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क्यों टिलरसन का विदेश मंत्री के पद से हटना पूरी दुनिया के लिए नुकसानदायक हो सकता है?

देश-विदेश

अमेरिकी सरकार से बाहर किए जाने वालों लोगों में मंगलवार को विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन का नाम भी जुड़ गया. 13 मार्च को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक उन्हें विदेश मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया है. डोनाल्ड ट्रंप अपने एक साल से ज्यादा के कार्यकाल में करीब दो दर्जन अधिकारियों को अपने प्रशासन से बाहर कर चुके हैं. लेकिन, इन सभी में सबसे चौंकाने वाला निर्णय रेक्स टिलरसन को हटाना माना जा रहा है. हैरानी की एक वजह यह भी है कि यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया जब उत्तर कोरिया मामले में अमेरिका निर्णायक मोड़ की ओर बढ़ रहा है और मई में ट्रंप की किम जोंग-उन के साथ बैठक होने वाली है.

हालांकि, टिलरसन की विदाई के पीछे उनके और डोनाल्ड ट्रंप के बीच कई मुद्दों पर मतभेदों का होना है. टिलरसन अपने एक साल और ढाई महीने के कार्यकाल में लगभग हर महीने ट्रंप के साथ मतभेदों को लेकर सुर्ख़ियों में बने रहे.

पहली बार इन दोनों के बीच बीते साल जून में मतभेद सामने आए थे. तब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और बहरीन ने कतर पर आतंकवादियों को फंडिंग करने का आरोप लगाते हुए उससे कूटनीतिक संबंध खत्म करने की घोषणा की थी. इसके तुरंत बाद अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने ट्वीट किया, ‘इन सभी देशों को बैठकर बात करने और मामले को सुलझाने की जरूरत है. कूटनीतिक संबंध तोड़ने से कोई फायदा नहीं होगा, इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर ही होगी.’

वहीं इस मामले पर डोनाल्ड ट्रंप ने टिलरसन के एकदम उलट बात कही. उन्होंने खुद को इस कार्रवाई का श्रेय देते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘कतर पर हुई कार्रवाई मेरी हाल की मध्य पूर्व की यात्रा का परिणाम है जिसमें मैंने उन लोगों पर कार्रवाई करने की बात कही थी जो आतंकवाद को फंडिंग करते हैं.’

राष्ट्रपति और विदेश मंत्री के बयान में इतना बड़ा अंतर होने के चलते ट्रंप प्रशासन तुरंत मीडिया के निशाने पर आ गया. बवाल बढ़ता देख ट्रंप को कहना पड़ा कि उनके और टिलरसन के बीच सब कुछ सही है और कतर मामले पर जो कुछ हुआ उसमें विदेश मंत्री की सहमति भी थी.

इसके बाद अगस्त में राष्ट्रपति और विदेश मंत्री के बीच तब टकराव देखा गया जब डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से हटने का फैसला किया. ट्रंप के इस निर्णय पर विदेश मंत्री ने खुले मंच पर असहमति जाहिर की. उन्होंने कहा, ‘मैं इस मामले में अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हूं. जो निर्णय लिया गया है मैं उससे सहमत नहीं हूं.’

ऐसा ही कुछ ईरान परमाणु समझौते पर भी देखने को मिला जब डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को अमेरिका के लिए सबसे बुरा बताते हुए इसे तोड़ने की बात कही. उसी समय टिलरसन का कहना था कि ईरान इस समझौते में किए गए वादों पर अमल कर रहा है, इसलिए इसे तोड़ना सही नहीं है. उनका यह भी कहना था, ‘ईरान डील को लेकर उनके (ट्रंप) और मेरे विचार एक जैसे नहीं हैं.’

अफगानिस्तान मामले पर भी दोनों नेताओं की सोच में बड़ा अंतर था. बीते अगस्त में ट्रंप ने वर्जीनिया में अमेरिकी सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा था, ‘हमारी नीति तय है. हम जीतने के लिए ही जंग लड़ते हैं…तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने से रोकना ही हमारा लक्ष्य है.’ जबकि इसके कुछ रोज बाद ही टिलरसन ने लड़ाई से किसी को भी फायदा न होने की बात कहते हुए तालिबान को बातचीत की मेज पर आने का न्योता दे दिया.

