नई दिल्ली: केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही अधिकारों पर नहीं, बल्कि कर्तव्यों पर अधिक ध्यान केन्द्रित रहा है। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है तो सभी के अधिकार स्वतः ही सुरक्षित हो जाते हैं। वह आज नई दिल्ली में सुशासन, विकास एवं मानवाधिकार विषय पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सदियों पुराने भारतीय लोकाचार में मानवाधिकार की अवधारणा शांति में निहित है, इसके विपरीत पश्चिम में मानवाधिकार की अवधारणा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुए संघर्ष के साथ सामने आई। भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण की अवधारणा को संपूर्ण ब्रह्मांड की भलाई के साथ जोड़ा जाता है, जिसमें सभी तत्व शांतिपूर्ण रूप से आपसी सह-अस्तित्व से रहते हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे आध्यात्मिक और दैवीय वंदना में भी प्रतिबिंबित होता है।
सुशासन के मुद्दे का जिक्र करते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रत्येक संप्रभु राष्ट्र अवैध प्रवासियों के ख़िलाफ कार्रवाई करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए रोहिंग्या समुदाय के निर्वासन का मुद्दा अहंकार और टकराव की बात नहीं है, बल्कि यह सिद्धांतों का मसला है। जो लोग मानवाधिकारों के नाम पर दूसरों के अधिकारों पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं, उन्हें पहले भारत के नागरिकों के अधिकारों की चिंता करनी चाहिए। देश के नागरिकों का अपने संसाधनों पर पहला अधिकार है, न कि अवैध प्रवासियों का। रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं, वे शरणार्थी नहीं हैं, जिसके लिए एक प्रक्रिया को पूरा किया जाना आवश्यक होता है, जिसका पालन उन्होंने कभी भी नहीं किया।
उन्होंने कहा कि भारत शरणार्थियों पर अंतरराष्ट्रीय कानून अथवा संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन 1951 पर हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र नहीं है, अतः इन कानूनों के उल्लंघन का कोई सवाल ही नहीं उठता। यदि रोहिंग्या को भारत में आश्रय दिया जाता है, तभी उन पर जबरन अपने देश वापसी न करने का सिद्धांत लागू होगा। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से स्पष्ट है, और इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा भी दायर कर चुकी है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सरकार ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए बांग्लादेश सरकार को सहायता प्रदान की है। उन्होंने बांग्लादेश और म्यांमार दोनों ही देशों का मित्र देश के रूप में वर्णन करते हुए कहा कि म्यांमार की स्टेट काउंसिलर सुश्री आंग सान सू की ने रोहिंग्या को वापस अपने देश में लेने की बात कहकर उम्मीद की एक किरण पैदा की है। उन्होंने उम्मीद जताई कि म्यांमार जल्द ही इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाएगा।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सुशासन, विकास और मानवाधिकार एक अविभाज्य तिकड़ी हैं, और सरकार इन्हें बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। एनएचआरसी द्वारा आयोजित सेमिनार को अत्यंत प्रासंगिक बताते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मानव जीवन में गरिमा के बिना कोई भी विकास अर्थहीन होगा। उन्होंने कहा कि पीएम उज्ज्वला योजना का उद्देश्य करोड़ों महिलाओं के लिए सम्मानित जीवन सुनिश्चित करना है और हम मानते हैं कि गरिमा के बिना विकास के कोई मायने नहीं हैं। उन्होंने पारदर्शिता और जवाबदेही के जरिए लोगों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से पिछले तीन वर्षों के दौरान सरकार द्वारा शुरू किए गए उपायों और योजनाओं को सूचीबद्ध किया, ताकि कल्याणकारी योजनाओं का फायदा वास्तविक लाभार्थी तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य 2022 तक “सभी को आवास” और सभी गांवों में बिजली मुहैया कराना है।
इससे पहले, सेमिनार का उद्घाटन करते हुए एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री एच.एल. दत्तू ने कहा कि सभी के लिए मानवाधिकार की अवधारणा को वास्तविक बनाने वाले समाज के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मानव अधिकारों की सार्वभौमिकता, मानव सम्मान पर केन्द्रित इसका दृष्टिकोण और जवाबदेही के प्रति इसकी चिंता, इन्हें विकास, सहयोग, सुशासन और भेदभाव एवं बहिष्करण का मुकाबला करने की दिशा में विशिष्ट रूप से उपयुक्त बनाती है। उन्होंने कहा कि किसी भी देश के लिए सभ्य राष्ट्रों की श्रेणी में अपना स्थान बनाने के लिए गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य देखभाल, सभी के लिए बिना किसी भेदभाव एवं अंतर के शिक्षा और न्यायसंगत समान जीवन अवसर सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। दुर्भाग्यवश, आज़ादी के करीब आधे दशक बाद भी, हमारा देश इन सभी बातों में ही उलझा हुआ है। न्यायमूर्ति दत्तू ने कहा कि राजनीति, अर्थशास्त्र और संस्कृति को एक अधिक सहजीवी संबंधों के तौर पर मानवता में रचनात्मक रूप से योगदान करने के लिए एक साथ लाने की आवश्यकता है।
एनआरएचसी के महासचिव श्री अंबुज शर्मा ने राष्ट्रीय सम्मेलन के महत्व को रेखांकित करते हुए, आयोग के कदमों और कार्य-संचालन के जरिए सुशासन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बारे में बताया। एनएचआरसी के संयुक्त सचिव डॉ. रंजीत सिंह ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में सुशासन और विकास के महत्व पर ज़ोर दिया और बताया कि मानवाधिकारों के संरक्षण में ये कितना प्रासंगिक हैं।
केन्द्रीय विधि एवं न्याय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद कल समापन सत्र को संबोधित करेंगे।