यूसी (एचडब्ल्यूसी-एसएचसी) के रूप में उप-स्वास्थ्य केन्द्रों का समरूपी सुदृढ़ीकरण भी चरणबद्ध तरीके से आरंभ किया जाएगा, जिससे कि 2022 तक 1,50,000 एचडब्ल्यूसी को परिचालनगत करने की प्रतिबद्धता की पूर्ति की जा सके। बहरहाल, इस बात पर जोर दिया गया कि गैर-संक्रमणीय रोगों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण एवं प्रबंधन, जो कि सीपीएचसी के तहत विस्तरित सेवाओं के पैकेज का एक हिस्सा है, पर एचडब्ल्यूसी-एसएचसी में व्यापक रूप से जोर दिया जाए, जिससे कि पुरानी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप को रोका जा सके।
राज्यों से संचालनगत दिशा-निर्देशों के प्रारूप के लिए इनपुट प्रदान करने को कहा गया, जिसे शीघ्र ही अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। राज्यों से स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्रों के जरिए व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की प्रदायगी की अवधारणा एवं विजन पर राज्य एवं जिला टीमों का अनुकूलन आरंभ करने को भी कहा गया।