नई दिल्ली: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश में ग्रामीण क्षेत्रों के उन्नयन और आर्थिक विकास के लिए अनेक पहलों पर अमल कर रहा है। कई उपयुक्त प्रौद्योगिकियां विकसित एवं प्रदर्शित की गई हैं और देश में अनेक संस्थानों पर प्रभावकारी ढंग से उपयोग में लाई गई हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय विज्ञान ग्राम संकुल परियोजना’ का शुभारंभ किया, जिसके तहत उत्तराखंड में क्लस्टर अवधारणा के जरिये सतत विकास के लिए उपयुक्त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी कदमों पर अमल करने का प्रयास किया जाएगा।
मंत्री महोदय ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सीख एवं आदर्शों से प्रेरित है, जिनकी जन्म शताब्दी इस साल मनाई जा रही है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने उत्तराखंड में गांवों के कुछ क्लस्टरों को अपनाने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साधनों के जरिये समयबद्ध ढंग से उन्हें स्वयं-टिकाऊ क्लस्टरों में तब्दील करने की परिकल्पना की है। इस अवधारणा के तहत मुख्य बात यह है कि स्थानीय संसाधनों के साथ-साथ स्थानीय तौर पर उपलब्ध कौशल का उपयोग किया जाएगा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए इन क्लस्टरों को कुछ इस तरह से परिवर्तित किया जाएगा, जिससे कि वहां की स्थानीय उपज और सेवाओं में व्यापक मूल्यवर्धन संभव हो सके। इससे ग्रामीण आबादी को स्थानीय तौर पर ही पर्याप्त कमाई करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को रोजगारों एवं आजीविका की तलाश में अपने मूल निवास स्थानों को छोड़कर कहीं और जाकर बस जाने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जब यह अवधारणा कुछ चुनिंदा क्लस्टरों में सही साबित हो जाएगी, तो इसकी पुनरावृत्ति देशभर में अनगिनत ग्रामीण क्लस्टरों में की जा सकती है।
डीएसटी और उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूसीओएसटी), ग्रामोदय नेटवर्क, सुरभि फाउंडेशन और उत्तराखंड उत्थान परिषद के अधिकारियों तथा अन्य विशेषज्ञों के बीच अनेक दौर की वार्ताओं के बाद गैंदिखाता, बजीरा, भिगुन (गढ़वाल) और कौसानी (कुमाऊं) में चार क्लस्टरों का चयन किया गया है, ताकि वहां आवश्यक उपायों पर अमल किया जा सकें। इसके अलावा स्थानीय लोगों के साथ भी गहन चर्चाएं की गईं तथा विभिन्न संबंधित क्षेत्रों का दौरा किया गया, ताकि इन क्लस्टरों में मौजूद चुनौतियों और अवसरों की पहचान की जा सके।
इस परियोजना से पॉयलट चरण के दौरान उत्तराखंड के 60 गांवों के चार चिन्हित क्लस्टरों में करीब एक लाख लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे। ये क्लस्टर विभिन्न ऊंचाइयों (3000 मीटर तक) पर अवस्थित हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने इस परियोजना के लिए अगले तीन वर्षों की अवधि के दौरान 6.3 करोड़ रुपये की सहायता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।