मेरे प्यारे भाइयो और बहनों।साथियों, जैसा अनुभव किसान को अपनी लहलहाती फसल को देख करके होता है; जैसा अनुभव कुम्हार को सुंदर सा घड़ा, मिट्टी के बर्तन; मिट्टी के दीए बनाता है, तो बनने के बाद उसे जैसा सुखद अनुभव होता है; जैसा अनुभव किसी बुनकर को सुंदर सी कालीन बनाकर उसके मन को जो प्रसन्न्ता होती है; वैसा ही अनुभव इस वक्त मुझे हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे अब से कुछ देर पहले, मैं सवा सौ करोड़ देशवासियों की इच्छाओं को, उनकी भावनाओं को जी करके यहां आया हूं।
घोघा से दहेज के रास्ते में समंदर पर बिताए हुए एक-एक पल के दौरान, मैं यही सोचता रहा कि बीतता हुआ ये समय एक नया इतिहास लिख रहा है, एक नए भविष्य के दरवाजे खोल रहा है। इसी द्वार से चलकर हम ‘New India’ का मजबूत आधार रखेंगे, New India का सपना साकार करेंगे। देश की जनशक्ति से ही और उसके सही इस्तेमाल करने का सपना, सरदार पटेल से ले करके डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर तक सभी ने देखा था। आज हमने उनके सपने से जुड़े हुए एक पड़ाव को पार कर लिया है।
घोघा-दहेज के बीच ये ferry सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के करोड़ों-करोड़ों लोगों की जिंदगी को न सिर्फ आसान बनाएगा, बल्कि उन्हें और निकट ले आएगा।
इस ferry service से पूरे क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास का एक नया दौर शुरू होगा। रोजगार को जो नौजवान इस व्यवस्था का फायदा उठाएंगे; रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। Coastal Shipping और Coastal Tourism का भी एक नया अध्याय इसके साथ जुड़ने वाला है। भविष्य में हम सब इस ferry service से…. और यहां आए हुए लोग ध्यान से सुनें, भविष्य में हम इस ferry service से हजीरा, पीपावाओ, जाफराबाद, दमनदीव, इन सभी महत्वपूर्ण जगहों के साथ ferry service जुड़ सकती है।
मुझे बताया गया है कि सरकार की तैयारी आने वाले वर्षों में इस ferry service को सूरत से आगे हजीरा और फिर मुम्बई तक ले जाने की योजना है। कच्छ की खाड़ी में भी इस तरह प्रोजेक्ट शुरू करके किए जाने की चर्चा चल रही है। उन्होंने काफी काम आगे बढ़ाया है। और मैं राज्य सरकार को उनके इन प्रयासों के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और भारत सरकार की तरफ से पूरा सहयोग मिलेगा, इसका मैं विश्वास दिलाता हूं।
सरकार का ये प्रयास दहेज समेत पूरे दक्षिण गुजरात के विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का एक जीता-जागता उदाहरण है। भड़ूच समेत दक्षिण गुजरात में औदयोगिक विकास की गति को तेज करने के लिए दहेज और हजीरा जैसे केन्द्रों पर हमने सविशेष ध्यान केन्द्रित किया है। Petroleum, Chemicals & Petrochemicals Investment Regions की स्थापना के साथ ही rail network, road linkages, उस पर जो काम हुआ है, शायद पहले किसी ने सोचा तक नहीं होगा।
हजीरा में भी infrastructure के विकास पर जोर लगाया गया है। आने वाले वर्षों में दिल्ली-मुम्बई Industrial Corridor का लाभ भी इन क्षेत्रों को मिलने वाला है। गुजरात का maritime development पूरे देश के लिए एक model है। मुझे उम्मीद है कि Ro-Ro ferry service का project भी दूसरे राज्यों के लिए एक model project की तरह काम करेगा।
हमने जिस तरह वर्षों की मेहनत के बाद इस तरह के project में आने वाली दिक्कतों को समझा, उसे दूर किया, उन दिक्कतों कम सो कम आएं, भविष्य में अगर नया project बनाना है; उस दिशा में गुजरात ने बहुत बड़ा काम किया है।