उत्तर कोरिया पर ट्रंप से टकराव टिलरसन की विदाई का तात्कालिक कारण बना

पिछले कुछ समय से सुर्ख़ियों में बने उत्तर कोरिया मामले पर भी राष्ट्रपति और विदेश मंत्री के बीच खासे मतभेद देखने को मिले थे. बीते अक्टूबर में चीन के दौरे पर गए रेक्स टिलरसन ने इस यात्रा के दौरान उत्तर कोरिया को बातचीत का न्योता दिया था. इस खबर पर कुछ ही घण्टों बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अजीब प्रतिक्रिया दी. उनका कहना था, ‘उत्तर कोरिया को लेकर हमारी सख्त नीति है. टिलरसन को बातचीत के जरिये इस मामले को सुलझाने पर अपना समय और ऊर्जा बरबाद नहीं करनी चाहिए.’

इस घटना के बाद अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी एनबीसी ने खबर दी कि ट्रंप और टिलरसन के बीच कुछ भी सही नहीं चल रहा है. टिलरसन अपनी स्थिति से काफी ज्यादा निराश हैं और अपना पद छोड़ने पर विचार कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि एक मीटिंग के दौरान निराशा में टिलरसन ने ट्रंप को ‘मूर्ख’ राष्ट्रपति तक कह डाला था. हालांकि, ट्रंप ने इन खबरों का खंडन किया, लेकिन साथ ही वे टिलरसन पर निशाना साधना नहीं चूके. उन्होंने कहा, ‘मेरे और विदेश मंत्री के बीच सबकुछ सही है. लेकिन, विदेश मंत्री को थोड़ा कठोर होना भी जरूरी है.’

हालांकि, मीडिया में टकराव की खबरें आने के बाद भी ट्रंप और टिलरसन के बीच सुलह की कोशिशें नहीं हुईं. माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने रेक्स टिलरसन को उत्तर कोरिया पर बढ़े मतभेदों की वजह से ही बाहर का रास्ता दिखाया है. गुरुवार को रॉयटर्स ने व्हाइट हॉउस से जुड़े कुछ सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि ट्रंप को डर था कि उत्तर कोरिया पर उनके जैसे विचार न रखने वाले टिलरसन प्रस्तावित बातचीत के दौरान गड़बड़ कर सकते हैं और कोरिया को ज्यादा रियायत देने की बात कह सकते हैं.

बताते हैं कि इसी कारण बीते गुरुवार को किम जोंग-उन की बातचीत का न्योता लेकर आए दक्षिण कोरियाई अधिकारियों से ट्रंप ने अकेले बातचीत की थी. अफ्रीका दौरे पर गए टिलरसन को इस बारे में सूचना तक नहीं दी गई. रॉयटर्स के मुताबिक इसके अगले ही दिन ट्रंप ने व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली को विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन से इस्तीफ़ा मांगने को कहा. सूत्रों का यह भी कहना है कि केली ने इस इस्तीफे को टालने का हर सम्भव प्रयास किया. लेकिन, ट्रंप नहीं माने, उनका कहना था कि वे किम जोंग-उन से बातचीत से पहले एक विश्वसनीय टीम चाहते हैं.

टिलरसन विदेश मंत्रालय में अन्य लोगों के दखल से भी परेशान थे

रेक्स टिलरसन अमेरिकी विदेश मंत्रालय में अन्य लोगों के दखल से भी काफी परेशान थे. दखल देने वालों में डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जेरेड कुश्नर सबसे प्रमुख थे. मध्यपूर्व मामलों में डोनाल्ड ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किए गए कुश्नर की कार्य प्रणाली पर कई बार टिलरसन ने नाराजगी भी जाहिर की थी. अमेरिकी मीडिया की मानें तो कुश्नर विदेश नीति को लेकर बड़े फैसले ले लेते थे और इसकी जानकारी विदेश मंत्री तक को नहीं देते थे. कतर पर लिए गए फैसले के पीछे जेरेड कुश्नर की मुख्य भूमिका थी और यह फैसला लेने से पहले टिलरसन को जानकारी नहीं दी गई थी.

