देहरादून: राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पाल ने श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग के नवप्रतिष्ठित संस्कृत संस्थान के भवन और स्टेडियम का शिलान्यास किया। शिलान्यास कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आने वाले कुछ ही वर्षोे में देवप्रयाग में स्थापित इस संस्थान का विशेष महत्त्व होगा। आने वाले कुछ ही वर्षों में देवप्रयाग की पहचान इस संस्थान के नाम से होगी। यह संस्थान देवभूमि में संस्कृत-शिक्षा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का श्रेष्ठ माध्यम बनेगा। यह उत्तराखण्ड की प्रतिभाओं को निखारने के साथ ही प्रतिभा-पलायन में भी रोक लगाने में मददगार साबित होगा।
राज्यपाल ने संस्कृत भाषा की शिक्षा की आवश्यकता को बताते हुए कहा कि संस्कृत भारतीय सभ्यता की मूल भाषा है। दो हजार साल से यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग रही है। हमारा समस्त प्राचीन साहित्य और काव्य संस्कृत में ही है।
संस्कृत का भारतीय संविधान में एक विशेष स्थान है। उत्तराखण्ड ही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ संस्कृत को एक विशेष दर्जा प्राप्त है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य ने इसे अपनी राजकीय भाषा स्वीकार किया है। संस्कृत और उत्तराखण्ड का रिश्ता हजारों साल पुराना है जिसको अब एक संवैधानिक रूप मिल चुका है।
राज्यपाल ने संस्कृत छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आजकल वैश्वीकरण का दौर है जिससे ज्ञान-विज्ञान में वृद्धि हुयी है और वैश्विक आदान-प्रदान से हर एक क्षेत्र में फायदा हुआ है, परन्तु सूचना प्रौद्योगिकी, टेलीविजन इत्यादि के प्रभाव के कारण जहाँ लाभ हुआ है वहीं हमारे बुनियादी मूल्य कमजोर हो रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी जो स्कूल या काॅलेज में हैं वे इन चीजों से बहुत प्रभावित है। उन्होंने कहा कि तकनीकी और प्रौद्योगिकी के साथ साथ हमारी युवा पीढ़ी को भारतीय मूल सिद्धान्तांे से जुड़ा रहना भी उतना ही आवश्यक है, इसलिए युवा पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ा जाना परमावश्यक प्रतीत होता हैैं। यदि हम अपनी पुरानी सभ्यता के बारे में और प्राचीन संस्कृति के बारे में गहराई तक जानना चाहते हैं तो संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आजकल का युवा वर्ग भारतीय सभ्यता से दूर होता चला जाएगा और हम अपने बुनियादी मूल्यों को भूल जाएंगे। इससे आने वाले समय में देश कमजोर होगा और देश की अखण्डता पर भी प्रभाव पड़ेगा।
संस्कृत संस्थान और शिक्षकों व संस्कृत छात्रों को प्रयास करने होंगे कि आम आदमी और स्कूल-काॅलेज के युवा को संस्कृत भाषा की ओर आकर्षित किया जा सके। आम जनमानस में भाषा के प्रसार हेतु संस्कृत साहित्य का अनुवाद किया जाना भी आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कल्चर यानी संस्कृति का प्रसार किया जा सकता है।