पूरा देश आज गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा हुआ है. हर किसी के हाथ में देश की आन-बान-शान का प्रतीक तिरंगा नजर आ रहा है. राजपथ पर दस विदेशी मेहमानों के सामने तिरंगे को सलामी दी गई. देश की हर सरकारी इमारत जैसे कि लाल किले, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, यहां तक कि विदेशों में मौजूद इंडियन एंबेसीज में तिरंगे फहराए गए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये झंडे कहां बनते हैं?और कितनी मुश्किल से ये तिरंगे बनाए जाते हैं?
देश-विदेश में जहां कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज इस्तेमाल होता है, वो कर्नाटक के हुबली शहर की एक छोटी सी यूनिट में ही बनता है. ये यूनिट शहर के बेंगेरी इलाके में स्थित है और इसे हुबली यूनिट भी कहा जाता है. KKGSS नाम की ये यूनिट खादी व विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन द्वारा सर्टिफाइड देश की अकेली ऑथराइज्ड नेशनल फ्लैग मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट है. इसकी स्थापना 1957 में हुई थी, इसने 1982 से खादी बनाना शुरू किया. 2005-06 में इसे ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से सर्टिफिकेशन मिला और यहां राष्ट्रीय ध्वज बनने लगे.
इस यूनिट में करीब 250 लोग काम करते हैं, जिनमें से सिर्फ 20 पुरुष हैं. यहां हर दिन 8-10 घंटे तक काम होता है. इस तिरंगा मैनुफैक्चरिंग यूनिट के वर्कर्स की डेली इनकम मात्र 350 रुपए रोजाना तक ही है.
ये लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि किसी तिरंगे में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए. जैसे कि KVIC और BIS द्वारा निर्धारित रंग के शेड से तिरंगे का रंग अलग नहीं होना चाहिए. केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए. इसी तरह तिरंगे के अगले-पिछले भाग पर अशोक चक्र की छपाई भी समान होनी चाहिए.
इसीलिए यहां बनने वाले हर तिरंगे का सूक्ष्म क्वालिटी चेक होता है, वो भी कुल 18 तरह के क्वालिटी चेक. दरअसल फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के मुताबिक, झंडे की मैन्यूफैक्चरिंग में रंग, साइज या धागे को लेकर किसी भी तरह का डिफेक्ट एक गंभीर अपराध है और ऐसा होने पर जुर्माना या जेल या दोनों हो सकते हैं. इसीलिए इस चेक के दौरान ही करीब 10 फीसदी तिरंगे रिजेक्ट हो जाते हैं.