इसके अलावा पिछले दिनों यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने के पीछे भी जेरेड कुश्नर ही मुख्य भूमिका में थे. यहूदी समुदाय से आने वाले जेरेड यहूदी मुल्क इजरायल के बड़े पैरोकार माने जाते हैं. उनके बेंजामिन नेतन्याहू से काफी करीबी रिश्ते भी हैं. अमेरिकी मीडिया के अनुसार यरुशलम को राजधानी घोषित करने के फैसले पर सबसे ज्यादा एतराज रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस और विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन को था. इन लोगों का मानना था कि इस फैसले से मध्यपूर्व के देशों में अमेरिका की विश्वसनीयता कम होगी. साथ ही इस फैसले के हिंसक परिणाम सामने आ सकते हैं. लेकिन, इन दोनों की आपत्ति के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित कर दिया.

अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी पॉलिटिको के मुताबिक टिलरसन ने कई बार जेरेड कुश्नर की विदेश मामले में दखलंदाजी और विदेश मंत्रालय को बिना बताए फैसले लेने की शिकायत भी की थी. टिलरसन संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निकी हेली और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एचआर मैकमास्टर की दखलंदाजी से भी परेशान थे. पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार एक बार टिलरसन ने निराशा में यह तक कह दिया था, ‘अमेरिका के चार-चार विदेश मंत्री कैसे हो सकते हैं!’

रेक्स टिलरसन का जाना और उनकी जगह माइक पोंपेयो का आना पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता है

अमेरिकी राजनीति के ज्यादातर जानकार रेक्स टिलरसन के जाने को अमेरिका सहित पूरी दुनिया के लिए नुकसानदायक मानते हैं. इनके मुताबिक ट्रंप प्रशासन में टिलरसन ऊंचे ओहदे पर बैठे वो शख्स थे जो हर समस्या को धैर्य के साथ बातचीत के जरिये सुलझाने में यकीन रखते थे. उत्तर कोरिया, ईरान डील, इजरायल-फिलिस्तीन विवाद और अफगानिस्तान मामला, वे अपने कार्यकाल में हर जगह पहले बातचीत को ही तरजीह देते नजर आए.

इन लोगों का यह भी कहना है कि जिस तरह से अच्छे और नरम रुख वाले लोग ट्रंप प्रशासन से जा रहे हैं उसे देखते हुए टिलरसन की यहां मौजूदगी बेहद जरूरी थी. इस महीने की शुरुआत में ही डोनाल्ड ट्रंप द्वारा स्टील और एल्युमीनियम पर आयात शुल्क बढाने और दुनिया को व्यापार युद्ध की धमकी देने के विरोध में उनके मुख्य आर्थिक सलाहकार गैरी कॉन ने इस्तीफा दे दिया था.

कई लोग टिलरसन की जगह सीआईए प्रमुख माइक पोंपेयो को विदेश मंत्री बनाए जाने को और भी खतरनाक मानते हैं. पोंपेयो को इस्लाम विरोधी, ईसाई कट्टरपंथी और रूढ़िवादी रिपब्लिकन के रूप में पहचाना जाता है. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीतियों का जमकर विरोध किया था. रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व सांसद पोंपेयो ट्रंप की तरह ही ईरान परमाणु समझौते को अमेरिका के लिए गलत मानते हैं.

बीते साल जब डोनाल्ड ट्रंप ने माइक पोंपेयो को सीआईए प्रमुख के तौर पर नामित किया था तो उनके इस तरह के व्यवहार के कारण ही दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों ने ट्रंप के इस फैसले पर विरोध जताया था. कई संगठनों ने अमेरिकी संसद से माइक पोंपेयो के नाम को ख़ारिज करने की अपील भी की थी.

इसी वजह से माना जा रहा है कि माइक के विदेश मंत्री बनने के बाद अब अमेरिकी सरकार कोरिया से लेकर ईरान, अफगानिस्तान और फिलस्तीन-इजरायल विवाद तक अड़ियल रुख अपना सकता है. इन परिस्थितियों में इन इलाकों में आंतरिक संघर्ष भी बढ़ेगा और इसके चलते वैश्विक स्तर पर बड़े-बड़े देशों की गोलबंदी तेज होगी. सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिकी प्रशासन में हुआ यह बड़ा बदलाव आने वाले समय में दुनिया को अस्थिरता और असुरक्षा की तरफ धकेल सकता है.

सत्याग्रह

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