साथियों, आज से नहीं सैंकड़ों वर्षों से जल-परिवहन के मामले में भारत दूसरे देशों से बहुत आगे रहा था। हमारी technique दूसरे देशों से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ हुआ करती थी। लेकिन ये भी सही है कि गुलामी के बड़े कालखंड के दौरान हमने अपनी श्रेष्ठताओं को अपने इतिहास से सीखना धीरे-धीरे कम कर दिया, भूलते चले गए। नए innovation कम होने के साथ ही जो क्षमताएं थीं, वो भी धीरे-धीरे इतिहास का हिस्सा बन गईं। वरना जिस देश की navigation क्षमताओं का लोहा सदियों से पूरी दुनिया मानती रही हो, उसी देश में स्वतंत्रता के बाद water transport पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया, भुला दिया गया।
साथियों, आज भी भारत में road transport का हिस्सा 55 प्रतिशत है, रेलवे माल ढुलाई का 35 प्रतिशत वहन करती है और Waterways क्योंकि सबसे सस्ता है, वो सिर्फ 5 या 6 percent है। जबकि तीसरे देशों में Waterways और Coastal Transport की हिस्सेदारी करीब-करीब 30 प्रतिशत से भी ज्यादा हुआ करती है। यही हमारी सच्चाई, यही हमारी चुनौती है और यही स्थिति हमें बदलने का संकल्प ले करके आगे बढ़ना है।
आज जान करके हैरान हो जाओगे कि देश की अर्थव्यवस्था पर logistic का बोझ 18 प्रतिशत तक है। यानी सामान को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक ले जाने पर दूसरे देशों की अपेक्षा हमारे देश में खर्च ज्यादा होता है। और उसके कारण गरीब व्यक्ति को जो चीजों की जरूरत होती है, वो transport के कारण भी महंगी हो जाती हैं। अगर water transport को बढ़ावा देकर हम cost of logistic को लगभग आधा कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए हमारे पास साधन, संसाधन, सुविधाएं और सामर्थ्य, सब कुछ मौजूद है।
साथियों हमारे देश में 7,500 किलोमीटर का समुद्री तट और 14,500 किलोमीटर का Internal Waterway, यानी नदियों द्वारा मार्ग उपलब्ध है। एक तरह से मां भारती ने हमें पहले से ही 21,000 किलोमीटर के जलमार्ग का आशीर्वाद देके रखा हुआ है। वर्षों तक हम इस खजाने पर चौकड़ी मारकर बैठे रहे और ये समझ ही नहीं पाए कि इसका इस्तेमाल कैसे करें।
आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि हमारे यहां पहली Port Policy, 1995 में बनी। देश आजाद हुआ 1947 में और बंदरों की नीति, 1995, कितना विलंब कर दिया। उसके पहले port के विकास के लिए एक लंबे vision के साथ काम नहीं हो रहा था। बस चीजें चल रही थीं और ये सच है कि इसकी वजह से देश को अरबों-खरबों का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा।
आपको एक उदाहरण देता हूं- अगर जलमार्ग के माध्यम से हम कोयले को transportation करना चाहते हैं, तो उसका खर्च आता है प्रतिटन किलोमीटर 20 पैसे। वहीं जब इसे उसी कोयले को रेल के माध्यम से ले जाते हैं तो यही कीमत हो जाती है सवा रुपया, यानी 20 पैसे के सामने सवा हो जाता है, और आप विचार कीजिए कि रोड़ मार्ग से जाएंगे तो किना गुना बढ़ जाएगा? आप बताइए हमें सस्ते माध्यम से कोयले की ढुलाई करनी चाहिए या नहीं? आप जानकर हैरान रह जाओगे कि आज भी कोयले की ढुलाई का 90 प्रतिशत रेल के द्वारा ही हो रहा है। दशकों से बनी हुई इस व्यवस्था को बदलना हमने ठान लिया है। और इसके लिए सरकार लगातार नए-नए initiative ले रही है।
साथियो, जब हम नया घर खरीदते हैं तो देखते हैं कि उस घर की दूसरे क्षेत्रों के साथ connectivity कैसी है, रोड़ है कि नहीं है, रेल है कि नहीं है, जाना है तो बस मिलती है कि नहीं मिलती है। जब हम नया business शुरू करते हैं- तो भी देखते हैं कि इस इलाके में connectivity कैसी है। उस इलाके में सामान को लाने-ले जाने में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?
