नई दिल्ली: श्री राम विलास पासवान, केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री ने विगत तीन वर्षों के दौरान मंत्रालय की उपलब्धियों और पहलों के बारे में जानकारी देने के लिए आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। श्री पासवान ने कहा कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने मई 2014 से लेकर अब तक पिछले तीन वर्षों में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। खाद्य प्रबंधन को और अधिक बेहतर बनाने और देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक पहलें की गई हैं। श्री पासवान ने कहा कि सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता किसानों और उपभोक्ताओं का हित देखना है।
जरूरतमंद लोगों को खाद्यान्न पहुंचाने और पारदर्शिता तथा जवाबदेही के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली मेंप्रमुख सुधार
उचित दर दुकानों का स्वचलन : नवम्बर 2014 में पायलट योजना और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में अनुभवों के आधार पर खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने उचित दर दुकानों पर पीओएस मशीनों के इस्तेमाल के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। वर्तमान में (15 मई 2017 की स्थिति के अनुसार) 5,26,377 उचित दर दुकानों में से 2,04,162 दुकानों में पीओएस मशीनें उपलब्ध हैं।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (नकद) : 21 अगस्त 2015 को ‘खाद्य सब्सिडी का नकद अंतरण नियम, 2015’ अधिसूचित किया गया था जिसके तहत खाद्य सब्सिडी सीधे लाभभोगियों के खातों में जमा की जाती है। वर्तमान में यह योजना चंडीगढ़, पुडुचेरी और दादर एवं नगर हवेली (कुछ शहरी क्षेत्रों में) लागू की जा रही है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आधार सीडिंग : जाली/अपात्र/नकली राशन कार्डों को समाप्त करने के लिए तथा जरूरतमंद लोगों तक अनाज पहुंचाने के लिए (15 मई 2017 की स्थिति के अनुसार) 77.56 प्रतिशत अर्थात्लगभग 17.99 करोड़ राशन कार्ड आधार के साथ जोड़े गए हैं। आधार अधिनियम, 2016 की धारा 7 के तहत विभाग ने सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने अथवा नकद अंतरण प्राप्त करने के लिए आधार के इस्तेमाल के संबंध में 8 फरवरी 2017 को अधिसूचना जारी की है।
राशन कार्डों को समाप्त करना : राशन कार्डों/लाभभोगियों के रिकार्डों के डिजीटीकरण, आधार सीडिंग के कारण नकली राशन कार्डों की समाप्ति, स्थानातंरण, निवास स्थान परिवर्तन, मृत्यु, लाभभोगियों की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप 2.33 करोड़ राशन कार्ड समाप्त कर दिए गए हैं। इससे सरकार ने प्रतिवर्ष लगभग 14,000 करोड़ रुपए की खाद्य सब्सिडी को बेहतर ढंग से जरूरतमंदलोगों तक पहुंचाया है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में डिजिटल/कैशलेस/लेस–कैश भुगतान : लेस-कैश/डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए विभाग ने 7 दिसम्बर 2016 को एईपीएस, यूपीआई, यूएसएसडी, डेबिट/रुपे कार्डों और ई-वॉलेट के इस्तेमाल के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। वर्तमान में 10 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में कुल 50,117 उचित दर दुकानों में डिजिटल भुगतान की सुविधा उपलब्ध है।
भारतीय खाद्य निगम के कार्यों में सुधार
साइलो : भंडारण में आधुनिक प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल
