नई दिल्ली: नोटबंदी का एक साल पूरा हो गया। 8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर प्रकट हुए और अचानक उन्होंने आधी रात से देश में 500 और 1000 के नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा कर दी। घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वो ऐतिहासिक समय आ गया है, जब देश के विकास के लिए बड़े और निर्णायक फैसले लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार, कालाधन, आतंकवाद और जाली नोट देश के विकास के लिए नासूर बन गए हैं। सीमा पार से शत्रु जाली नोट भेजकर अपना धंधा बढ़ा रहा है। उस समय तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू ने इसे भ्रष्टाचार और कालेधन पर प्रधानमंत्री मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक बताया था।
एक अन्य केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे दूसरी आजादी से नवाजा था। इस तरह नोटों को बदलने के लिए 30 दिसंबर, 2016 तक का समय दिया गया था। यह निर्णय कितना बड़ा दिमागी फितूर था कि इस अवधि के दौरान घंटों और दिनों के हिसाब से नोट बदली के नियम बदलते रहे। पुरजोर कोशिश की गई कि रद्द किए हुए नोट पूरी तरह से बैंकों में वापस न जा सकें। लेकिन, दिसंबर आते-आते पूरे संकेत मिल गए थे कि 97 फीसदी रद्द नोट बैंकों में वापस लौट आए हैं और मोदी सरकार को नोटबंदी को लेकर अपना पैंतरा बदलना पड़ा। नोटबंदी की अवधि में बैंकों के सामने लंबी-लंबी कतारें लगीं। नोट बदलने की आस में 100 से ज्यादा लोगों की जानें गईं। लाखों लोगों की नौकरियां गईं। अप्रवासी मजदूर भारी संख्या में अपने गांव लौट गए। अर्थव्यवस्था कुंद हो गई। नोटबंदी से विकास को पटरी पर लाने का दावा तो दूर, खुद भारतीय रिजर्व बैंक को हजारों-करोड़ों का चूना लगा, जो 3 से 4.5 लाख करोड़ रुपए के ‘विंडफॉल गेन'(अकस्मात लाभ) की आस लगाए बैठा था, जिस पर केंद्र सरकार गिद्ध निगाहें जमाकर बैठी थी।
लाखों हुए बेरोजगार
नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, यह नकारा नहीं जा सकता है। अब सरकार ने इतना माना है कि इसका फौरी प्रभाव पड़ा। लेकिन, नोटबंदी की सबसे घातक मार देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ी है, जो देश में 93-94 फीसदी रोजगार मुहैया कराता है और सकल घरेलू 3 लाख में इसका योगदान 45 फीसदी है। यह क्षेत्र मूलत: नकद व्यवस्था पर निर्भर है। भाजपा की पैतृक संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि नोटबंदी से तकरीबन ढाई लाख लघु इकाइयां बंद हो गईं। एक इकाई में 10 कामगार भी मान लें तो 25 लाख लोग बेरोजगार हो गए। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी देश में एक प्रतिष्ठित आॢथक संस्था है, जिसकी रिपोर्ट लेने के लिए कारोबारी लाखों रुपए खर्च करते हैं।
इस संस्था का आकलन है कि जनवरी-मार्च के बीच कम से कम 15 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं। अर्थव्यवस्था में आई सिकुडऩे से सब मिलाकर देश को 2 लाख से ढाई लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। नोटबंदी का भयावह असर किसानी पर पड़ा है। अधिक पैदावार के बावजूद आज उनकी आर्थिक माली हालात बेहद खराब हैं। किसानों में बढ़ते असंतोष और बढ़ी आत्महत्याओं से इसकी भयावहता का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि अब प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेता चुनावी भाषणों में नोटबंदी के किस्से से परहेज करने लगे हैं।
उम्मीदों पर फिरा पानी
मोदी सरकार को पूरी उम्मीद थी कि बोरियों, गद्दों और तकियों में बंद नोटों की हजारों-लाखों गड्डियां बेकार हो जाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में यहां तक कह दिया कि 500 और 1000 के नोट लोग गंगा में बहा देंगे। 15 अगस्त, 2017 को लाल किले की प्राचीर से दिए राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि 3 लाख करोड़ रुपए जो बैंकिंग सिस्टम में नहीं आए, वह क्या है? लेकिन, इस सारी उम्मीदों पर पानी पड़ गया। अब विरोधी सवाल पूछ रहे हैं कि कहां है कालाधन? रिजर्व बैंक ने यह बताने में आना-कानी की कि बैंकों में कुल कितने रद्द किए नोट वापस आ गए हैं। उसने संसदीय समिति को भी यह कह कर टरका दिया कि अभी नोटों की गिनती जारी है। लेकिन, बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती। भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में नोटबंदी की सारी पोल-पट्टी खुल गई। इस रिपोर्ट से उजागर हुआ कि 500 और 1000 रुपए के रद्द किए गए नोट में से 99 फीसदी नोट रिजर्व बैंक में वापिस आ गया है।
नोटबंदी के समय रिजर्व बैंक के मुताबिक 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम में लौट आए हैं। केवल 1600 करोड़ नोट वापस नहीं लौटे। इस रिपोर्ट ने ऐतिहासिक, सबसे बड़े, कड़े फैसले और दूसरी आजादी जैसे सरकारी दावों पर पानी फेर दिया। अब तक मोदी और उनके नुमाइंदे सारभूत ढंग से यह बताने में असमर्थ हैं कि नोटबंदी के फितूर से देश का क्या भला हुआ। व्यापार बढ़ा, रोजगार बढ़े या आॢथक विकास की दर बढ़ी। सच तो यह है कि अब मोदी सरकार के मंत्री-संत्री नोटबंदी के नाम से ही कन्नी काटने लगे हैं।
जाली नोटों ने किया शर्मिंदा
समझा गया था कि आतंकवाद और नक्सलवाद की जड़ में नकली नोट है। नोटबंदी से इसकी यानी फर्जी नोट की कमर टूट जाएगी। लेकिन, रिजर्व बैंक के आंकड़ों से इस दलील की भी कमर टूट गई। भारतीय रिजर्व बैंक को अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच 500 और 1000 के 573891 नकली नोट मिले, जो इससे पहले साल 404794 नकली नोटों की पहचान की गई थी। यह बहुत मामूली अंतर है। जाहिर है कि जाली नोटों का दाबा आधारहीन साबित हुआ। इस नोटबंदी से सीमा पर आतंकवादी वारदातें भी बंद नहीं हुईं, न ही नक्सलवाद की कमर टूटी। आए दिन नक्सली ङ्क्षहसा की खबरें आती रहती हैं। हां, अब नए 2000 और पांच सौ के नकली नोट पकड़े जाने की खबरें गाहे-बगाहे आती रहती हैं, लेकिन, वित्त मंत्री अरुण जेतली का कहना है कि इससे घाटी में पत्थरबाजों की संख्या में कमी आई है।
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