नई दिल्ली: मनरेगा के अंतर्गत सृजित परिसंपत्तियों का आकार अत्यन्त विशाल हो चुका है। वित्तीय वर्ष 2006-07 में प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक करीब 2.82 करोड़ रुपये मूल्य की परिसंपत्तियां सृजित की जा चुकी हैं।
इसके अंतर्गत हर वर्ष औसतन करीब 30 लाख परिसंपत्तियों का निर्माण किया जाता है, जिनमें अनेक कार्य शामिल होते हैं, जैसे जल संरक्षण ढांचों का निर्माण, वृक्षारोपण, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का सृजन, बाढ़ नियंत्रण के उपाय, स्थायी आजीविका के लिए व्यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण, सामुदायिक ढांचा और ऐसी ही अन्य परिसंपत्तियां शामिल होती हैं। मनरेगा परिसंपत्तियों को भू-चिन्हित यानी जिआ-टैग करने की प्रक्रिया जारी है और इस कार्यक्रम के अंतर्गत सृजित सभी परिसंपत्तियां जिआ-टैग की जाएंगी। राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यों, विशेष रूप से जल संबंधी कार्यों को भू-चिन्हित यानी जिआ-टैग करने पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है।
जिआ-मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक बेजोड़ प्रयास है, जिसे राष्ट्रीय दूर संवेदी केन्द्र (एनआरएससी), इसरो और राष्ट्रीय सुचना विज्ञान केन्द्र के सहयोग से अंजाम दिया जा रहा है। इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 24 जून 2016 को एनआरएससी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत के अंतर्गत सृजित परिसंपत्तियों को जिओ-टैग किया जाना है। इस समझौते के फलस्वरूप राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान की सहायता से देशभर में 2.76 लाख कार्मिकों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। उम्मीद की जा रही है कि भू-चिन्हित करने की प्रकिया से फीड स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।