गेहूं और चावल के भंडारण के लिए भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों सहित अन्य एजेंसियों द्वारा जन-निजी-भागीदारी पद्धति पर स्टील साइलो के रूप में 100 लाख टन भंडारण क्षमता बनाए जाने की योजना का अनुमोदन किया गया है। यह निर्माण 2019-20 तक तीन चरणों में किए जाने की योजना है।
2016-17 में 36.25 लाख टन अनाज के भंडारण के लिए साइलो ऑपरेटरों के चयन के लक्ष्य के विरुद्ध 37.50 लाख टन अनाज के लिए ऑपरेटरों को चिह्नित किया गया है। 5 लाख टन क्षमता के साइलो निर्माण के लक्ष्य की तुलना में 4.5 लाख टन क्षमता के साइलो का निर्माण पूरा कर लिया गया है और 0.5 लाख टन क्षमता के साइलो शीघ्र ही बना लिए जाएंगे।
डिपो ऑनलाइन प्रणाली
भारतीय खाद्य निगम के गोदामों के सभी प्रचालनों को ऑनलाइन करने तथा डिपो स्तर पर लीकेज को रोकने और कार्यों को स्वचलित करने के उद्देश्य से मार्च 2016 में 27 राज्यों में पायलट आधार पर 31 डिपुओं में ‘डिपो ऑनलाइन’ प्रणाली शुरू की गई थी। वर्तमान में भारतीय खाद्य निगम के 510 डिपुओं में ऑनलाइन प्रणाली लागूकर दी गई है।
भारतीय खाद्य निगम में पेंशन योजना और सेवानिवृत्ति उपरांत चिकित्सा योजना
भारतीय खाद्य निगम के कर्मचारियों की लम्बे समय से यह मांग थी कि पेंशन योजना और सेवानिवृत्ति उपरांत चिकित्सा योजना शुरू की जाए। सरकार ने अगस्त 2016 में इन दोनों योजनाओं को अनुमोदित कर दिया तथा इनसे भारतीय खाद्य निगम में सेवारत और सेवानिवृत्ति कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। पेंशन योजना 1 दिसंबर 2008 से और सेवानिवृत्ति उपरांत चिकित्सा योजना 1 अप्रैल 2016 से लागू कर दी गई है।
किसानों को समर्थन
भारतीय खाद्य निगम ने देश के पूर्वी राज्यों में जहां धान की मजबूरन बिक्री किए जाने और खरीद प्रणाली के निष्प्रभावी होने की शिकायतें प्राय: प्राप्त हो रही थीं, खरीद के लिए विशेष पहल की है। इसके अनुसार, भारतीयखाद्य निगम द्वारा उत्तर प्रदेश (विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में), बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असमके लिए एक पंचवर्षीय राज्य–वार कार्य–योजना तैयार की गई है (छत्तसीगढ़ और उड़ीसा में खरीद व्यवस्था पहले से ही पुख्ता है)।
इन राज्यों में चावल की खरीद को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है जिससे इन राज्यों में धान की पैदावार वाले जिलों के किसानों तक सरकारी खरीद का लाभ पहुंचे। पूर्वी राज्यों से खरीफ मौसम 2019-20 के अंत तक 155.93 लाख टन खरीद का लक्ष्य है। खरीफ मौसम2014-15 में इन राज्यों में 53.65 लाख टन की खरीद की गई।
तदनुसार, भारतीय खाद्य निगम ने खरीफ मौसम 2015-16 में 635 खरीद केन्द्र खोले (इसमें निजी सहायता से खोले गए 401 केन्द्र शामिल हैं) और खरीफ मौसम 2016-17 में (28 मार्च 2017 की स्थिति के अनुसार) 722 खरीद केन्द्र खोले (इसमें निजी सहायता से खोले गए 459 केन्द्र शामिल हैं) जबकि पिछले मौसम में केवल 141 केन्द्र खोले गए थे। खरीफ मौसम 2015-16 और खरीफ मौसम 2016-17 में (28 मार्च 2017 की स्थिति के अनुसार) क्रमश: 61,841 और 20,063 खरीद केन्द्र खोले गए हैं।
भारतीय खाद्य निगम, राज्य एजेंसियों और निजी एजेंसियों के इन प्रयासों के फलस्वरूप खरीफ मौसम 2015-16 में चावल की खरीद बढ़कर 70.70 लाख टन और वर्तमान खरीफ मौसम 2016-17 में 63.99 लाख टन हो गई है।
गन्ना बकाया की समाप्ति
पिछले पांच चीनी मौसमों के दौरान चीनी की घरेलू खपत की तुलना में निरंतर सरप्लस उत्पादन के कारण चीनी की कीमतें कम रहीं, जिसके चलते पूरे देश में चीनी उद्योग में वित्तीय प्रवाह कम रहा और गन्ना बकाया इकट्ठा हो गया। इसकी वजह से चीनी मौसम 2014-15 में अखिल भारतीय स्तर पर गन्ना मूल्य बकाया 15 अप्रैल 2015 की स्थिति के अनुसार सर्वाधिक 21,837 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इस स्थिति पर काबू पाने के उद्देश्य से सरकार ने कई उपाय किए:
