नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने नई मेट्रो रेल नीति को मंजूरी दे दी। इस नीति का उद्देश्य अनेक शहरों के लोगों की रेल की आकांक्षाओं को पूरा करना है, लेकिन उत्तरदायी तरीके से।
यह नीति अनेक मेट्रो संचालनों में बड़े पैमाने पर निजी निवेश का द्वार खोलने में सहायक होगी और इस नीति के अंतर्गत केन्द्रीय सहायता प्राप्त करने के लिए पीपीपी घटक अनिवार्य बनाया गया है। निजी निवेश तथा मेट्रो परियोजनाओं के वित्तीय पोषण के नये तरीकों को अनिवार्य बनाया गया है, ताकि पूंजी लागत वाली परियोजनाओं के लिए संसाधन की बड़ी मांग पूरी की जा सके।
इस नीति में कहा गया है कि केन्द्रीय वित्तीय सहायता की इच्छुक सभी मेट्रो रेल परियोजनाओं में सम्पूर्ण प्रावधान के लिए या कुछ अलग-अलग घटकों के लिए (जैसे ऑटोमेटिक भाड़ा संग्रह, सेवा संचालन और रखरखाव आदि) निजी भागीदारी आवश्यक है। ऐसा निजी संसाधनों, विशेषज्ञता और उद्यमिता को हासिल करने के लिए किया गया है।
फिलहाल अपर्याप्त उपलब्धता तथा अंतिम छोर तक सम्पर्क के अभाव को देखते हुए नई नीति में राज्यों से मेट्रो स्टेशनों के दोनों ओर 5 किलोमीटर का सुविधा क्षेत्र छोड़ने का काम सुनिश्चित करें, ताकि फीडर सेवाओं, पैदल, साइकिल का रास्ता तथा पारा परिवहन सुविधाओं से अंतिम छोर तक सम्पर्क किया जा सके। नई मेट्रो परियोजनाओं का प्रस्ताव करने वाले राज्यों के लिए परियोजना रिपोर्ट में यह इंगित करना आवश्यक होगा कि ऐसी सेवाओं के लिए प्रस्ताव तथा निवेश किये जाएगे।
नई नीति में वैकल्पिक विश्लेषण किया गया है और बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम), लाइट रेल ट्रांजिट, ट्रैमवे, मेट्रो रेल तथा क्षेत्रीय रेल की मांग क्षमता, लागत और क्रियान्वयन सहजता की दृष्टि से मूल्यांकन करना आवश्यक है। शहरी महानगरीय परिवहन प्राधिकरण(यूएमटीए) की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया है। यह प्राधिकरण शहरों के लिए आवाजाही संबंधी व्यापक योजना तैयार करेगा, ताकि क्षमता के अधिकतम उपयोग के लिए पूरी तरह बहु मॉडल एकीकरण सुनिश्चित हो सके।
नई मेट्रो रेल नीति में नये मेट्रो प्रस्ताव के कठोर मूल्यांकन का प्रावधान है। इसमें सरकार द्वारा चिन्ह्ति एजेंसियों द्वारा स्वतंत्र तीसरे पक्ष का मूल्यांकन का प्रस्ताव है। मेट्रो परियोजनाओं के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण लाभों को ध्यान में रखते हुए वैश्विक व्यवहारों के अनुरूप मेट्रो परियोजनाओं को मंजूर करने के लिए वर्तमान वित्तीय आंतरिक रिटर्न दर 8 प्रतिशत की व्यवस्था को बदलकर 14 प्रतिशत आर्थिक आंतरिक रिटर्न दर की व्यवस्था का प्रावधान है।
इस नीति में इस बात का ध्यान रखा गया है कि शहरी सार्वजनिक ट्रांजिट परियोजनाएं केवल शहरी परिवहन योजनाओं के रूप में न दिखें, बल्कि शहरी परिवर्तन परियोजनाओं के रूप में दिखें, इसलिए इस नीति में ट्रांजिट प्रेरित विकास (टीओडी) का प्रावधान है, ताकि मेट्रो गलियारों के साथ-साथ सटीक और घना शहरी विकास को प्रोत्साहित किया जा सके, क्योंकि ट्रांजिट प्रेरित विकास आने जाने की दूरी कम करता है। इस नीति के अंतर्गत राज्यों के लिए मेट्रो परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए वैल्यू कैप्चर वित्त पोषण उपायों जैसे नवाचारी तरीके अपनाना आवश्यक है। राज्यों को मेट्रो परियोजनाओं के लिए कारपोरेट बांण्ड जारी कर किफायती ऋण पूंजी प्रदान करने में सहायता देनी होगी।
