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अपहृता (वयस्क/अवयस्क) की बरामदगी के पश्चात् पुलिस द्वारा अग्रिम कार्यवाही के निर्देश: पुलिस महानिदेशक

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: किसी भी अपहृता (व्यस्क या अव्यस्क) की बरामदगी के पश्चात् अपहृता का 164 का बयान एवं मेडिकल की कार्यवाही के दौरान उसकी सुरक्षित अभिरक्षा सुनिश्चित करना पुलिस के लिये एक समस्या रही है एवं अनेकों मौकों पर उपरोक्त प्रक्रिया में पुलिस के लिये विषम परिस्थितियाॅ उत्पन्न होती है। उक्त प्रक्रिया में पुलिस द्वारा पालन किये जाने वाली प्रक्रिया को पुलिस महानिदेशक, उ0प्र0 द्वारा विगत दिनों वीडियो कांफ्रेसिंग के दौरान स्पष्ट किया गया था ।

पुलिस महानिदेशक, उ0प्र0 श्री सुलखान सिंह द्वारा अपहृता(वयस्क/अवयस्क) की बरामदगी के पश्चात् पुलिस द्वारा निम्नानुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये हैं ।

  • अपहरण के अपराध की प्राथमिकी दर्ज होते ही विवेचक का दायित्व होगा कि तत्काल उसकी उम्र से सम्बन्धित शैक्षणिक दस्तावेेज एवं उसके अन्तिम शिक्षण संस्थान द्वारा दिया गया आयु प्रमाण-पत्र जैसे अभिलेखीय साक्ष्य तत्काल प्राप्त किया जाये, जिससे अपहृता के बरामद होने पर उसकी आयु निर्धारित करने में समय न लगे।
  • पुलिस द्वारा अपहृता की बरामदगी की दशा में उसे थाने या कहीं भी पुलिस अभिरक्षा में कदापि नहीं रखा जाये। विवेचक का दायित्व होगा कि बरामदगी के पश्चात तत्काल न्यायिक मजिस्ट्रेट से उसकी सुपुर्दगी का आदेश प्राप्त करें व शीघ्र 164 द0प्र0सं0 का बयान दर्ज कराने हेतु तिथि प्राप्त करें। विवेचक द्वारा सुपुर्दगी करते समय 02 स्वतंत्र गवाहों के समक्ष अवमुक्त कर सभी के हस्ताक्षर पंचनामे मंे कराये जाये। यदि पीड़िता/अपहृता की उम्र 18 वर्ष से कम है या उसकी उम्र निश्चित करने में कोई संशय है और किसी अपरिहार्य कारण से न्यायिक मजिस्ट्रेट से उसकी सुपुर्दगी के संबंध में आदेश प्राप्त करना सम्भव न हो, तथा जब तक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सुपुर्दगी के आदेश न पारित किये जाये तब तक विवेचक द्वारा कार्यपालक मजिस्ट्रेट उसे जब तक अभिभावक न आ जाये या न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी सुपुर्दगी के संबंध में कोई आदेश न दिये जाये तब तक प्रतिप्रेक्षण गृह या किसी मान्यता प्राप्त सामाजिक संस्था में रखने के आदेश दिये जाये।
  • किसी भी महिला के विरूद्व घटित अपराध या अपहृता की बरामदगी के पश्चात विवेचक का यह दायित्व होगा कि वह तत्काल उसको चिकित्सीय परीक्षण हेतु जिला अस्पताल में प्रस्तुत करें। जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा सुनिश्चित किया जायेगा कि संबंधित अपहृता/पीड़िता का चिकित्सीय परीक्षण उसी दिन सायं 5 बजे 6 बजे से पूर्व निश्चित रूप से पूर्ण कर लिया जाय। यदि अपहृता/पीड़िता की आयु का निर्धारण चिकित्साीय परीक्षण के आधार पर किया जाना आवश्यक है तो आयु क संबंध में चिकित्सक का अभिमत 03 घंटे में उपलब्ध कराये जाने का प्रयास होना चाहिए। विवेचक पीड़िता/अपहृता को उसी व्यक्ति को सुपुर्द कर देगा जिसकी सुपुर्दगी से उसने पीड़िता/अपहृता को प्राप्त किया है और यदि प्रतिप्रेक्षण गृह से प्राप्त किया है तो उसे वापस प्रतिप्रेषण में दाखिल करेगा।
  • यदि 164 दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत बयान कराने में किसी प्रकार का विलम्ब होता है तो ऐसी दशा में विवेचनाधिकारी द्वारा पीड़िता/अपहृता को उसी व्यक्ति या संस्थान को अभिरक्षा में उपलब्ध कराया जाये, जिसने उसे प्राप्त किया था और 164 दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत बयान के लिए निश्चित तिथि, समय व स्थान पर उपस्थित होने की सूचना पीड़िता/अपहृता व उस व्यक्ति को दी जाये।
  • जिलाधिकारी/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक द्वारा संयुक्त बैठक करके अपने-अपने जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी/मुख्य चिकित्साधीक्षक, जिला अभियोजन अधिकारी, जिला समाज कल्याण, जिला प्रोबेशन अधिकारी, समस्त मजिस्ट्रेट तथा अन्य संबंधित अधिकारियों को शासनादेश के विषय में जानकारी देते हुए इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये।
  • प्रत्येक माह होने वाली अपराध गोष्ठी में पुलिस अधीक्षक सभी थानाध्यक्षों एवं पुलिस अधिकारियों से इस संबंध में आंकड़े प्राप्त कर मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय के अनुपालन की समीक्षा की जाये।
  • पीड़िता/अपहृता के चिकित्सीय परीक्ष एवं 164 दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत होने वाले विलम्ब के संबंध में जिला मजिस्ट्रेट/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक/मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा मुख्य चिकित्साधीक्षक/प्रोबेशन अधिकारी के साथ मासिक मानीटरिंग सेल की बैठक में जनपद न्यायाधीश को अवगत कराते हुए उसका निराकरण भी कराया जाये।

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