नई दिल्ली: जाने-माने अंतरिक्ष वैज्ञानिक यूआर राव नहीं रहे. सोमवार सुबह 2.30 बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. वो 85 वर्ष के थे. इसरो के मुखिया रहते हुए प्रो. राव ने अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को कई बहुमूल्य तोहफे दिए हैं. उन्हें इसी साल पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था. प्रो राव को याद करते हुए उनकी ज़िंदगी की एक झलक…
राव के ही नेतृत्व में, भारत ने 1975 में अपने पहले सैटलाइट ‘आर्यभट्ट’ को बनाया. इसके अलावा 18 और सैटलाइट जिसमें भास्कर, ऐप्पल, रोहिणी, इनसैट-1 और इनसैट-2 सीरीज भी भास्कर के नेतृत्व में ही बनाया गया. रिमोट सेंसिंग सैटलाइट आईआरएस-1बी को डिजाइन किया गया और फ्रैबिकेशन के बाद लॉन्च किया गया. इससे कम्युनिकेशन, रिमोट सेंसिंग और मौसम की जानकारी में मदद मिली.
1985 में डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस में स्पेश कमिशन एंड सेक्रेटरी के चेयरमैन का पद संभालने के बाद राव ने रॉकेट तकनीक पर जोर दिया. इसका परिणाम 1992 में एएसएलवी रॉकेट के रूप में सामने आया. वो राव ही थे जिनकी वजह से ऑपरेशनल पीएसएलवी लॉन्च वीइकल बनाया गया, जिससे 850 किलो तक के सैटलाइट को ऑर्बिट में लॉन्च किया जा सकता था. अपने कार्यकाल में इनसैट सैटलाइट लॉन्च कराने की भूमिका भी उन्होंने निभाई. इस लॉन्चिंग ने इसरो में खुद पर भरोसे को पैदा किया.
उन्होंने भारत के लिए आर्यभट्ट से लेकर मॉम यानी मार्स आॅर्बिट मिशन के लिए लगातार काम किया और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का नाम अग्रणी करने में अमूल्य योगदान दिया. उन्होंने 1972 में भारत को सैटलाइट टेक्नोलॉजी देने का बीड़ा उठाया और उन्हें के नेतृत्व और निर्देशन में पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट मिला. इसके अलावा 20 और उपग्रह का डिजायन, निर्माण और प्रक्षेपण उन्हीं के निर्देशन में हुआ.
राव पिछले कई सालों से विदेशी यूनिवर्सिटी समेत कई संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर कार्य कर रहे थे. उन्होंने 10 से ज्यादा इंटरनेशनल अवॉर्ड और कई नेशनल अवॉर्ड जीते थे. राव ने मेसेच्युसेट्स इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी (MIT) में भी काम किया था. मई 2016 में वह पहले भारतीय हो गए जिन्हें इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन की ओर से हॉल आॅफ फेम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
इसरो के पूर्व चेयरमैन राव फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी के गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन और तिरुअनंतपुरम स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में चांसलर भी थे.