उत्तर प्रदेश के उप-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने के लिए बहुजन समाज पार्टी की तरफ से समाजवादी पार्टी को समर्थन देने पर बीएसपी सुप्रीमो ने अपना रुख साफ किया। मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करने जा रही है।
लखनऊ में संवाददाता सम्मेलन के दौरान मायावती ने कहा- “मैं यह साफ करना चाहता हूं कि बीएसपी किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर बीएसपी और एसपी के बीच गठबंधन के कयास आधारहीन और गलत है।”
गठबंधन के कयासों को मायावती ने किया खारिज किया
मायावती ने इस बात का संकेत दिया कि लोकसभा चुनाव को लेकर किसी तरह का फैसला उसी दौरान लिया जाएगा और यह बीएसपी को प्रस्ताव देनेवाली सम्मानजनक सीटों की संख्या पर निर्भर रहेगी। गोरखपुर और फुलपुर उप-चुनाव में महज हफ्तेभर बचे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बीएसपी ने अखिलेश यादव की अगुवाई वाली एसपी के समर्थन से उतारे गए उम्मीदवार को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है।
I want to clarify that BSP has not allied with any political party. All rumors about BSP & SP alliance in UP for 2019 Lok Sabha elctions are false and baseless: Mayawati, BSP chief in Lucknow pic.twitter.com/xLggZDWijO
— ANI UP (@ANINewsUP) March 4, 2018
मायावती ने कहा- “हमने लोकसभा फुलपुर और गोरखपुर उप-चुनाव के लिए किसी भी उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है। हमारे पार्टी सदस्य भाजपा उम्मीदवार को हराने के अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।”
क्या मानते हैं राजनीतिक विश्लेषक
प्रेक्षक मानते हैं कि दोनों दलों के एक साथ आने पर पिछड़े, दलित और मुसलमानों का बेहतरीन ‘कॉम्बिनेशन’ बनेगा। इन तीनों की आबादी राज्य में करीब 70 फीसदी है। तीनों एक मंच पर आ जाएंगे तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती हैं।
ज्ञात हो कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि सपा मात्र पांच सीटों पर जीत सकी थी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा केवल 47 सीटों पर जीती थी, जबकि बसपा 19 सीटों पर ही सिमट गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 403 और लोकसभा की 80 सीट हैं। 30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में हुए गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की काफी किरकिरी हुई थी। उसके कुछ महीने बाद 1991 में हुए विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह यादव को करारी शिकस्त मिली थी।
भाजपा ने राज्य में पहली बार सरकार बनाई थी। कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था। छह दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। वर्ष 1993 में बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसका नतीजा रहा कि 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने सरकार बनाई और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री चुने गए।
सरकार करीब डेढ़ साल चली कि इसी बीच दो जून 1995 को लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाऊस कांड हो गया। बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ सपा कार्यकर्ताओं ने दुर्व्यवहार किया था। इसके बाद गठबंधन टूट गया और भाजपा के सहयोग से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बन गईं, तभी से सपा और बसपा के सम्बंधों में खटास आ गई थी। (Live हिन्दुस्तान)