जब हमारी सामान्य approach यही रहती है तो फिर एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर हमारे उद्योग समुद्र तटों से दूर क्यों जगाए जाएं? अगर इंडस्ट्री का कच्चा माल और तैयार किया हुआ माल, अगर बंदरों की connectivity पर निर्भर है तो क्या ये सही नहीं होगा कि समुद्र तटों के पास industrial coastal भी विकसित किए जाएं। इससे न केवल logistic की कीमत में कमी आएगी बल्कि ease of being business में भी मददगार साबित होगा।
जो देश के भीतर जरूरत है उसके उद्योग देश के भीतर कहीं भी लग सकते हैं और लगाने भी चाहिए। लेकिन जो दूसरे देशों में भेजना है, export करना है, वो जब समुद्री तट पर करते हैं तो ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है, ज्यादा मुनाफा मिलता है।
साथियो, transport की दुनिया में कहा जाता है कि अगर आप आने वाले कल की दिक्कतों को आज सुलझा रहे हैं तो आप पहले ही बहुत देर कर चुके हैं। आप सोचिए, आपके आसपास किसी सड़क पर हर रोज जाम लगता हो और कोई तय करे कि अब वहां flyover बनाया जाएगा, ये flyover जब बन करके तैयार होगा तब तक उस इलाके में गाडि़यों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि उस flyover पर भी जाम लगने लग जाता है। हमारे देश में यही होता रहा है। और इसलिए transport sector में सरकार अभी की जरूरतों के साथ ही भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए भी काम कर रही है। हमारा मंत्र है P for P, Ports for prosperity. हमारे बंदर समृद्धि के प्रवेश द्वार। सागरमाला जैसा project इसी vision की एक झलक है। इस project पर twenty – thirty five तक की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हम काम कर रहे हैं। इसके तहत सरकार अब से ले करके 2035 को ध्यान में रखते हुए 400 से ज्यादा परियोजाओं पर आज बहुत बड़ा investment कर रही है।
इन अलग-अलग परियोजनाओं पर 8 लाख करोड़़ रुपये से ज्यादा निवेश करने की तैयारी है। सागरमाला प्रोजेक्ट निश्चित तौर पर New India का बहुत बड़ा आधार बनेगा।
साथियों, समुद्र के जरिए दूसरे देशों से मजबूत संबंध स्थापित करने के लिए हमें और आधुनिक ports की आवश्यकता है। हमारी economy के लिए ports फेफड़ों की तरह हैं। अगर ports बीमार हो जाएं, क्षमता के मुताबिक काम न करें तो हम बहुत व्यापार भी नहीं कर पाएंगे। इसी तरह जैसे शरीर में फेफड़ों द्वारा खींची गई ऑक्सीजन हृदय द्वारा pump करके नसों के माध्यम से अलग-अलग स्थानों पर पहुंचाई जाती है, वैसे ही economy में ये भूमिका Railways, Highways, Airways और Waterways के द्वारा होती है। अगर नसों में खून की सप्लाई कम हो जाए, ऑक्सीजन कम हो जाए तो शरीर कमजोर हो जाता है। ऐसे ही connectivity सही न हो तो देश का आर्थिक विकास भी कमजोर पड़ने लगता है। और इसलिए infrastructure और connectivity दो ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ये सरकार अधिक से अधिक शक्ति लगा रही है।
साथियों, सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले तीन वर्षों में port sector में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। अभी तक का सबसे ज्यादा capacity addition पिछले दो-तीन वर्षों में ही हुआ है। जो port और सरकारी कम्पनियां घाटे में चल रही थीं, उनमें भी परिस्थिति बदल गई है। सरकार का ध्यान coastal service से जुड़े skill development पर भी है।
