प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : भारत सरकार द्वारा पूर्व में प्रचलित मोडिफाइड राष्ट्रीय कृषि इंश्योरेंस योजना (NAIS) की कमियों को दूर करते हुए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 से प्रचालित की गई है। इस योजना के तहत खाद्यान्न एवं तिलहन फसलों के लिए खरीफ में अधिकतम 2 प्रतिशत, रबी में अधिकतम 1.5 प्रतिशत एवं वाणिज्यिक बागवानी-वाणिज्यिक फसलों के लिए अधिकतम 5 प्रतिशत प्रीमियम दर तय की गई है जो आज तक की न्यूनतम दर है। इसमें न सिर्फ खड़ी फसल वरन फसल पूर्व बुवाई तथा फसल कटाई के पश्चात् जोखिमों को भी शामिल किया गया है। इस योजना के तहत स्थानीय आपदाओं की क्षति का आकलन पहली बार बीमित रूप से खेत के आधार पर प्रतिबंधित है तथा संभावित दावों का 25 प्रतिशत भुगतान तत्काल ऑनलाइन किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण किसानों की क्षति का अधिकतम लाभ उन्हें दिलाने के लिए फसलों की बीमित राशि को स्केल ऑफ फाइनेंस (ऋण मान) बराबर कर दिया जाता है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016-17 में न सिर्फ किसानों की कुल बीमित राशि करीब 2 गुणा हुई है वरन गैर ऋणी किसानों का कवरेज भी वर्ष 2015-16 के 5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 22 प्रतिशत हो गया है जो इस योजना की बढ़ती स्वीकार्यता को प्रदर्शित करता है।
- राष्ट्रीय कृषि मण्डी : पहले देश के सभी राज्यों में अलग-अलग मण्डी कानून थे। किसानों के लिए एकल मण्डी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्यों से बात कर तीन प्रमुख सुधार यथा इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग को मान्यता, एकल बिन्दु पर मार्केट फी एवं एकीकृत लाइसेंस पद्धति किए गए। 14 अप्रैल, 2016 को अम्बेडकर जयंती के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री महोदय द्वारा राष्ट्रीय कृषि मण्डी, वेब आधारित ऑनलाइन व्यापार पोर्टल की शुरुआत की गई। इस पोर्टल के माध्यम से किसान अपनी उपज देश भर की मण्डियों के माध्यम से बेच सकेंगे। 8 जून, 2017 तक 13 राज्यों की 419 मण्डियाँ, 46 लाख किसान, 90,000 व्यापारी एवं 47,000 कमीशन एजेंट ई-नाम पोर्टल से जुड़ चुके हैं जिनके द्वारा 22,179 करोड़ रुपये की राशि से 96 लाख मीट्रिक टन उत्पादों का कारोबार किया है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एस.एच.सी.) : वर्ष 2015-16 के पूर्व विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा छोटे स्तर पर अलग-अलग संस्करणों में मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाये जाते थे तथा इसके लिए अलग से कोई राशि आवंटित नहीं की जाती थी। इस विषय की गम्भीरता को देखते हुए पहली बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना प्रारंभ की गई जिसमें एक समान मृदा नमूना एकत्रीकरण एवं परीक्षण पद्धति को अपनाया गया है। इस योजना के माध्यम से 12 मृदा स्वास्थ्य पैरामीटरों का विश्लेषण किया जाता है जिससे किसान को अपनी जमीन में उर्वरकों एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों के जरुरत की सही जानकारी हो सके। इस योजना के माध्यम से न सिर्फ किसानों के लागत मूल्य में कमी आ रही है वरन सही पोषक तत्वों की पहचान एवं उपयोगिता भी बढ़ी है। वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 के दौरान रसायनिक उर्वरकों की खपत में 8 से 10 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं उत्पादन में 10 से 12 प्रतिशत की समग्र वृद्धि हुई है।
