नई दिल्ली : हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसने वाले कल्याणकारी देवाधिदेव महादेव का दर्शन करने के वास्ते अमरनाथ की यात्रा करने वाले अब बम-बम भोले का जयकारा नहीं लगा सकेंगे. इसका कारण यह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण सुरक्षा के तहत यह आदेश दिया है. एनजीटी ने अपने एक आदेश में कहा है कि अमरनाथ यात्रियों के जयकारा लगाने, मंत्रोंच्चार करने या फिर घंटिया-मंजीरे बजाने से पर्यावरण को नुकसान हो सकता है. उसने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आदेश दिया है कि वह जयकारे और मंत्रों के उच्चारण पर रोक लगाये. इसके साथ ही उसने आखिरी चेक प्वाइंट के बाद यात्रियों को घंटियां और मोबाइल फोन ले जाने पर भी रोक लगा दिया है.
एनजीटी की ओर से इस प्रकार के आदेश दिये जाने के बाद सोशल मीडिया पर उसकी आलोचना भी की जा रही है. सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि एनजीटी अपनी हदों को लांघकर अब धार्मिक मामलों में गैर-जरूरी तरीके से अनावश्यक दखल दे रहा है. एनजीटी का यह आदेश ऐसे समय आया है, जब दिल्ली के रोहिणी इलाके में मेट्रो निर्माण के दौरान शोर होने की एक बच्ची की शिकायत का संज्ञान लेने के कारण उसकी आलोचना हो रही है.
यह पहली बार नहीं जब एनजीटी के आदेश पर लोगों ने एतराज जताया हो. इसके पहले जब उसने वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या 50 हजार तक सीमित करने का आदेश दिया था, तब भी लोगों ने नाराजगी जाहिर की थी. एनजीटी के इस आदेश के खिलाफ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश पर रोक लगा दी थी.
बोर्ड का कहना था कि एनजीटी ने जो आदेश दिया है, वह उसे देने का अधिकार ही नहीं. उसे सिर्फ पर्यावरण के मामले में सुनवाई करने का अधिकार है. वैसे इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर भी साधु-संत आपत्ति जता चुके हैं. यह आदेश उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिवलिंग की पूजा में भस्म के इस्तेमाल को रोकने को लेकर था. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश शिवलिंग को क्षरण से बचाने के इरादे से दिया था.
दरअसल, एक याचिका में नदी के जल के स्थान पर आरओ का पानी इस्तेमाल करने और भस्म का प्रयोग बंद करने की मांग की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कथित तौर पर सही तरह न समझ पाने के चलते महाकाल मंदिर में आरओ का इस्तेमाल यह कहकर होने लगा था कि ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है. वहां इस आशय के सूचना बोर्ड भी लग गये थे, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने तो ऐसा कहा ही नहीं.
वैसे भस्म रोकने के उसके आदेश पर भी साधु-संतों का कहना है कि जब शिवलिंग को दोबारा स्थापित करने की परंपरा है, तब फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई मतलब नहीं. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के जल्लीकट्टू पर रोक लगाने और दीवाली के दौरान दिल्ली-एनसीआर में पटाखे बेचने पर प्रतिबंध के फैसलों पर भी आम लोग आपत्ति जता चुके हैं.