“भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता को हटाना है तो लोगों को आगे बढ़ने के जज़्बे को बनाये रखना चाहिए जिससे कि जीवन में कभी भी अभाव का एहसास न हो” ये बात प्रोफेसर गिरीश ने एक सेमिनार में सभी को संबोधित करते हुते कहा।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में भारत के सामाजिक व आर्थिक असमानता को लेकर एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमे मुख्यअतिथि के रूप में आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरीश चंद्र सक्सेना जी उपस्थित रहे , साथ ही फैजाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मनोज दीक्षित, प्रोफेसर सुधीर के जैन, प्रोफेसर एनएमपी वर्मा व प्रोफेसर नायक समेत विश्विद्यालय के शिक्षक व कई शोध छात्र-छात्रायें भी मौजूद रहे । सेमिनार प्रोग्राम की एंकर मिस श्रुतीकृति रस्तोगी ने सभी अतिथियों, शिक्षकों व छात्राओं का शुक्रियादा करते हुए बताया कि आज का समय सामाजिक और आर्थिक असमानताओं से गुजर रहा है, जिसके लिए हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि किस प्रकार से हमारा देश आर्थिक व सामाजिक चीज़ो से ज़ुड़े। वही मुख्यातिथि के रूप में मौजूद प्रो गिरीश ने भारत में सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओ पर बात करते हुए कहा कि मनुष्य अपने जीवन में बहुत सी चीज़ो को करने के बाद विचार विमर्श करता है मगर लोगों के यह नही करके बल्कि किसी कार्य को करने से पहले उसके बारे में जरूर समझना चाहिए जिससे कि उनके जीवन में आर्थिक प्रक्रियाओं से गुजर रही चीज़ो के बारे में सही से जानकारी हो जाये।
उन्होंने आगे कहा कि देश में आर्थिक व सामाजिक असमानता बढ़ने की एक वजह यह भी है कि लोगों के अंदर संतोष दिन पर दिन खत्म होता जा रहा है जिससे की वह यह नहीं समझ पाता है कि वास्तविक सुख भौतिक समृद्धि में नही बल्कि संतोष और मानसिक शांति में है ।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रोफेसर मनोज दीक्षित ने देश में बढ़ती इस आर्थिक और सामाजिक असमानता के लिए ख़त्म हो रही प्रायमरी शिक्षा को भी एक बड़ी वजह बताया, जिसमे प्राईवेट स्कूलों व विद्यालय की मुख्य भूमिका है। असमानता को शिक्षा से जोड़ते हुए कहा कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा नहीं बल्कि सीख मिलती थी जो आर्थिक समानता में बहुत उपयोगी हुआ करती थी, पर आज के समय मे प्राईवेट स्कूलों के आ जाने से समाज में असमानता और बढ़ी है । उन्होंने आगे बताया कि देश में आज जो असमानता बढ़ी है को उसकी एक वजह यह भी है कि समाज में आज के समय मे हर व्यक्ति सिर्फ खुद की सफलताओं के बारे में ही सोच रहा है उसका समाज के प्रति कोई झुकाव नही होता जिससे खुद की तरक्की में लिप्त व्यक्ति अकेला अपनों दौड़ में व्यस्त है वह कमजोर व्यक्ति का हाँथ पकड़ उसे भी आगे ले जाने के बारे में नही सोचता जिसका परिणाम हमे आज इस आर्थिक व सामाजिक असमानता के रूप में आज दिख रहा।