लखनऊ: आलू उत्तर प्रदेश की प्रमुख नकदी फसलों में से एक है। यह फसल अत्यन्त संवेदनशील होती है जिस पर मौसम की प्रतिकूलता का प्रभाव शीघ्रता से हो जाता है। विगत कई दिनों से मौसम ऐसा बना हुआ है कि वातावरण में नमी अत्यधिक है तथा सूर्य का पर्याप्त प्रकाश भी नहीं मिल पा रहा है। पाला पड़ते रहने तथा पिछेती झुलसा रोग के कारण आलू की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ने की सम्भावना बढ़ गयी है। यदि मौसम की प्रतिकूलता इसी प्रकार बरकरार रहती है तो पिछेती झुलसा रोग व पाले से आलू की फसल का नुकसान होने की सम्भावना है।
इस विषम परिस्थिति से बचने के लिए उद्यान विभाग ने सलाह जारी की है कि किसान भाई प्रत्येक सप्ताह आलू के खेत में सिंचाई करते रहे तथा खेत के पश्चिमी किनारे पर आग सुलगाकर धुआँ करते रहे। इससे आलू की फसल पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उद्यान निदेशक एस0पी0 जोशी की तरफ से किसानों के लिए यह सलाह जारी की गयी है कि पिछेता झुलसा रोग पर नियंत्रण के लिए मैन्कोजेब/प्रोपीनेब/ क्लोरोथेलोनील युक्त फफूदनाशक दवा का रोग सुग्राही किस्मोपर 0.25-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2 से 2.5 किलोमीटर दवा प्रति 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर तुरन्त छिड़काव करें। जिन खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी है उनमें किसी भी फफूदनाशक-साईमोक्सेनिल$मैन्कोजेब का 3 किग्रा प्रति 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। इसके विकल्प के रूप में फेनोमिडोन$मैन्कोजेब का 3 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर अथवा डाईमेथोमार्फ का 01 किग्रा व मैन्कोजेब का 2 किग्रा (कुल मिश्रण 3 किग्रा) 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
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