- कृषि वानिकी : वर्तमान सरकार द्वारा मेड़ पर पेड़, खेत में पेड़ तथा Intercropping में पेड़ लगाने के उद्देश्य से पहली बार कृषि वानिकी उपमिशन योजना प्रारंभ की गई है। इस योजना का कार्यान्वयन उन्हीं राज्यों में किया जा रहा है। जहां निजी भूमि पर इमारती लकड़ी की कटाई एवं पारगमन हेतु अधिसूचना में छूट जारी की गई है। इससे न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, मृदा जैविकता को बढ़ाने में सहायता मिलेगी वरन यह किसानों के लिए आय का भी स्रोत साबित हो रहा है। इस योजना के तहत वर्ष 2016-17 में 8 राज्य तथा 2017-18 में 5 राज्यों में विनियमन की छूट के उपरांत कार्य प्रारंभ हो चुका है तथा अन्य राज्यों को भी इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन : यह योजना देश में पहली बार वैज्ञानिक एवं समेकित ढंग से स्वदेशी गौवंश नस्लों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रारंभ की गई है। इसके माध्यम से 27 राज्यों में 35 परियोजनाओं का अनुमोदन किया गया है। जिसके तहत 31 उच्च नस्ल के मादा गौवंश फार्म (Mother Bull Farm) (नस्लीय सुधार हेतु) गायों के दुग्ध उत्पादकता की रिकॉर्डिंग, 30,000 कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों का प्रशिक्षण जिससे 6.9 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान इस वर्ष किए गए। साथ ही गौवंश के विशेष संरक्षण हेतु 14 गोकुल ग्राम (गौपशु विकास केन्द्रों) की स्थापना की जा रही है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर स्वदेशी नस्लों के विशेष संरक्षण हेतु 2 कामधेनु ब्रीडिंग सेन्टर आंध्र प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में स्थापित किए जा रहे हैं। इस मिशन से लगभग 7 करोड़ दुग्ध उत्पादक किसानों व 30 करोड़ गौवंश एवं भैंस वंश की उत्पादकता में सुधार होगा।
- राष्ट्रीय बोवाईन उत्पादकता मिशन : पशुपालकों की आय एवं दुग्ध उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि हेतु नवम्बर, 2016 से राष्ट्रीय बोवाईन उत्पादकता मिशन नामक नई योजना प्रारंभ की गई है। जिसके तहत देश में पहली बार 8.8 करोड़ दुधारु पशुओं को नकुल स्वास्थ्य पत्र एवं पशु यूआईडी जारी किए जा रहे हैं। जिससे उनके स्वास्थ्य एवं उत्पादकता की पूर्ण निगरानी एवं सामयिक उपचार हो रहा है। मादा बोवाईन की संख्या में वृद्धि के उद्देश्य से उन्नत प्रजनन तकनीक यथा लिंग सोर्टेड, बोवाईन वीर्य तकनीक, 50 भ्रूण स्थानांतरण केन्द्र और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई.वी.एफ.) केन्द्र खोले जा रहे हैं।
देशी नस्लों के उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय जेनोमिक केन्द्र की स्थापना की जा रही है जिसमें जिनोमिक तकनीक के माध्यम से कुछ ही वर्षों में देशी नस्लों को उच्च उत्पादकता हेतु स्वीकार्य बनाया जा सकेगा। यह केन्द्र रोगमुक्त उच्च आनुवांशिक योग्यता वाले सांडों की पहचान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इसी क्रम में नवम्बर, 2016 में देश में पहली बार उच्च नस्ल/उत्पादक पशुधन को बेचने व खरीदने के लिए एवं उच्च नस्ल की वीर्य खुराक की उपलब्धता हेतु देश में पहली बार ई-पशुधन हाट पोर्टल प्रारंभ किया गया है। 12 जून, 2017 तक इस पोर्टल पर 15,831 जीवित पशु, 4.71 करोड़ वीर्य खुराकों तथा 373 भ्रूणों के बारे में सूचना अपलोड की गई है। इसके आधार पर बिना किसी बिचौलिए के पशुधन तथा वीर्य खुराकों की खरीद-फरोख्त में एक पारदर्शी उच्च नस्ल पशु बाजार की स्थापना की गई है। अब तक पोर्टल पर 3 करोड़ वीर्य खुरकों एवं 100 जीवित पशुओं की बिक्री की जा चुकी है।
