नई दिल्लीः अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता केन्द्र (एसएआरटीटीएसी) की संचालन समिति की अंतरिम बैठक नई दिल्ली में हुई। बैठक में फरवरी, 2017 में इसके उद्घाटन के बाद से इसकी गतिविधियों का जायजा लिया गया और वित्त वर्ष 2018 की कार्य योजना की समीक्षा की गई। एसएआरटीटीएसी के उद्घाटन के बाद समिति की 13 फरवरी, 2017 को बैठक हुई थी। सभी 6 सदस्य देशों के अधिकारियों ने विकास साझेदार प्रतिनिधियों (यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूएसऐड) और आईएमएफ स्टॉफ के साथ बैठक में हिस्सा लिया।
अपने उद्घाटन भाषण में वित्त मंत्रालय में विशेष सचिव श्री दिनेश शर्मा ने कहा कि एसएआरटीटीएसी की संभावनाओं को पूरा करने के लिए सही और सकारात्मक विचार की जरूरत है। संचालन समिति के सदस्यों ने एसएआरटीटीएसी के कार्य करने की गति और क्षमता विकास (प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता) के प्रभावशाली प्रदर्शन का स्वागत किया। एसएआरटीटीएसी ने थोड़े से समय में सभी कार्यों को पूरा किया है। समिति ने सदस्य देशों को दिए गए प्रशिक्षण और भारत के विभिन्न अधिकारियों को शामिल करने तथा देश में प्रशिक्षण की सराहना की।
समिति ने क्षमता विकास जरूरतों के बारे में ऐसे एसएआरटीटीएसी के साथ कार्य करने की सदस्य देशों की बड़े पैमाने पर मांग पर विचार किया। इसमें भारत की विभिन्न सरकारों की बढ़ती दिलचस्पी शामिल है। सेंटर के कार्यों में संसाधनों की कमी की चर्चा करते हुए इसमें परिणामों पर जोर देने का समर्थन किया गया। समिति ने उम्मीद जाहिर की कि एसएआरटीटीएसी के बजट का लचीले तरीके से प्रबंधन किया जाएगा ताकि यह सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुस्तैदी से कार्य कर सके।
समिति ने वित्त वर्ष 2018 की कार्य योजना को मंजूरी दी। इसने सरकार के वित्त और सार्वजनिक ऋण सांख्यिकी में नए कार्य क्षेत्र को मंजूरी दी, जहां सदस्यों ने मजबूती से मांग रखी और भविष्य में तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण की योजना पर कार्य किया जा रहा है। समिति ने एसएआरटीटीएसी के पहले पांच वर्ष (2017-2022) के लिए वित्तीय सहायता का 90 प्रतिशत प्राप्त करने का स्वागत किया। संचालन समिति की अगली बैठक मई 2018 में श्रीलंका में होगी।
नई दिल्ली स्थित एसएआरटीटीएसी बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव और श्रीलंका के साथ कार्य करता है। सदस्य देश इसके बजट का दो तिहाई वित्तीय सहायता देते हैं, जिसके लिए अतिरिक्त सहायता यूरोपीय संघ, कोरिया, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया से मिलती है।
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