नई दिल्लीः नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय चरखा संग्रहालय के प्रत्येक प्रवेश टिकट पर खादी की एक सूत माला निशुल्क दी जा रही है। बीस रुपये का प्रवेश टिकट दस्तकारों के परिजनों के अलावा तिहाड़ जेल के उन कैदियों को भी सहायता प्रदान करता है जो कि सूतमाला बनाते हैं।
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की योजना है कि इन टिकटों की बिक्री से प्राप्त राशि से आर्थिक रूप से कमजोर कारीगरों के परिजनों के लिये एक ट्रस्ट बनाया जाये।
21 मई 2017 से 31 जनवरी 2018 के बीच इन टिकटों की बिक्री से 20 लाख रुपये प्राप्त हुये हैं।
पटना के हाजीपुर में स्थित केवीआईसी के केंद्रीय रजत कारखाने के अवशिष्ट पदार्थों से इस खादी सूतमाला को बनाया जाता है और अंतिम उत्पाद को दिल्ली एवं देश के अन्य हिस्सों में स्थित महिलाओं के द्वारा तैयार किया जाता है।
केवीआईसी अध्यक्ष वीके सक्सेना ने इन सूतमालाओं के पीछे के सामाजिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य का जिक्र करते हुये कहा कि इनसे कारीगरों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव आया है और 45 महिलाओं को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है।
चरखा संग्रहालय एक मामूली उपकरण से लेकर राष्ट्रवाद, स्वतंत्रता आंदोलन और स्वदेशी कपड़े की बुनाई के जरिये नागरिकों के सशक्तीकरण तक की चरखे की यात्रा और विकास को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में 14 प्राचीन चरखे प्रदर्शित किये गये हैं और कपास से धागा और धागे से खादी के कपड़े के निर्माण तक की यात्रा को प्रदर्शित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2016 में पंजाब के लुधियाना में 500 चरखों के वितरण के अवसर पर प्रयुक्त किये गये चरखे को भी यहां प्रदर्शित किया गया है।
राष्ट्रीय चरखा संग्रहालय का मई 2017 में उदघाटन किया गया था। यह संग्रहालय भारतीय चरखे की महान विरासत के लिये एक झरोखा है जो कि आत्म निर्भरता के दर्शन का प्रतीक है। एनडीएमसी और केवीआईसी ने संयुक्त रूप एक 26 फीट (करीब 8 मीटर) लंबे चरखे को स्थापित किया है। यह 13 फीट (करीब 4 मीटर) ऊंचा और करीब 5 टन वजन का है। यह चरखा पूरे विश्व में सबसे बड़ा है और इसे उच्च गुणवत्ता के स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है तथा इसे 9 मीटर लंबे और 6 मीटर चौड़े खुले हुये चबूतरे पर स्थापित किया गया है। इसको सभी मौसमों को सहन करने के लिये बनाया गया है। यह राष्ट्रवाद के एक प्रतीक के तौर पर चरखे के सतत महत्व का उल्लास प्रदर्शित करता है।