– सॉफ्ट लोन स्कीम के तहत 4305 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की गई जिसमें बैंकों के माध्यम से चीनी मिलों की ओर से राशि सीधे किसानों के खातों में जमा कराई गई। इससे लगभग 32 लाख किसानों को लाभ पहुंचा। इस योजना के तहत 425 करोड़ रुपए की राशि ब्याज की रियायत के रूप में जारी की गई है।
– ईबीपी प्रोग्राम के तहत चीनी मौसम 2015-16 के दौरान (10 अगस्त 2016 तक) लाभकारी मूल्य निर्धारित करके और एथनॉल की आपूर्ति पर उत्पाद शुल्क समाप्त करके एथनॉल की आपूर्ति को सुचारू बनाया गया।
– चीनी का आयात और एथनॉल की आपूर्ति करने वाली मिलों पर किसानों को देय गन्ना मूल्य बकाया के लिए पेराई किए गए गन्ने पर 4.50 रुपए प्रति क्विंटल की ‘निष्पादन आधारित उत्पादन सब्सिडी’ दी गई। इस योजना के तहत अब तक 525 करोड़ रुपए की राशि जारी की जा चुकी है।
इन उपायों के फलस्वरूप चीनी मौसम 2014-15 के लिए किसानों को देय बकाया का 99.33% और चीनी मौसम 2015-16 के लिए 98.21% भुगतान किया जा चुका है।
एथनॉल ब्लैंडिंग कार्यक्रम में ऐतिहासिक सफलता प्राप्त हुई है क्योंकि एथनॉल मौसम 2015-16 के दौरान एथनॉल की आपूर्ति 110 करोड़ लीटर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है, एथनॉल की आपूर्ति इस स्तर तक पहले कभी नहीं पहुंची। 2014-15 और 2013-14 मौसमों के दौरान एथनॉल की आपूर्ति क्रमश: 68 करोड़ लीटर और 37 करोड़ लीटर थी।
लेवी प्रणाली की समाप्ति
पिछले वर्षों में लेवी प्रणाली के तहत चावल मिल मालिकों/डीलरों से चावल की खरीद प्रत्येक राज्य के लिए अलग से घोषित मूल्य पर की जाती थी। राज्य सरकारों द्वारा चावल पर लेवी आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत केन्द्र सरकार द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए लगाई जाती थी। चूंकि सरकारी एजेंसियों द्वारा खोले गए खरीद केन्द्रों के माध्यम से किसानों से धान की सीधी खरीद किसानों के लिए अधिक लाभकारी है, इसलिए भारत सरकार ने खरीफ मौसम 2015-16 में 1 अक्तूबर 2015 से लेवी समाप्त कर दी थी।
दालों की कीमतों को स्थिर रखना
उपभोक्ताओं के लिए वाजिब मूल्य पर दालों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उपभोक्ता मामले विभाग के मूल्य स्थिरीकरण कोष के माध्यम से पहली बार 20 लाख टन तक दालों का बफर स्टॉक बनाया गया है। 15 मई 2017 की स्थिति के अनुसार लगभग 20 लाख टन दालों का बफर स्टॉक बनाया जा चुका है जिसमें 16.27 लाखटन दालें सीधे किसानों से खरीदी गईं और 3.79 लाख टन दालें आयात की गईं ताकि किसानों को उनका लाभकारी मूल्य प्राप्त हो। खरीफ मौसम 2016-17 के दौरान 14.71 लाख टन दालों की उल्लेखनीय खरीद की गई जिससे लाखों किसानों को लाभ पहुंचा। दालों की उपलब्धता के लिए इस तरह के प्रयासों से उनका उत्पादन अधिक हुआ और कीमतें वाजिब रहीं जिससे व्यापक स्तर पर उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचा।
उपभोक्ता संरक्षण संबंधी पहलें
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन
अगस्त 2016 में एक नया एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल (INGRAM) (http:/consumerhelpline.gov.in) शुरू किया गया जिससे उपभोक्ताओं को जागरूक किया जा सके और ऑनलाइन शिकायतें दर्ज कराई जा सकें तथा वास्तविक समय के आधार पर शिकायतों की स्थिति का पता लगाया जा सके। यह पोर्टल हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।
