पुष्कर रावत, उत्तरकाशी
उत्तरकाशी जिले के डूण्डा ब्लाक का दिगथोल गांव। यूं तो यह गांव प्रदेश दूसरे गांवों की तरह की सामान्य है, लेकिन एक यहां की एक खासियत इसे अलग बना देती है। गांव में किसी भी देवी-देवता का कोई मंदिर नहीं है। ग्रामीण पूजा करते हैं तो एक वृक्ष की। हर मौसम में हरा-भरा रहने वाले इस वृक्ष को लोकभाषा में
सिल्की नाम से पुकारा जाता है। इसी गांव के 70 वर्षीय कुंवर सिंह बताते हैं ‘हमारी कई पीढि़यों देख चुका यह पेड़ समृद्धि का प्रतीक है। इसीलिए इसकी पूजा की जाती है। यह आस्था का असर ही है कि अपने आसपास के जंगल से हम जरूरत से ज्यादा कभी नहीं लेते। यह वृक्ष हमारे विश्वास का सूचक है, अंधविश्वास का नहीं।’
जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 28 किलोमीटर दूर दिगथोल गांव में 52 परिवार हैं। इस समूचे गांव की आस्था का केंद्र है गांव के बीचों-बीच खड़ा सिल्की का वृक्ष। ग्रामीण प्रतिदिन इस वृक्ष की पूजा अर्चना करते हैं। नवरात्र हो, शिवरात्रि या कोई अन्य पर्व, ग्रामीण यहां धार्मिक अनुष्ठान पूरा करते हैं। अनुष्ठान में गांव और क्षेत्र की सुख समृद्धि की कामना के साथ ही पेड़ से अपनी छांव बनाए रखने की मनौती मांगी जाती है। ग्रामसभा की ओर से नियमित तौर पर इस पेड़ के चारों ओर सफाई कराई जाती है।
ग्राम प्रधान निर्मला देवी बताती हैं कि पूर्वजों के समय से ही गांव में मंदिर नहीं है और सिल्की की पूजा की जाती है। वह कहती हैं जल और जंगल के बिना पहाड़ों पर जिंदगी की कल्पना ही बेमानी है। शायद यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण को आस्था से जोड़ परिवेश बचाने का प्रयास किया। वह बताती हैं कि यह हमारी परंपरा का प्रभाव ही है कि गांव के बच्चे भी पेड़ों के महत्व को समझते हैं।
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