डोकलाम के पतझड़ के बाद वुहान का बसंत आया है. चीन के वुहान गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. पहली बार दोनों देशों के नेताओं के बीच हो रही इस अनौपचारिक शिखर वार्ता में कुछ महीने पहले तक रही हर तल्खी गायब है, बस बात भरोसे की हो रही है, साथ चलकर देश और दुनिया बदलने की हो रही है.
दोनों नेताओं की पहली अनौपचारिक शिखर वार्ता के दौरान मोदी ने कहा कि दोनों देशों की सोच साझा है. मोदी ने अपने न्यू इंडिया के प्रयासों की तुलना जिनपिंग के न्यू इरा के सपने से की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘पिछली बार जुलाई में जब हम मिले थे और हमारे बीच अनौपचारिक बातचीत का विषय डेवलप हुआ और आज आपने इस अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए निमंत्रण दिया और एक शानदार वातावरण बनाया… बहुत ही सकारात्मक वातावरण बनाया. इसमें आपका व्यक्तिगत तौर पर बहुत बड़ा योगदान है. मैं हृदय से बहुत ही प्रशंसा करता हूं.’
ये सच है कि कूटनीति की कोई परिभाषा नहीं होती. कोई पैटर्न नहीं होता. इसलिए वुहान का ये सेटअप अपने आप में अनूठा तो है ही, लेकिन मोदी-शी की इस अनौपचारिक मुलाकात में रिश्तों को आगे बढ़ाने की औपचारिकताओं को पूरा करने की कसर भी नहीं छोड़ी जा रही.
पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या का भला करने का दायित्व हमारे ऊपर आया है और 40 प्रतिशत जनसंख्या का भला करने का मतलब है विश्व को अनेक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का एक सफल प्रयास और इस महान उद्देश्य को लेकर हमारा मिलना, साथ चलना और संकल्पों को पूरा करना. ये अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है.’
वुहान में मोदी-जिनपिंग की पहली मुलाकात से पहले खुद जिनपिंग इस तरह इंतजार करते दिखे, जैसे कोई बेहद खास दोस्त बड़े दिनों बाद मिलने आया हो. मोदी-शी की मौजूदगी में दोनों देशों के सांस्कृतिक तारों को जोड़ने की भी रस्म अदायगी हुई. लेकिन न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में सबसे अहम आर्थिक संबंध ही होते हैं. इसीलिए सांस्कृतिक संबंधों के बहाने मोदी ने आर्थिक संबंधों को नए सिरे से गूंथने की कोशिश भी की.
इस बात की तस्दीक प्रधानमंत्री के संबोधन से होती है, जब उन्होंने कहा कि विश्व इस बात का गवाह है और बहुत ही इनडेप्थ स्टडी हुई है कि पिछले 2000 साल के इतिहास में 1600 साल ऐसे गए जिसमें चीन और भारत की अर्थव्यवस्था ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को गति दी है. ताकत दी है. करीब-करीब 50 प्रतिशत हिस्सा हम दोनों का था और बाकी 50 प्रतिशत में सारी दुनिया सिमटी हुई थी. 16 साल लगातार दो देशों का इतना बड़ा प्रभाव ये बहुत बड़ी बात है.
सभ्यता और संस्कृति के पन्नों को टटोलते हुए दोनों नेता मौजूदा वक्त को पढ़ने की कोशिशों में जुटे हैं. संग्रहालय के दौरे के बाद दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई. यूं तो इस बातचीत को द्विपक्षीय वार्ता का नाम नहीं दिया गया, लेकिन वहां दोनों देशों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी बता रही है कि बातचीत का एजेंडा जरूर रहा होगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के समय जो आपका वक्तव्य हुआ, उसमें आपने न्यू एरा की बात कही, मैं भारत में न्यू इंडिया की बात कर रहा हूं. ये इतनी समान भूमिका वाली हमारी सोच है. मैं समझता हूं कि यही तय करता है कि आपका न्यू एरा का सपना और हमारा न्यू इंडिया का प्रयास ये अपने आप में विश्व के लाभ के लिए सही दिशा में हमारा कदम है. जब संसार की शांति, स्थिरता और समृद्धि की दिशा में भारत-चीन चल रहे हैं, मैं 5 बहुत सकारात्मक तत्व देखता हूं. हमारे बीच की सोच, संपर्क, सहयोग, समान संकल्प, समान सपने. ये पांच तत्व हैं सोच, संपर्क, सहयोग, सपने, संकल्प विश्व की ताकत बन सकते हैं.
मोदी ने आगे कहा कि मैं सोचता हूं कि हमारे बीच जो ये निकटता बनी है, एक दूसरे के प्रति विश्वास पैदा हुआ है, समझ बनी है. ये धीरे-धीरे व्यक्ति से व्यक्ति संपर्क में किस प्रकार से कन्वर्ट होगी और वो सबसे बड़ी ताकत बनेगी. वो सिर्फ हम दो देशों की नहीं, दुनिया के उज्जवल भविष्य के लिए शक्ति बनेगी.
मोदी और जिनपिंग शनिवार को वुहान की झील के किनारे टहलते-टहलते बात करेंगे. नाव पर सवारी करके भी एक दूसरे से बात करेंगे. यूं तो पहले से तय ये है कि मोदी के इस चीन दौरे का नतीजा क्या है, इसका ऐलान नहीं होगा, क्योंकि यहां अनौपचारिक शिखर वार्ता हो रही है, लेकिन मोदी बताना चाह रहे हैं कि भारत-चीन के बीच रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसी ही अनौपचारिक बातचीत के लिए शी जिनपिंग को भारत आने का न्यौता दे दिया है. (AAjTak)