लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने जैव ऊर्जा उद्यम प्रोत्साहन कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके तहत पर्यावरण संरक्षण, जैव ऊर्जा उत्पादन पेट्रोलियम आधारित ईंधन की खपत को उत्तरोत्तर रूप से कम करने, अतिरिक्त रोजगार के अवसरों को सृजित करने तथा आर्गेनिक खेती हेतु आवश्यक इनपुट्स की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी।
इस संबंध में नियोजन विभाग द्वारा आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर दिया है। जारी दिशा-निर्देश में प्रदेश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जनपदों में कृषि तथा अन्य जैव अपशिष्टों के जलाये जाने से उठने वाले धुएं के कारण होने वाले स्मोग तथा अन्य पर्यावरणीय प्रदूषण के स्थायी समाधान हेतु मुख्य सचिव द्वारा राज्य स्तरीय अनुश्रवण की नियमित समीक्षा की जाती है। कृषि अपशिष्टों के पावर जनरेशन, कम्पोस्ट या अन्य उत्पाद जैसे स्ट्रा बोर्ड, बायोकोल, बायोचार आदि बनाने में उपभोग के विकल्प तलाश करने की व्यवस्था की गई है। कृषि एवं अन्य जैव अपशिष्टों से बायोकोल (पेलेट्स तथा ब्रिकेट्स) एवं बायो सी.एन.जी. उत्पादन की कार्ययोजना को प्रोजेक्ट मोड में संचालित किये जाने के निर्देश अधिकारियों को दिये गये हैं।
इसी प्रकार की इकाईयों की स्थापना से समस्त प्रकार के जैव ईंधन जिसमें ठोस ईंधन (बायोकोल-पेलेट्स तथा ब्रिकेट्स) द्रव ईंधन (बायोडीजल, बायो एथेनाल तथा मेथेनाॅल), गैसीय ईंधन (बायोगैस/बायो सी.एन.जी.) तथा ड्राप-इन-फ्यूल को उतपादित किये जाने की व्यवसथा की गयी है। परम्परागत पेट्रोल में बायो एथेनाल की उच्च मात्रा में ब्लेन्डिंग की तकनीकी सहमति को देखते हुये आज बायो एथेनाल उत्पादन कार्यक्रम एक बड़े बाजार का रूप ले रहा है। इसके अतिरिक्त ड्राप-इन-फ्यूल अद्यतन तकनीकी पर आधारित एक वैकल्पिक ईंधन है जिसे आवश्यकतानुसार पेट्रोल/डीजल दोनों ही परम्परागत ईंधन में ब्लैण्ड किया जा सकता है। साथ ही इसका उपयोग प्रत्यक्ष रूप से डीजल/पेट्रोल के स्थान पर शतप्रतिशत भी हो सकता है। इसके लिये इंजन में किसी अतिरिक्त परिवर्तन की भी आवश्यकता नहीं होगी। मेथेनाॅल का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में लो-कास्ट स्वच्छ कुकिंग ईधन के रूप में किया जा सकता है। इसके साथ ही आंतरिक दहन इंजन में कतिपय तकनीकी संशोधन के साथ मेथेनाॅल का उपयोग लो-कास्ट स्वच्छ परिवहन ईंधन के रूप में भी आसानी से करने पर बल दिया गया है।