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इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को न पैसे और हुकूमत से हासिल नही किया जा सकता-मौलाना मोहम्मद रज़ा

इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को न पैसे और हुकूमत से हासिल नही किया जा सकता-मौलाना मोहम्मद रज़ा
उत्तर प्रदेश

लखनऊः समाज में बहुत से लोग सम्मान और प्रतिष्ठा को बड़े लोगों, अधिक दौलत और लक्जरी जिंदगी में तलाश करते हैं, जबकि यह गलत सोंच बहुत सारे गुनाह और अत्याचार को जन्म देती है, और हम देखते हैं पैसे और बड़े लोगों से संबंध में सम्मान तलाश करने वाला कभी अपने आप को सम्मानित महसूस नहीं कर पाता क्योंकि सम्मान, इज़्जत और प्रतिष्ठा का स्रोत अल्लाह है, और इंसान रुपया पैसा, माल दौलत और दुनियादारी के पीछे भागने के बजाए केवल गुनाह को छोड़ दे सम्मान तक ख़ुद पहुंच जाएगा, जैसाकि इमाम हसन अ.स. फरमाते हैं कि, जब भी बिना किसी बड़े लोगों के सहारे और दुनिया की पीछे भागे सम्मान चाहो और बिना हुकूमत के लोगों के दिलों में अपना दबदबा पैदा करना चाहो तो गुनाह की गंदगी से बाहर रहो और इज्जत के मालिक की पैरवी करो।

मौलाना मोहम्मद रज़ा आज यहां जमाल हुसैन के घर स्थित हुसैनी मार्किट तालकटोरा राजा जी पुरम लखनऊ मे मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि इतिहास गवाह है कि बहुत से लोगों ने सम्मान और इज्जत पाने के लिए साम्राज्यवादी हुकूमतों से हाथ मिला लिया, और उनके घटिया कामों में शामिल हो कर और दुनिया के चकाचैंध और रंगीनियों में घुस कर सम्मान पाना चाहा, लेकिन शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अ.स. ने इन लोगों के विपरीत बातिल और साम्राज्यवादी हुकूमत से ख़ुद को अलग कर के ऐसी हुकूमत में जीने से बेहतर मौत को समझा और फरमाया यजीद ने मुझे क़त्ल होने और अपमानित जिंदगी के बीच ला कर खड़ा कर दिया है, लेकिन मैं कभी अपमानित जिंदगी नहीं गुजार सकता, क्योंकि इसे अल्लाह उसका रसूल स.अ. और अहले बैत अ.स. कभी पसंद नहीं करते, मैं साम्राज्यवादी ताक़त यजीद का डट कर मुक़ाबला करूंगा और शहादत को अपमानित जिंदगी के मुक़ाबले ज्यादा पसंद करूंगा, और ख़ुदा की क़सम यजीद जो मुझ से चाहता है मैं कभी उसे अंजाम नहीं दूंगा, यहां तक कि ख़ून में लतपथ अल्लाह की बारगाह में हाजिर हो जाऊंगा।

मौलाना मोहम्मद रज़ा ने कहा कि आज भी बहुत से अनपढ़, जाहिल और कट्टर लोग साम्राज्यवादी ताक़तों से हाथ मिला कर अपने हाथों को मासूमों के खू़न से रंगीन किए हुए हैं, और मासूमों और मजलूमों के खू़न से हाथ रंग कर वह सम्मान और इज्जत की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, ऐसे लोग अपनी शैतानी सोंच को इस तरह बयान करते हैं कि सम्मान, प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता को मतलब अलगाव है कि किसी भी तरह सब से अलग हो कर अपना साम्राज्य खड़ा किया जाए, जबकि ऐसा करते हुए इंसान मर के दुनिया से चला भी जाए तब भी सम्मान नहीं पा सकता और इसी बात को इमाम हुसैन अ.स. ने अपनी शहादत से कुछ क्षण पहले भी पूरी दुनिया के सामने बयान करते हुए कहा, कि मुझे मौत से कोई डर नहीं, साम्राज्यवादी ताक़तों से मुक़ाबला करते हुए मर जाना ही सम्मानजनक मौत है, और सम्मानजनक मौत ही मरने के बाद भी इंसान को हमेशा के लिए जिंदा रखती है, क्या तुम लोग मुझे मौत से डराते हो, यह तुम लोगों का भ्रम है, मैं कभी भी मौत से डर कर बातिल और साम्राज्यवादी ताक़त से हाथ मिला कर उनकी अपमानजनक जिंदगी और अत्याचारों में शामिल नहीं हो सकता, याद रखना तुम लोग मुझे मार कर मेरे सम्मान, मेरी प्रतिष्ठा और मेरी शराफ़त को कम नहीं कर सकते, मैं मौत से बिल्कुल नहीं डरता।

मौलाना ने मजलिस के अंत में कहा कि इमाम हुसैन अ.स. ने कर्बला में साबित कर दिया कि सम्मान, इज़्जत और प्रतिष्ठा को न पैसे और हुकूमत से हासिल किया जा सकता है न ही भीड़ भाड़ जमा कर के साम्राज्य से हासिल किया जा सकता है, बल्कि अल्लाह की पैरवी और गुनाह से दूरी कर के ही समामान हासिल किया जा सकता है।

मजलिस का प्रारंभ कामरान हैदर, अफज़ाल हुसैन और औन मुहम्मद की पेष खानी से हुवा आखिर में नौहा ख्वान कामिल रूदौलवी ने पेष किया और तमाम अज़ादारो ने इमामे हुसैन को अपनी श्रद्धांजलि दी ।

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