लखनऊः कृषि विज्ञान केन्द्र, भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा गाजर घास जागरूकता उन्मूलन सप्ताह का आयोजन आज दिनांक 21.08.2017 को किया गया। पार्थेनियम हिस्टोफोरस जिसे आम भाषा में कांग्रेस घास, गाजर घास, चटक चांदनी व कड़वी घास के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा खरपतवार है जो कि फसलों के उत्पादन में गिरावट लाने के साथ ही साथ जानवरों से लेकर मनुष्यों के लिये भी बहुत नुकसान देय है। इससे एग्जिमा, खुजली व एलर्जी हो जाती है तथा यह बहुत तेजी से बढ़ती है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक, डा. ए.डी. पाठक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा की पार्थेनियम नाम के खरपतवार, जिसे कांग्रेस घास, गाजर घास, चटक चांदनी व कड़वी घास आदि नामों से भी जाना जाता है। आज यह सभी फसलों, उद्यानों एवं वनों के लिये समस्या बन गई है। डा. पाठक ने बताया कि भारत वर्ष मंे 1955 में सर्वप्रथम इसे देखा गया था। डा. राकेश कुमार सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ यह विदेशी खरपतवार 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैल कर मनुष्यों में एग्जिमा, एलर्जी एवं बुखार जैसे रोग उत्पन्न कर रहा है। इसके खाने से पशुओं के मुह में सूजन आ जाती है एवं दुधारू पशुओं के दुग्ध में एक विशेष प्रकार की गंध भी आने लगती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एस.एन. सिंह ने बताया कि गाजर घास की पत्तियों एवं सफेद छोटे-छोटे फूलों वाले पौधो की पहचान बताई तथा डा. सिंह ने बताया कि ग्लाईफोसेट खरपतवारनाशी दवा को जल में घोल कर पुष्प आने से पहले छिड़काव कर देना चहिये तथा सामुदायिक प्रयासों के द्वारा बारिस से पूर्व फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर गढ्ढे में दबा देना चाहिये।
कृषि विज्ञान केन्द्र, भाकृअनुप-भा.ग.अनु.सं., लखनऊ के विषय वस्तु विशेषज्ञ, डा. योगेन्द्र प्रताप सिंह नें गाजर घास सप्ताह का सफल आयोजन किया एवं आये हुये अतिथियों को धन्यवाद दिया।