नयी दिल्ली: बेहतर कृषि आर्थिक व्यवहारों को लोकप्रिय बनाने/ प्रचलित करने के लिए वर्ष 2015 में लांच की गई पहल जूट के लिए बेहतर खेती और आधुनिक आर्द्रता (जूट-आईकेयर) ने हाल में पायलट आधार पर पश्चिम बंगाल और असम के कुछ ब्लॉकों में किसानों के बीच माइक्रो बायल समर्थित नमी अभ्यास किया। संशोधित कृषि आर्थिक व्यवहार में पैदावार 10-15 प्रतिशत बढ़ाने के लिए क्यारीबद्ध तरीके से पटसन की बुआई, खर-पतवार प्रबंधन लागत में कमी के लिए हाथ की जगह मशीनों से खर-पतवार प्रबंधन शामिल हैं।
जूट और संबद्ध रेशा अनुसंधान के लिए केन्द्रीय अनुसंधान संगठन (सीआरआईजेएएफ) ने सोना नामक माइक्रोबायरल कंर्सोटियम विकसित किया है ताकि रेशे की उत्पादकता 20 प्रतिशत बढ़ाई जा सके और गुणवत्ता की दृष्टि से इसमें डेढ ग्रेड वृद्धि की जा सके। जूट उत्पादकता में सुधार पर पंजीकृत किसानों को क्षेत्रीय भाषाओं में एसएमएस भेजे जाते हैं। परियोजना के दौरान विभिन्न अंतरालों पर प्रत्येक किसान को औसतन 50 एसएमएस भेजे जाते हैं। प्रदर्शनी उद्देश्य से बीज छेदन यंत्र और खत-पतवार प्रबंधन यंत्र भेजे गए हैं।
इन पहलों से प्रति हेक्टेयर पटसन किसानों की आय 10,000 रुपये से अधिक बढ़ी है।
जूट आई-केयर पायलट परियोजना के उत्साही परिणामों को देखते हुए राज्य कृषि विस्तार व्यवस्था के माध्यम से जूट आई-केयर कार्यक्रम की पहुंच बढ़ाने के लिए कपड़ा मंत्री और कृषि मंत्री द्वारा 22.3.2017 को संयुक्त बैठक की गई। इस बैठक में राज्य सरकारों, कृषि अनुसंधान एजेंसियों, राष्ट्रीय पटसन बोर्ड, राष्ट्रीय पटसन निगम के प्रतिनिधि शामिल हुए। जूट आई-केयर कार्यक्रम के अंतर्गत उठाये कुछ कदम इस प्रकार हैं:
- सभी मुख्य मंत्रियों को सलाह दी गई है कि वे जूट आई-केयर कार्यक्रम को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत लें और कृषि विकास केंद्रों (केवीके) के माध्यम से प्रमाणित पटसन बीज उपयोग के लिए किसानों को जागरूक बनायें। राज्यों से कृषि मिशन में उप-मिशन (एसएमएएम) के अंतर्गत कृषि उपकरणों की सप्लाई करने और मनरेगा तथा आरकेवीवाई के अंतर्गत नमी के लिए टैंक बनाने का भी अनुरोध किया गया है।
- 22 मई, 2017 को वस्त्र मंत्रालय के राष्ट्रीय पटसन बोर्ड ने राष्ट्रीय बीज निगम तथा भारतीय पटसन निगम के साथ सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया। यह ज्ञापन 2018 के लिए पटसन किसानों को 800 मीट्रिक टन नए किस्म के पटसन बीज और 2019 के लिए 1500 मीट्रिक टन नए किस्म के पटसन बीज की सप्लाई करने के लिए है। वर्ष 2018 और 2019 में प्रमाणित बीजों की उपलब्धता क्रमश: 60 और 87.5 प्रतिशत बढ़ेगी।
- जुलाई के दूसरे सप्ताह से सिंचाई का काम शुरू हुआ और यह अगस्त 2017 तक चलेगा। यह बताया गया है कि जूट के पौधे की औसत लंबाई 10 से 13 फीट की होगी जबकि सामान्यत: लंबाई 9 फीट होती है। इस तरह जेआर 204 किस्म के बीज को किसानों के बीच काफी उत्पादक माना जाता है।
- जूट आई-केयर परियोजना की लोकप्रियता इस तथ्य से भी प्रमाणित होती है कि वर्ष 2017 में परियोजना के अंतर्गत पंजीकरण कराने वाले किसानों की संख्या 147 प्रतिशत बढ़ी और यह 103122 हो गई। पिछले वर्ष किसानों की पंजीकरण संख्या 41616 थी। 2017 में जूट उत्पादक राज्यों के 26 ब्लॉकों में लगभग 70,328 हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया गया। वर्ष 2016 की तुलना में यह 167 प्रतिशत की वृद्धि है।
- जूट और संबद्ध रेशा अनुसंधान में एनजेबी के सहयोग से सीआरआईजेएएफ तथा राष्ट्रीय पटसन और संबद्ध रेशा अनुसंधान संस्थान (एनआईआरजेएएफटी) की अग्रिम पंक्ति की प्रदशर्नियों को स्वीकृति दी गई है।
- किसानों को समर्थन देने के लिए कृषि मेले का आयोजन किया जा रहा है। अगले कृषि मेले अक्टूबर-नवंबर महीने में निम्नलिखित होंगे।
पूर्णिया में फारबिसगंज | 12-14 अक्टूबर 2017 |
सिलीगुड़ी | 13-अक्टूबर – 1 नवंबर 2017 |
गुवाहाटी | 8-10 नवंबर 2017 |
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