लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में लोक भवन में सम्पन्न मंत्रिपरिषद की पहली बैठक में 31 मार्च, 2016 तक लघु व सीमान्त किसानों को जितना भी फसली ऋण दिया गया है, उसका 31 मार्च, 2017 को अचुकता अवशेष माफ करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। फसली ऋण माफी की अधिकतम सीमा प्रति किसान एक लाख रुपए होगी।
इसके अलावा, एन0पी0ए0 ऋणों को एकमुश्त समाधान (ओ0टी0एस0) के तहत राज्य सरकार की वित्तीय सहायता से राइट आॅफ किया जाएगा, जिस पर अनुमानित वित्तीय भार लगभग 6000 करोड़ रुपए होगा। इस पूरी योजना में 86 लाख से अधिक लघु व सीमान्त किसानों को लाभ होगा, जिन्होंने बैंकों से फसली ऋण ले रखा है।
योजना की कुल लागत लगभग 36 हजार करोड़ रुपए होगी, जिसमें एकमुश्त समाधान योजना की लागत लगभग 6000 करोड़ रुपए होगी। एकमुश्त समाधान योजना से ऐसे लगभग 7 लाख किसान पुनः बैंकिंग सेवाओं का लाभ ले सकेंगे, जिन्हें ऋणग्रस्तता के कारण बैंकों ने फसली ऋण देना बन्द कर दिया था।
प्रदेश के एक हेक्टेयर अर्थात 2.5 एकड़ तक के सभी किसान सीमान्त किसान की श्रेणी में आएंगे। इस प्रकार 2 हेक्टेयर अर्थात 5 एकड़ तक के सभी किसान लघु किसान की श्रेणी में आएंगे। योजना का लाभ प्रदेश के सभी लघु व सीमान्त कृषकों को मिलेगा। प्रारम्भिक गणना के अनुसार प्रदेश में ऐसे कुल 86.68 लाख लघु व सीमान्त किसान हैं, जिन्होंने बैंकों से फसली ऋण लिया हुआ है।
फसली ऋण माफी योजना हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 8 अधिकारियों की एक कमेटी बनाई गई है, जिसमें कृषि उत्पादन आयुक्त, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव, वित्त, संस्थागत वित्त/कृषि/सहकारिता व राज्य बैंक समन्वयक सदस्य हैं। यह समिति सभी पहलुओं का अध्ययन कर विस्तृत फसली ऋण माफी योजना तैयार करेगी व उसका मुख्यमंत्री से अनुमोदन लेकर क्रियान्वयन करेगी। साथ ही, समिति योजना के वित्त पोषण हेतु भी अपनी संस्तुतियां शासन को प्रस्तुत करेगी, जिसके आधार पर सरकार द्वारा इस हेतु वित्तीय व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएंगी। क्रियान्वयन के अतिरिक्त समिति की इस योजना के सतत् अनुश्रवण में भी सक्रिय भूमिका होगी।
प्रदेश सरकार ने अपने संकल्प पत्र के अनुसार मंत्रिमण्डल की पहली बैठक में लघु एवं सीमान्त किसानों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के क्रम में यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है।
ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश की लगभग 78 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जिसमें 68 प्रतिशत परिवार कृषि पर निर्भर हैं। किसानों की संख्या का लगभग 93 प्रतिशत लघु व सीमान्त किसान हैं। इसी से स्पष्ट है कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था लघु व सीमान्त किसानों पर काफी हद तक निर्भर है। गत तीन वर्षों में सूखा, बाढ़ व ओलावृष्टि का सर्वाधिक कुठाराघात लघु व सीमान्त किसानों पर हुआ है, जिससे वे फसली ऋण की अदायगी भी नहीं कर पा रहे हैं तथा उनकी सूदखोरों व साहूकारों के ऋण के भंवरजाल में फंसने की प्रबल आशंका है। इससे कृषि सेक्टर व प्रदेश के विकास की गति भी अवरुद्ध होने की सम्भावना है।
2016-17 में जहां राज्य के सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत अनुमानित है, वहीं कृषि एवं पशुपालन सेक्टर में यह 5.3 प्रतिशत ही रहने का अनुमान है। 2011-12 से 2014-15 के मध्य जहां प्रदेश में प्रति व्यक्ति कुल आय में 3.2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर रही, वहीं कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र में यह वृद्धि मात्र 1.2 प्रतिशत रही। इसी के दृष्टिगत प्रदेश सरकार की यह प्रतिबद्धता है कि पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं के दंश को झेल रहे इन सभी लघु एवं सीमान्त किसानों के फसली ऋण माफ किए जाएं।
इसी आशय से लोक कल्याण संकल्प पत्र के माध्यम से उद्घोषित अपनी प्रतिबद्धता ‘कृषि विकास का बने आधार’ के क्रियान्वयन का राज्य सरकार द्वारा अपनी पहली मंत्रिमण्डलीय बैठक में निर्णय लिया गया। इससे लघु एवं सीमान्त किसानों को इस हेतु सक्षम बनाया जाएगा कि वे बैंकिंग व्यवस्था का लाभ लेकर कृषि में निवेश करें, ताकि वे न केवल स्वयं स्वावलम्बी हों, अपितु राज्य के कृषि सेक्टर के उत्पादन व उत्पादकता में भी वृद्धि हो।