एक अनुमान के मुताबिक अकेले सागरमाला प्रोजेक्ट से आने वाले समय में देश के भिन्न-भिन्न भाग पर एक करोड़ नई नौकरियों के अवसर की संभावनाएं हैं। हम इस approach के साथ काम कर रहे हैं कि transportation का पूरा frame work आधुनिक और integrated हो।
आजकल आप कई जगहों पर traffic जाम देखते हैं। इसी तरह हमारे ports में भी जाम लग जाता है। ports में लगने वाले जाम की वजह से logistic cost बढ़ती है, waiting time बढ़ता है। जिस तरह हम traffic में फंसने के बाद सिर्फ इंतजार करते रह जाते हैं, कोई productive काम नहीं कर पाते; उसी तरह समुद्र में खड़े जहाज भी सामान उतारने और सामान चढ़ाने के इंतजार में खड़े रह जाते हैं। और सिर्फ वो vessel खड़ा नहीं रहता है, पूरी economy ठहर जाती है। यह बहुत आवश्यक है कि ports का आधुनिकीकरण हो, bottlenecks हटाए जाएं।
सागरमाला प्रोजेक्ट का एक और पहलू है और वो है Blue Economy. पहले लोग सिर्फ ocean economy के बारे में बात करते थे लेकिन हम Blue Economy के बारे में बात करते हैं। blue economy यानी economy और ecology का गठजोड़। Blue Economy आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ ही समुद्र से जुड़े Eco-System को भी बढ़ावा देती है।
अगर 18वीं और 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति जमीन पर हुई तो 21वीं शताब्दी में औद्योकिग क्रांति समुद्र के माध्यम से होगी, Blue Revolution के जरिए होगी।
साथियो, हमारी आज की आवश्यकताओं और चुनौतियों को देखते हुए ये बहुत आवश्यक है कि हम देश की सामुद्रिक शक्ति का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। Blue economy की क्षमताओं का ज्यादा इस्तेमाल New India का आधार बनेगा।
खाद्य सुरक्षा के लिए Blue Economy का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे अगर हमारे मछुआरे भाई sea bead की खेती करें, उसमें value-addition करें तो इससे उनकी आय में भी इजाफा हो सकता है। ऐसे ही Blue Economy, ऊर्जा के क्षेत्र में mining के क्षेत्र में, tourism के क्षेत्र में New India का एक बहुत बड़ा आधार बन सकती है।
साथियो, ये सरकार देश में एक नई कार्य संस्कृति विकसित कर रही है। एक ऐसी कार्य-संस्कृति जो जवाबदेह हो, पारदर्शी हो। आज इसी कार्य-संस्कृति की वजह से योजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है। आज देश में दोगुनी गति से सड़के बन रही हैं, दोगुनी गति से रेल लाइनें बिछ रही हैं।
योजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए drone से लेकर satellite तक से monitoring करने की व्यवस्था हो रही है। कोई तो वजह होगी कि अब आपको passport इतना जल्दी मिल जाता है। कोई तो वजह होगी कि अब आपको गैस का सिलेंडर इतनी आसानी से मिल जाता है। कोई तो वजह होगी कि अब आपको income tax refund के लिए महीनों इंतजार नहीं करना पड़ता है। ये बदलाव आपकी जिंदगी में आ रहा है और इसके पीछे बड़ी वजह है, सरकार की कार्य-संस्कृति में हमने जो बदलाव लाया है। एक ऐसी कार्य-संस्कृति है जो गरीबों को, मध्यम वर्ग को, तकनीक की मदद से उसका हक दिला रही है।
गुजरात में आपने जो सिखाया है, वो अनुभव मुझे दिल्ली में बहुत काम आ रहा है। खोज-खोजकर फाइलें निकलवा रहा हूं और जो परियोजनाएं दशकों से अटकी हुई हैं उन्हें पूरा करवा रहा हूं। हमने एक व्यवस्था विकसित की है- ‘प्रगति’। इसके माध्यम से अब तक 9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की परियोजनाओं की समीक्षा की गई है। प्रगति में समीक्षा होने के बाद चार-चार दशक से अटके हुए project अब तेजी से पूरे होने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।