पोर्टल में 24×7 शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं। उपभोक्ता अखिल भारतीय टोल–फ्री नंबरों 1800-11-4000 तथा शॉर्ट कोड 14404 के माध्यम से भी काल सेंटर एजेंटों की सहायता से अथवा ऑनलाइन अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। पोर्टल में हर महीने लगभग 40,000 शिकायतें प्राप्त हो रही हैं।
उपभोक्ता हेल्पलाइन को अधिक कार्यकुशल बनाने और प्रतीक्षा अवधि को कम करने के लिए उपभोक्ता हेल्पलाइन एजेंटों की संख्या 2016 में 14 से बढ़ाकर 60 कर दी गई है और जल्दी ही आंचलिक उपभोक्ता हेल्पलाइनस्थापित करके यह संख्या 120 कर दी जाएगी।
शिकायतों का शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने के लिए हेल्पलाइन में लगभग 240 कंपनियों के साथ साझेदारी कीगई है जिसमें प्रमुख ई–कॉमर्स, उत्पाद और सेवा कंपनियां (कनवर्जेन्स पार्टनर के रूप में) शामिल हैं। इसके द्वारा प्राप्त शिकायतें निपटान के लिए ऑनलाइन उन कंपनियों को भेज दी जाती हैं और हेल्पलाइन द्वारा उसकी मॉनीटरिंग की जाती है।
भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्ध शिकायतें (GAMA)
भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्ध शिकायतों के निपटान के लिए मार्च 2015 में एक पोर्टल ‘भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्धशिकायतें’ (GAMA) शुरू किया गया। उपभोक्ता इस पोर्टल पर झूठे/भ्रामक विज्ञापनों के विरूद्ध शिकायतें दर्ज करा सकते हैं।
GAMA पोर्टल इन शिकायतों पर कार्रवाई करने और सेल्फ रेगुलेशन संबंधी परामर्श देने के लिए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) और विभाग के बीच हस्ताक्षरित सहमति ज्ञापन के तहत एएससीआई द्वारा प्रचालित किया जाता है। अब तक GAMA पोर्टल पर 3220 शिकायतें दर्ज कराई जा चुकी हैं। इनमें से 1683 शिकायतों का निपटान किया जा चुका है और 750 शिकायतें अस्वीकार की गई हैं। शेष शिकायतों को आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित मंत्रालयों को भेज दिया गया है।
अन्य डिजिटल पहलें
दिसम्बर 2016 में ई-कॉमर्स शिकायतों के लिए एक ऑनलाइन उपभोक्ता मध्यस्थता केन्द्र स्थापित किया गया और इसे कार्यरत बनाने की कार्रवाई की जा रही है। दिसम्बर 2016 में ‘स्मार्ट कंज्यूमर’ नामक एक मोबाइल ऐप भी शुरू की गई है। इस ऐप में उपभोक्ता किसी भी पैकबंद वस्तु पर प्रिंट किए गए बार कोड को स्कैन कर उस उत्पाद, कंपनी आदि के बारे में जानकारी ले सकते हैं और शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं।
विभाग ने जागरूकता पैदा करने, फीडबैक लेने और जहां भी आवश्यक हो नीतिगत हस्तक्षेप करने जैसे मुद्दों के संबंध में उपभोक्ताओं के साथ विचार-विमर्श करने के उद्देश्य से एक सोशल मीडिया नेटवर्क ‘लोकल सर्कल्स‘ के साथ भी समझौता किया है। उपभोक्ताओं को इंटरनेट और डिजिटल सुरक्षा के संबंध में शिक्षित करने के लिए ‘गूगल इंडिया’ के सहयोग से दिसंबर 2016 में एक माइक्रोसाइट (https://goo.gl/8Xcyhu) शुरू की गई है। इस माइक्रोसाइट पर इंटरनेट सुरक्षा, सुरक्षित वित्तीय लेन-देन और ई-कॉमर्स के बारे में प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर उपलब्ध हैं।
प्रत्यक्ष बिक्री
Ease of Doing Business के लिए अंतर-मंत्रालय समिति के साथ व्यापक विचार-विमर्श करने के बाद प्रत्यक्ष बिक्री के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। ये दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को परामर्श के रूप में जारी किए गए हैं और इनमें परादर्शिता, उपभोक्ताओं के लिए सुविधा और शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना शामिल है।
भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016
22 मार्च, 2016 को एक नया भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 अधिसूचित किया गया जिसके तहत भारतीय मानस ब्यूरो को भारत के एक राष्ट्रीय मानक निकाय के रूप में स्थापित गया है। इस अधिनियम में वस्तुओं, सेवाओं और प्रणालियों के साथ-साथ मानकीकरण के लिए वस्तुओं और प्रक्रियाओं को शामिल करने के लिए प्रावधान किए गए हैं। इससे सरकार किसी भी वस्तु, प्रक्रिया अथवा सेवा को स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण, धोखाधड़ी को रोकने आदि की दृष्टि से आवश्यकतानुसार अनिवार्य प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेशन) के तहत ला सकती है। मूल्यवान धातु से बनी वस्तुओं की हालमॉर्किंग को अनिवार्य बनाने के भी प्रावधान किए गए हैं। नए अधिनियम में निर्माताओं को यह सरल विकल्प दिया गया है कि वे निर्धारित मानकों का पालन करने और इस आशय का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए निर्धारित मानकों के पालन की स्व-घोषणा के सरल तरीके को अपना सकते हैं। इससे केन्द्र सरकार भारतीय मानक ब्यूरो के अलावा वस्तुओं और सेवाओं में मानकों के पालन को सत्यापित करने और इस आशय का प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए किसी प्राधिकरण को नियुक्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त ऐसी वस्तु की मरम्मत करने या उसे वापस लिए जाने का भी प्रावधान है जिस पर मानक चिह्न हो किन्तु वह संगत भारतीय मानक के अनुरूप न हो।
विधिक माप (पैकबंद वस्तुएं) नियम
व्यापार को आसान बनाने के लिए आयातित पैकबंद वस्तुओं पर लेबल लगाए जाने की छूट देने के लिए विधिक माप (पैकबंद वस्तुएं) नियमों में संशोधन किया गया है। छोटे बुनकरों के हित में हथकरघा बुनकरों को क्वायल मेंबेचे गए धागों के लिए छूट दी गई। रेडीमेड वस्त्र उद्योग के हितों की रक्षा करने के लिए यह एडवाइजरी जारी कीगई कि बिना पैक किए हुए कपड़े विधिक माप (पैकबंद वस्तुएं) नियमों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से विधिक माप (पैकबंद वस्तुएं) नियम और आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों को एक दूसरे के अनुरूप बनाया गया है ताकि सरकार आवश्यक वस्तुओं का खुदरा बिक्री मूल्य निर्धारित कर सके जिससे कि वे आवश्यक वस्तुएं पैकबंद रूप में निर्धारित मात्रा में तय किए गए खुदरा बिक्री मूल्य पर ही बेची जाएं।
राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता
लगभग 1000 विशेषज्ञों और 22 विशेषज्ञ पैनलों के साथ मिलकर 2 वर्ष तक व्यापक और कठिन परिश्रम करने के बाद भारतीय मानक ब्यूरो ने भारतीय राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता 2016 (नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया 2016) नामक एक नया आधुनिक बिल्डिंग कोड तैयार किया है। इससे कम आय वर्ग के लिए आवास, ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों के लिए योजना, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं वाले क्षेत्रों में इमारतों की ढांचागत सुरक्षा जैसे व्यापक विषयों को शामिल करते हुए यह बिल्डिंग कोड भारत सरकार के सुगम भारत अभियान तथा सामाजिक–आर्थिक समानता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इन प्रावधानों से 2022 तक सभी के लिए आवास के भारत सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी और नई सामग्री और निर्माण की नवीनतम तकनीकों से शीघ्र निर्माण किया जा सकेगा। सूचना और संचार की सुविधा वाली इमारतों के संबंध में किए गए प्रावधानों से डिजिटल इंडिया अभियान में सहायता मिलेगी।