मेट्रो परियोजनाएं वित्तीय दृष्टि से व्यावहारिक हों यह सुनिश्चित करने के लिए नयी मेट्रो नीति में राज्यों से परियोजना रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने को कहा गया है कि मेट्रो स्टेशनों और उसकी अन्य शहरी भूमि पर वाणिज्यिक/संपत्ति के विकास के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे। उनसे यह भी बताने को कहा गया है कि वैधानिक सहायता के अतिरिक्त यात्री किराये से इतर अन्य साधनों, जैसे विज्ञापनों, जगह को लीज पर देने आदि से कितनी अधिकतम आमदनी हो सकेगी। राज्यों से यह भी अपेक्षा की गयी है कि वे सभी वांछनीय स्वीकृतियां और अनुमोदन प्रदान करने का आश्वासन दें।
नयी नीति राज्यों को इस बात का अधिकार देती है कि वे कायदे-कानून बना सकेंगे और किरायों में समय से संशोधन के लिए स्थायी किराया निर्धारण प्राधिकरण गठित कर सकेंगे। राज्य केन्द्रीय सहायता प्राप्त करने के लिए तीन विकल्पों में से किसी भी विकल्प का उपयोग करके मेट्रो परियोजनाएं शुरू कर सकते है। ये विकल्प हैं: वित्त मंत्रालय की वायाबिलिटी गैप फंडिंग (यानी कम पड़ती धनराशि का इंतजाम) योजना के तहत केन्द्रीय सहायता युक्त सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिए; भारत सरकार के अनुदान के माध्यम से, जिसके तहत परियोजना लागत का 10 प्रतिशत एकमुश्त केन्द्रीय सहायता के रूप में दिया जाएगा; और केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच 50:50 प्रतिशत आधार पर इक्विटी साझेदारी मॉडल के जरिए। हालांकि, इन तीनों ही विकल्पों में निजी भागीदारी अनिवार्य है।
नीति में मेट्रो सेवाओं के संचालन और रखरखाव (ओएंडएम) में विभिन्न प्रकार से निजी क्षेत्र की भागीदारी की व्यवस्था की गयी है जो इस प्रकार हैं:
- लागत और शुल्क अनुबंध : निजी ऑपरेटर को रेल प्रणाली के संचालन और रखरखाव के लिए मासिक/वार्षिक आधार पर भुगतान किया जाता है। इसके सेवाओं की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए निश्चित और परिवर्तनशील घटक हो सकते हैं. संचालनात्मक और राजस्व संबंधी जोखिम सरकार द्वारा उठाया जाएगा।
- सकल लागत अनुबंध: निजी ऑपरेटर को अनुबंध की अवधि के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है. ऑपरेटर को संचालन और रखरखाव का जोखिम उठाना होगा जबकि सरकार को राजस्व संबंधी जोखिम उठाना होगा।
- शुद्ध लागत अनुबंध: ऑपरेटर उपलब्ध करायी जाने वाली सेवाओं से अर्जित समूचा राजस्व एकत्र करता है। अगर राजस्व आय संचालन और रखरखाव लागत से कम हुई तो स्वामी मुआवजा देने के बारे में सहमत हो सकता है।
इस वक्त मेट्रो आठ राज्यों में कुल 370 किलोमीटर की मेट्रो परियोजनाएं चालू हैं. इन शहरों के नाम हैं: दिल्ली (217 किलोमीटर), बेंगलुरु (42.30 किलोमीटर), कोलकाता (27.39 किलोमीटर), चेन्नई (27.36 किलोमीटर), कोच्चि (13.30 किलोमीटर), मुंबई (मेट्रो लाइन 1-11.40 किलोमीटर, मोनो रेल फेज 1-9.0), जयपुर (9.00 किलोमीटर) और गुड़गांव (रैपिड मैट़ो 1.60 किलोमीटर).
13 राज्यों में कुल 537 किलोमीटर लम्बाई की मेट्रो परियोजनाओं का काम चल रहा है जिनमें ऊपर बताए गये आठ राज्य भी शामिल हैं. मेट्रो सेवाओं की अपेक्षा करने वाले नये शहर हैं: हैदराबाद (71 किलोमीटर), नागपुर (38 किलोमीटर), अहमदाबाद (36 किलोमीटर), पुणे (31.25 किलोमीटर) और लखनऊ (23 किलोमीटर).
13 शहरों में जिनमें 10 नये शहर भी शामिल हैं, 595 किलोमीटर कुल लंबाई की मेट्रो परियोजनाएं नियोजन और स्वीकृति के विभिन्न चरणों में चल रही हैं. ये हैं: दिल्ली मेट्रो फेज चार- 103.93 किमी, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-21.10 किमी, विजयवाड़ा-26.03 किमी, विशाखापट्टनम-42.55 किमी, भोपाल-27.87 किमी, इंदौर- 31.55 किमी, कोच्चि मेट्रो फेज-दो- 11.20 किमी, वृहत्तर चंडीगढ़ क्षेत्र मेट्रो परियोजना-37.56, पटना-27.88 किमी, गुवाहाटी-61 किमी, वाराणसी-29.24 किमी, तिरुअनंतपुरम और कोषिकोड (लाइट रेल ट्रांसपोर्ट)-35.12 किमी और चेन्नई फेज दो-107.50 किमी।