भगवान श्रीराम परम दिव्यता, शक्ति और सौन्दर्य के प्रतीक हैं। जन-जन के मन में रमण करने वाले आराध्य भगवान श्री राम की लीला भूमि श्री अयोध्या समस्त देवपुरियों में अति विशिष्ठ व धन्य है जहाँ श्रीराम का लीला-निकेतन श्रीकनक भवन विश्व के समस्त देव-भवनों में अपूर्व और आनन्ददायी है।
श्री कनक भवन का निर्माण महारानी कैकेयी के अनुरोध पर महाराज दशरथ द्वारा विश्वकर्मा की देखरेख में श्रेष्ठ शिल्पकारों के हाथों से कलात्मक रूप में करवाया गया, जिसे महारानी कैकेयी ने श्रीराम सीता के विवाह के अवसर पर मुँह दिखाई में अपनी बड़ी बहू सीताजी को भेंट कर दिया। यह कनक भवन भगवान श्रीराम और जगतमाता सीताजी का आवास बना जो आज तक जन-मानस का आराध्य केन्द्र बना हुआ है।
त्रेता में भगवान श्रीराम के बाद उनके सुपुत्र कुश ने कनक भवन में श्रीराम और सीताजी की लघु आकार की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित की। किन्तु कालान्तर में अयोध्या के राजवंश के पराभाव के बाद अयोध्या उजड़ी और कनक भवन भी जर्जर होकर ढह गया। कनक भवन से प्राप्त हुए विक्रमादित्यकालीन एक शिलालेख के अनुसार द्वापर में जब श्री कृष्ण जरासंध का वध कर प्रमुख तीर्थों की यात्रा करते हुए अयोध्या आए तो कनक भवन के टीले पर एक पद्मासना देवी को तपस्या करते हुए देखा और टीले का जीर्णोद्धार करवाकर वे मूर्तियाँ पुनस्थापित की।
विक्रमादित्याकालीन शिलालेख में ही आगे वर्णन है कि महाराज विक्रमादित्य ने धर्मराज युधिष्ठिर के संवत् 2431 की पौष कृष्णा द्वितीया मंगलवार (आज से लगभग 2070 वर्ष पूर्व) को समुद्रगुप्त ने भी इस देवालय को जीर्णोद्धार करवाया। सन् 1761 ई. में भक्त कवि रसिक अलि ने दस हजार रूपये से कनक भवन के अष्टकुंज का निर्माण शुरू किया अर्थाभाव के कारण वह पूरा नहीं हो सका।
वर्तमान कनक भवन का निर्माण ओरछा राज्य के पूर्व नरेश सवाई महेन्द्र श्री प्रताप सिंह की धर्मपत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि की देखरेख में हुआ। वैशाख शुक्ला षष्टमी सं. 1948 (सन् 1891 ई.) को उन्होंने प्राचीन मूर्तियों की पुनस्र्थापना के साथ ही श्री सीताराम जी की दो नवीन वृहदाकार मूर्तियों की भी प्राण प्रतिष्ठा करवाई और कनक भवन के ऊपर अष्ट कुंजों का भी निर्माण करवाया जिनमें सेविकाओं के आठ अतिस्मरणीय चित्र बने हुए हैं।
अब श्री कनक भवन में अष्टप्रहर आरतियों में श्रीरामसीता की विभिन्न झांकियों के मनोरम दर्शन होते हैं और विभिन्न अवसरों पर उत्सवों की सुन्दर श्रृंखला आयोजित होती हैं।
महारानी वृषभानु कुंवरि द्वारा वर्तमान कनक भवन की विग्रह स्थापना को लगभग सवा शताब्दी हो रही है। श्रीसीतारामजी का यह लीला-निकेतन और उन्हीं का विग्रह रूप यह कनक भवन कोटि-कोटि जनता का आराधना स्थल है जो दीर्घकाल से धर्म और संस्कृति के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित रहा है। हम वहाँ दर्शन कर मनोमालिन्य से मुक्त होते हैं, जीवन में नई चेतना और ऊर्जा का संचार पाते हैं, आनन्द विभोर हो जीवन मुक्त होते हैं। इसलिए हरेक व्यक्ति ही यह मनोकामना रहती है कि वह अपने इस दुर्लभ मनुष्य जीवन में कम से कम एक बार अयोध्या के कनक भवन में साक्षात् श्रीसीतारामजी के दर्शन कर अपना जीवन धन्य करें।
श्री कनक भवन मंदिर का संचालन महाराजा साहब टिकमगढ़ नरेश श्री प्रताप सिंह जूदेव के द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट जिसका नाम ‘श्री वृषभान धर्म सेतु प्रा0 ट्रस्ट’ है, के द्वारा होता है। श्री महाराज साहब श्री प्रताप सिंह जू देव इसके प्रथम अध्यक्ष थे। उनके बाद उनके सुपुत्र श्री महाराज वीर सिंह जू देव उपरोक्त मंदिर के ट्रस्ट के दूसरे अध्यक्ष हुए। उनके बाद उनके सुपुत्र श्री महाराजा देवेन्द्र सिंह जू देव तीसरे अध्यक्ष हुए। उनके बाद से वर्तमान में उनके सुपुत्र श्री महाराज श्री मधुकर शाह जू देव, महाराज टीकमगढ़ इस ट्रस्ट के चतुर्थ अध्यक्ष हैं।
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