- नीली क्रान्ति : वर्तमान सरकार ने जल संसाधन की उत्पादकता मछली उत्पादन, मत्स्यपालकों के संरक्षण बढ़ाने के उद्देश्य से अंतरदेशीय मात्स्यिकी, जल कृषि, समुद्री मात्स्यिकी, मेरीकल्चर,मत्सय किसानों के लिए बंदरगाहों के विकास जैसे अवयवों के साथ मात्स्यिकी के क्षेत्र की सभी योजनाओं हेतु नीली क्रान्ति की एक छतरी के नीचे लाया गया है। इसके फलस्वरूप विगत 3 सालों में मछली उत्पादन में 19.75 प्रतिशत वृद्धि एवं बीमित मछुआरों की संख्या में 16 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इस सरकार द्वारा बचत-सह-राहत घटक में दी जाने वाली राशि को प्रथम चरण में जहाँ 600 रुपये से बढ़ाकर 900 रुपये प्रति माह एवं वर्तमान में 1500 रुपये प्रति माह कर दिया गया है। इसी प्रकार मछुआरों के लिए आवास घटक में राशि 75,000 रुपये से बढ़ाकर 1.20 लाख रुपये एवं पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 1.30 लाख रुपये कर दिया गया है।
- कृषि शिक्षा में स्टूडेंट रेडी कार्यक्रम : पूर्व में विभिन्न विषयों में हमारे चार वर्षीय कार्यक्रम थे जिनमें कौशल विकास पर कम जोर तथा मात्र 6 मास का ग्रामीण प्रदर्शन था। वर्तमान में ग्रामीण प्रदर्शन कार्यक्रम को पूरे एक वर्ष का कर दिया गया है जिससे हमारे डिग्रीधारक जॉब मांगने वाले की बजाय जॉब प्रदाता बन सकेंगे। साथ ही उद्योग वातावरण के प्रदर्शन से छात्रों को उत्पादन प्रक्रियाओं का लाभकारी अनुभव होगा जिससे कालांतर में छात्र कृषि उद्यमों में स्वरोजगार में प्रोत्साहित हो सकेंगे।
- कृषि शिक्षा को प्रोफेसनल डिग्री घोषित किया जाना: हाल ही में आई.सी.ए.आर. द्वारा कृषि,बागवानी, मात्स्यिकी एवं वानिकी में 4 वर्ष की कृषि डिग्रियों को व्यवसायिक डिग्री के रुप में घोषित किया है। इससे छात्रों को विभिन्न स्नातकोत्तर उपाधि कार्यक्रम के लिए विदेशों में स्थित विश्वविद्यालयों में प्रवेश एवं अध्येतावृत्तियाँ मिलने में मदद मिलती है। साथ ही इससे न सिर्फ कृषि रसायनों, औजारों एवं उपकरणों की डीलरशिप के आंवटन में प्राथमिकता मिलेगी वरन प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन और निर्यातोन्मुखी व्यवसाय करने हेतु बैंकों से ऋण प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
- कार्मिक सूचना प्रबंधन प्रणाली एवं तैनाती तथा स्थानांतरण प्रणाली : उपरोक्त दोनों कार्यों के लिए ऑनलाइन कंप्यूटरीकृत प्लेटफार्म तैयार किये गए हैं जिसके माध्यम से न्यूनतम समय में वैज्ञानिक की संख्या उनका वर्तमान स्तर संसाधन विशेष में नियुक्ति का वर्ष मौजूद रिक्तियाँ इत्यादि की त्वरित जानकारी मिलेगी। इस प्लेटफार्म के माध्यम से 468 ऐसे वैज्ञानिकों के बारे में जानकारी मिली जिनकी तैनाती अपने स्वीकृत पदों के अनुसार नहीं थी। इस पर समुचित सुधारात्मक उपाय किए गए हैं। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटरीकृत तैनाती एवं स्थानांतरण प्रणाली के तहत जानकारी के अभाव में होने वाली अशुद्धियां तथा व्यक्ति निष्ठा से होने वाली स्थानांतरण पर पूर्णत: रोक लगी है।
- ई-शासन के लिए पोर्टल: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा निम्नांकित पोर्टल बनाए गए हैं जिसके फलस्वरुप पूर्ण पारदर्शिता कार्यों का त्वरित निष्पादन अंतिम उपयोगकर्ताओं का फीडबैक तथा संसाधनों एवं किसानों व सिविल सोसाइटी जैसी हितधारकों के बीच दूरी कम करने में मदद मिली है इसके प्रमुख उदाहरण ई-आरपी प्रणाली, केवीके ज्ञान पोर्टल, स्नातकोत्तर एवं शिक्षा हेतु प्रबंधन प्रणाली, शैक्षणिक एवं ई-लर्निंग मॉड्यूल, ई-संवाद,कृषि ई-ऑफिस तथा ई-कृषि मंडी हैं।
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