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कैबिनेट ने चमड़ा एवं फुटवियर क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए विशेष पैकेज को मंजूरी दी

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नई दिल्लीः प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने चमड़ा एवं फुटवियर क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए विशेष पैकेज को मंजूरी दे दी है। इस पैकेज में 2017-18 से लेकर 2019-20 तक के तीन वित्‍त वर्षों के दौरान 2600 करोड़ रुपये के स्‍वीकृत व्‍यय के साथ ‘भारतीय फुटवियर, चमड़ा एवं सहायक सामान विकास कार्यक्रम’ का कार्यान्‍वयन शामिल है।

प्रमुख प्रभाव

    केन्‍द्रीय क्षेत्र की इस योजना से चमड़ा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास का मार्ग प्रशस्‍त होगा, चमड़ा क्षेत्र से जुड़ी विशिष्‍ट पर्यावरणीय चिंताएं दूर होंगी, अतिरिक्‍त निवेश में सहूलियत होगी, रोजगार सृजन होगा और उत्‍पादन में वृद्धि होगी। ज्‍यादा कर प्रोत्‍साहन मिलने से इस क्षेत्र में व्‍यापक निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा और इस क्षेत्र के सीजनल स्‍वरूप को ध्‍यान में रखते हुए श्रम कानून में सुधार से उत्‍पादन स्‍तर में वृद्धि संभव हो पाएगी।

     विशेष पैकेज में तीन वर्षों के दौरान 3.24 लाख नये रोजगारों को सृजित करने की क्षमता है और इससे फुटवियर, चमड़ा एवं सहायक सामान क्षेत्र पर संचयी असर के रूप में दो लाख रोजगारों को औपचारिक स्‍वरूप प्रदान करने में मदद मिलेगी।

