नई दिल्ली: जब कोई व्यक्ति अपनी मेहनत और काबिलियत से किसी नई चीज़ का अविष्कार करता है तो वह चीज़ उस व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आ जाती है। कोई तीसरा व्यक्ति बिना उस व्यक्ति की अनुमति के उस नए अविष्कार का उपयोग नहीं कर सकता। मगर इसके लिए आवश्यक है की व्यक्ति अपनी उस नई खोज को बौद्धिक सम्पदा अधिकार कानून के तहत पंजीकृत कराए। हालाँकि बड़े अविष्कार जो भी हुए है या जो हो रहे है, उनमे से कुछ प्रमुख अविष्कारों का इस कानून के तहत पंजीकरण है, मगर कृषि सम्बन्धी अविष्कारों का पंजीकरण आज भी न के बराबर होता है। इसका प्रमुख कारण है जागरूकता की कमी , और यह स्थिति न सिर्फ किसानो में है बल्कि हमारे शोधार्थी जो कृषि के क्षेत्र नए अविष्कार करते है वह भी इस नियम के तहत अपनी खोज को पंजीकृत नहीं कराते।
शोषार्थीयों में इस विषय को लेकर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन उत्तर प्रदेश के एग्रीकल्चर रिसर्च कॉउंसिल के साथ मिलकर किया गया। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में कई महत्वपूर्ण लोग सम्मिलित हुए। पहले दिन सी.आई.एस.एच लखनऊ के डायरेक्टर डॉ शैलेन्द्र राजन इसका हिस्सा बने, उन्होंने कहा बहुत कम ही लोग आज इस विषय में जानते हैं और इससे होने वाले लाभ से वंचित रह जाते हैं। पी.पी. वी.ऍफ़.आर.ए. नई दिल्ली के रजिस्ट्रार जनरल डॉ आर.एस. अग्रवाल भी इस संगोष्ठी में सम्मिलित हुए और बताया की किस तरह उनकी संस्था लोगो में जागरूकता पैदा करने और पंजीकरण करवाने के लिए उत्साहित करने के लिए कई तरह के पुरस्कारों का वितरण भी करती है जिसमे पंजीकरण कराने वालो को उनके बेहतर अविष्कार के लिए 2 से 10 लाख रूपए तक का पुरस्कार दिया जाता है। इस दौरान उत्तर प्रदेश सी.ए.आर के डीजी प्रो. राजेंन्द्र कुमार भी मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे। उन्होंने कहा की जितनी संख्या में प्रदेश के विभिन्न विभागों में कृषि संबंधी नई खोजे हुई हैं इसकी तुलना में पंजीकरण न के बराबर हुए है जो की एक गंभीर विषय है।
आज इस दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन हुआ। जिसमे टी.आई.एफ.ए.सी. नई दिल्ली के पूर्व निर्देशक डॉ आर. साह सम्मिलित हुए और उन्होंने कृषि उत्पादों के पंजीकरण की प्रक्रिया के विषय में छात्रों को जानकारी दी। उन्होंने बताया की इस कानून के तहत अलग अलग तरह की खोज या अविष्कार के लिए अलग अधिकार दिए जाते हैं, कृषि के क्षेत्र में पेटेंट, पौध किस्मों के संरक्षण और भैगोलिक संकेत के लिए पंजीकरण होता है। इस संगोष्ठी में विभिन स्थानों के आए शोधार्थियों ने भी अपनी शोध प्रस्तुत की।