ये सरकार देश में ईमानदार अर्थव्यवस्था और इमानदार सामाजिक अर्थव्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रयास कर रही है। नोटबंदी ने काले धन को न सिर्फ तिजौरी से बाहर निकालकर बैंक में पहुंचाया है, बल्कि देश को ऐसे-ऐसे सबूत भी सौंपे हैं जिससे एक अभूतपूर्वक स्वच्छता अभियान शुरू होना संभव हुआ है।
इसी तरह GST से भी देश में एक नया Business Culture मिल रहा है। हमें मालूम है पहले जो लोग ट्रक लेकर जाते हैं, check post पर घंटों खड़े रहना पड़ता था। GST आने के बाद सारे check-post गए। जो ट्रक पांच दिन में पहुंचता था वो आज तीन दिन में पहुंचता है। सामान ले जाने, लाने का खर्चा कम हो गया और हजारों करोड़ रुपये जो check-post पर जाते थे, उसमें भी भ्रष्टाचार पनपता था। वो सारी चीजें GST आने के कारण बंद हो गया। अब मुझे बताइए, अब तक जिन्होंने ठेकेदारी में लूटा था वो मोदी से नाराज होंगे कि नहीं होंगे? उनको मोदी पर गुस्सा आएगा कि नहीं आगा? लेकिन देश के नागरिक को भला होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? देश के नागरिकों को लाभ होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए?
एक ऐसा Business Culture जिसमें इमानदारी से सारा कारोबार होता है और इमानदारी के दम पर ही कमाई की जाती है। और मेरा अनुभव है कोई व्यापारी चोरी करना नहीं चाहता है। लेकिन कुछ कानून, नियम, अफसर, राजनेता; उसको उस पर धक्का मारते हैं, बेचारे को मजबूर कर देते हैं। हम उसको इमानदारी का वातावरण देने के लिए काम कर रहे है।
आप देखिए GST से जुड़ने वाले व्यापारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। GST लागू होने के बाद indirect tax के दायरे में 27 लाख नागरिक जुड़ गए हैं।
साथियो, मुझे पता है कि मुख्यधारा में लौट रहे कुछ व्यापारियों को डर लग रहा है कि कहीं उनके पुराने रिकॉर्ड तो नहीं खोले जाएंगे? जो कोई वर्ग इमानदारी से देश के विकास में शामिल हो रहा है, मुख्यधारा में आ रहा है, उसे मैं ये पूरा भरोसा दिलाना चाहता हूं कि उनकी पुरानी चीजें खोल करके किसी अफसर को परेशान करने का हक नहीं दिया जाएगा।
भाइयो, बहनों, तमाम सुधारों और कड़े फैसलों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आए सही दिशा में है। हाल में आए आंकड़ों को देखें तो कोयले, बिजली, स्टील, Natural Gas, इन सबके production में काफी वृद्धि हुई। विदेशी investor भारत में record निवेश कर रहे हैं। भारत का Foreign Exchange Reserve लगभग 30 हजार करोड़ डॉलर से बढ़कर 40 हजार करोड़ डॉलर को पार कर गया है।
कई जानकारों ने इस बात पर सहमति जताई है कि देश की अर्थव्यवस्था के fundamental काफी मजबूत हैं, strong हैं। हमने reform sector में महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं और ये प्रक्रिया लगातार जारी रहेगी। देश की final sustainability को भी maintain रखा जाएगा। निवेश बढ़ाने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए हम हर आवश्यक कदम उठाते रहेंगे।
साथियो, ये बदलती हुई व्यवस्थाओं का दौर है। संकल्प से सिद्धि का दौर है। हम सभी को New India के निर्माण के लिए संकल्प लेना होगा, उसे सिद्ध करना होगा। आज यहां Ghogha-Dahej ferry service के माध्यम से New India के एक नए साधन की शुरूआत हुई है।
आप सभी को मैं एक बार फिर बहुत-बहुत शुभकामनाओं के साथ इसका भरपूर फायदा लेने के लिए निमंत्रित करता हूं।
भारत माता की जय
भारत माता की जय भारत माता की जय
बहुत-बहुत धन्यवाद