भारतीय फुटवियर, चमड़ा एवं सहायक सामान विकास कार्यक्रम का विवरण 

  1. मानव संसाधन विकास (एचआरडी) उप-योजना : एचआरडी उप-योजना में 15,000 रुपये प्रति व्‍यक्ति की दर से बेरोजगार व्‍यक्तियों को प्‍लेसमेंट से संबद्ध कौशल विकास प्रशिक्षण, 5000 रुपये प्रति कर्मचारी की दर से कार्यरत कामगारों को कौशल उन्‍नयन प्रशिक्षण और प्रति व्‍यक्ति 2 लाख रुपये की दर से प्र‍शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए सहायता देने का प्रस्‍ताव है। कौशल विकास प्रशिक्षण घटक से संबंधित सहायता प्राप्‍त करने के लिए 75 प्रतिशत प्रशिक्षित व्‍यक्तियों का प्‍लेसमेंट अनिवार्य करने का प्रस्‍ताव है। इस उप-योजना के तहत 696 करोड़ रुपये के प्रस्‍तावित परिव्‍यय के साथ तीन वर्षों के दौरान 4.32 लाख बेरोजगार व्‍यक्तियों को प्रशिक्षित करने/कौशल प्रदान करने, 75000 मौजूदा कर्मचारियों का कौशल उन्‍नयन करने और 150 मुख्‍य प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने का प्रस्‍ताव है।
  2. चमड़ा क्षेत्र के एकीकृत विकास (आईडीएलएस) की उप-योजना : आईडीएलएस उप-योजना के तहत मौजूदा इकाइयों के आधुनिकीकरण/तकनीकी उन्‍नयन के साथ-साथ नई इकाइयों की स्‍थापना के लिए सूक्ष्‍म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को नये संयंत्र एवं मशीनरी की लागत के 30 प्रतिशत की दर से और अन्‍य इकाइयों को संयत्र एवं मशीनरी की लागत के 20 प्रतिशत की दर से बैकएंड निवेश अनुदान/सब्सिडी प्रदान करके रोजगार सृजन सहित विनिर्माण एवं निवेश को प्रोत्‍साहन देने का प्रस्‍ताव है। इस उप-योजना के तहत 425 करोड़ रुपये के प्रस्‍तावित परिव्‍यय के साथ 3 वर्षों के दौरान चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान और कलपुर्जा क्षेत्र की 1000 इकाइयों को प्रोत्‍साहन देने का प्रस्‍ताव है।
  3. संस्‍थागत सुविधाओं की स्‍थापना की उप-योजना : इस उप-योजना के तहत तीन वर्षों के दौरान 147 करोड़ रुपये के प्रस्‍तावित परिव्‍यय के साथ फुटवियर डिजाइन एवं विकास संस्‍थान (एफडीडीआई) के कुछ मौजूदा परिसरों का उन्‍नयन करके उन्‍हें ‘उत्‍कृष्‍टता केंद्रों’ में तब्‍दील करने और प्रस्‍तावित मेगा चमड़ा क्‍लस्‍टरों, जो परियोजना संबंधी प्रस्‍तावों पर आधारित होंगे, के आसपास पूर्ण सुविधाओं से युक्‍त तीन नये कौशल केंद्रों की स्‍थापना के लिए एफडीडीआई को सहायता प्रदान करने का प्रस्‍ताव है।
  4. मेगा चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्‍लस्‍टर (एमएलएफएसी) उप-योजना : एमएलएफएसी उप-योजना का उद्देश्‍य मेगा चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्‍लस्‍टर की स्‍थापना करके चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्षेत्र को बुनियादी ढांचागत सहायता प्रदान करना है। उपयुक्‍त परियोजना लागत के 50 प्रतिशत तक श्रेणीबद्ध सहायता देने का प्रस्‍ताव है, जिसमें भूमि की लागत शामिल नहीं होगी और इसके तहत अधिकतम सरकारी सहायता 125 करोड़ रुपये तक सीमित होगी। तीन वर्षों के दौरान 3-4 नये एमएलएफएसी को आवश्‍यक सहायता प्रदान करने के लिए 360 करोड़ रुपये का परिव्‍यय प्रस्‍तावित किया गया है।
  5. चमड़ा प्रौद्योगिकी, नवाचार एवं पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़ी उप-योजना : इस उप-योजना के तहत परियोजना लागत के 70 प्रतिशत की दर से साझा अपशिष्‍ट शोधन संयंत्रों (सीईटीपी) के उन्‍नयन/स्‍थापना के लिए सहायता देने का प्रस्‍ताव है। इस उप-योजना के तहत राष्‍ट्रीय स्‍तर की क्षेत्रवार उद्योग परिषद/संघ को सहायता देने के साथ-साथ चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्षेत्र के लिए विजन दस्‍तावेज तैयार करने हेतु भी मदद दी जाएगी। इस उप-योजना हेतु तीन वर्षों के लिए प्रस्‍तावित परिव्‍यय 782 करोड़ रुपये है।
  6. चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्षेत्र में भारतीय ब्रांडों को प्रोत्‍साहन देने की उप-योजना : इस उप-योजना के तहत ब्रांड के संवर्धन के लिए स्‍वीकृत पात्र इकाइयों को सहायता देने का प्रस्‍ताव है। इसके तहत तीन वर्षों के दौरान प्रत्‍येक साल सरकारी सहायता कुल परियोजना लागत का 50 प्रतिशत तय करना प्रस्‍तावित है, जो प्रत्‍येक ब्रांड के लिए अधिकतम 3 करोड़ रुपये होगी। इस उप-योजना के तहत 90 करोड़ रुपये के प्रस्‍तावित परिव्‍यय के साथ 3 वर्षों के दौरान अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार में 10 भारतीय ब्रांडों का संवर्धन करने का प्रस्‍ताव है।
  7. चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्षेत्र के लिए अतिरिक्‍त रोजगार प्रोत्‍साहन की उप-योजना: इस उप-योजना के तहत ईपीएफओ में नामांकन कराने वाले चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान क्षेत्र के सभी नये कर्मचारियों के लिए उनके नियोजन के प्रथम तीन वर्षों के दौरान कर्मचारी भविष्‍य निधि में 3.67 प्रतिशत का नियोक्‍ता योगदान करने का प्रस्‍ताव है। यह उप-योजना 15000 रुपये तक का वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए मान्‍य होगी। 100 करोड़ रुपये के प्रस्‍तावित परिव्‍यय से संबंधित क्षेत्रों में लगभग 2,00,000 रोजगारों को औपचारिक करने में मदद मिलेगी।

   विशेष पैकेज में श्रम कानूनों के सरलीकरण के लिए उपाय और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्‍साहन भी शामिल हैं, जिनका उल्‍लेख नीचे किया गया है –

  1. आयकर अधिनियम की धारा 80जेजेएए का दायरा बढ़ाना : किसी कारखाने में वस्‍तुओं के उत्‍पादन में संलग्‍न भारतीय कंपनी द्वारा नये कर्मचारी को तीन वर्षों तक अदा किये गये अतिरिक्‍त पारिश्रमिक पर उसे टैक्‍स कटौती का लाभ देने हेतु आयकर अधिनियम की धारा 80जेजेएए के तहत किसी कर्मचारी के लिए एक वर्ष में न्‍यूनतम 240 दिनों के रोजगार के प्रावधानों में और ज्‍यादा ढील देकर फुटवियर, चमड़ा एवं सहायक सामान क्षेत्र के लिए इसे न्‍यूनतम 150 दिन कर दिया जाएगा। यह कदम इस क्षेत्र के सीजनल स्‍वरूप को ध्‍यान में रखते हुए उठाया जा रहा है।
  2. निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत : विश्‍व भर से व्‍यापक निवेश आकर्षित करने के लिए औद्योगिक रोजगार (स्‍थायी आदेश) अधिनियम, 1946 की धारा 15 की उप धारा (1) के तहत निश्चित अवधि वाले रोजगार की शुरुआत करके श्रम संबंधी मुद्दों के नियामकीय ढांचे को दुरुस्‍त करने का प्रस्‍ताव है। चमड़ा, फुटवियर एवं सहायक सामान उद्योग के मौसमी (सीजनल) स्वरूप को ध्‍यान में रखते हुए यह कदम उठाया जा रहा है।

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