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किसानों की आत्महत्या का मसला रातोंरात नहीं सुलझ सकता: उच्चतम न्यायालय

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कृषि संबंधितदेश-विदेश

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने फसल बीमा योजना जैसी किसान समर्थक योजनाओं के प्रभावी नतीजे आने के लिये कम से कम एक साल के समय की आवश्यकता संबंधी केन्द्र की दलील से सहमित व्यक्त करते हुये आज कहा कि किसानों के आत्महत्या के मामले को रातोंरात नहीं सुलझाया जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्त िधनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि किसानों के आत्महत्या के मसले से रातोंरात नहीं निबटा जा सकता है। अटार्नी जनरल की ओर से प्रभावी नतीजों के लिये समय की आवश्यकता की दलील न्यायोचित है। पीठ ने केन्द्र को समय देते हुये गैर सरकारी संगठन सिटीजन्स रिसोर्स एंड एक्शन इनीशिएटिव की जनहित याचिका पर सुनवाई छह महीने के लिये स्थगित कर दी।

केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने राजग सरकार द्वारा उठाये गये किसान समर्थक तमाम उपायों का हवाला दिया और कहा कि इनके नतीजे सामने आने के लिये सरकार को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि 12 करोड़ किसानों में से 5.34 करोड़ किसान फसल बीमा सहित अनेक कल्याणकारी योजनाओं के दायरे में शामिल हैं। उन्होने कहा कि फसल बीमा योजना के अंतर्गत करीब 30 फीसदी भूमि है और 2018 के अंत तक इस आंकड़े में अच्छी खासी वृद्धि हो जायेगी।

न्यायालय ने शुरू में कहा कि किसानों की आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है परंतु बाद में वह सरकार की दलील से सहमति हो गया और उसे समय प्रदान कर दिया।

इस बीच, पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह किसानों के आत्महत्या के मामले से निबटने के उपाय करने के बारे में गैर सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्सालिवज के सुझावों पर विचार करे।

न्यायालय गुजरात में किसानों के आत्महत्या के मामले बढ़ने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। बाद में न्यायालय ने इसका दायरा बढ़ाकर अखिल भारतीय कर दिया था।

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