नई दिल्लीः आईएफएफआई गोवा 2017 में ‘एसेसिबल फिल्म्स’ पर एक खंड है जिसकी शुरुआत आज ‘सेक्रेट सुपरस्टार’ एवं ‘हिन्दी मीडियम’ की स्क्रीनिंग के साथ हुई। दिल्ली स्थित एक संगठन-सक्षम ने इन फिल्मों में श्रव्य निरूपण एवं उसी भाषा की सबटाइटिलिंग जोड़ दी है जिससे कि इन फिल्मों को वधिरों एवं नेत्रहीनों समेत सभी लोगों के लिए सुगम बनाई जा सके।
‘टीम सक्षम’ आज एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान मीडिया से रूबरू हुई। संवाददाता सम्मेलन में सुश्री रूमी के सेठ (प्रबंधक संस्थापक ट्रस्टी-सक्षम), श्री दीपेंद्र मनोचा (संस्थापक ट्रस्टी-सक्षम), श्री नरेन्द्र जोशी (श्रव्य निरूपक एवं स्क्रिप्टराइटर) तथा श्री तह हाजिक (सदस्य सचिव, संजय सेंटर फॉर स्पेशल एजुकेशन, गोवा) ने हिस्सा लिया जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इन फिल्मों के इन संस्करणों के सृजन एवं स्क्रीनिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रूमी सेठ ने कहा कि ‘ यह सम्मेलन उन सम्मेलनों से विशिष्ट और अलग है जिसका आप लोग हिस्सा बनते रहे हैं। यह मनोरंजक परियोजना 2005 में आरंभ हुई। अगर आप बैठ कर और अपनी आंखों को बंद करके कोई फिल्म देखेंगे तो आप डॉयलॉग के अतिरिक्त इसकी अनुभूति कर सकेंगे। पिछले वर्ष ‘भाग मिल्खा भाग’ की स्क्रीनिंग के दौरान हमने अनुभव किया था कि ऐसे विशेष दृश्यों के दौरान, जिनमें कोई डॉयलॉग नहीं थे, नेत्रहीन व्यक्तियों को इसका पता भी नहीं चल पाता था कि फिल्म में क्या चल रहा है। हमारे पास एक व्यॉयस ओवर और एक स्क्रिप्टराइटर श्री नरेन्द्र जोशी हैं और हम सभी मिल बैठ कर यह फैसला करते हैं कि उस स्पेस को भरने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
श्री दीपेंद्र मनोचा ने बताया कि ‘ फिल्मों की यह उपलब्धता समावेश को लेकर है। एक नेत्रहीन व्यक्ति के रूप में, मेरे मन में यह सवाल उठेगा कि क्या मेरे पास किसी अन्य व्यक्ति की तरह सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखने का अधिकार है या नहीं। अगर हमारे पास यह अधिकार है तो हमें उपलब्ध सभी सुविधाओं का उपयोग करने का भी हक है। शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की चलने, बैठने, बोलने आदि के लिहाज से कुछ सीमाएं हो सकती हैं। यह ऐसे व्यक्तियों की सहायता करने एवं उन्हें सक्रिय समाज का एक हिस्सा बनाने की एक पहल है। ‘एसेसिबल फिल्म्स’ खंड का प्रयास इस दिशा में उठाया गया एक कदम भर है।
इस अवधारणा पर कार्य करने के दौरान आने वाली तकनीकी चुनौतियों के बारे में बोलते हुए नरेन्द्र जोशी ने मीडिया को बताया कि, ‘ चुनौती दिव्यांग व्यक्तियों के लिए डॉयलॉग के बीच में भावनाओं को सृजित करने की है जिससे कि फिल्म देखते समय वे उसके प्रवाह के साथ खुद को बनाये रख सकें। इस अनुभव को देखते हुए पूरी फिल्म के दौरान हमारे पास लगभग 300-400 स्पेस हैं। 3 या 5 सेकेंड में आपको यह समझने की आवश्यकता है कि वह महत्वपूर्ण हिस्सा कौन सा है जो किसी नेत्रहीन व्यक्त्िा के लिए दृश्य को समझने में सहायता कर सकता है। पूरी फिल्म के लिए हम जिस स्क्रिप्ट पर काम करते हैं, समस्त प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस पर फिर से कार्य किए जाने की जरुरत है। हमने यह पहल अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘ब्लैक’ के साथ शुरु की थी और हमें बेशुमार सफलता मिली।