असम में भाजपा को लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में भी अभूतपूर्व सफलता मिली
चुनाव आयोग ने तीन पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड में विधानसभा चुनावों की तारीख़ों की घोषणा कर दी है.
त्रिपुरा में 18 फरवरी जबकि मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को मतदान होंगे. तीनों राज्यों में वोटों की गिनती 3 मार्च को होगी.
भारतीय राजनीति के लिहाज से इन तीन राज्यों के चुनाव कितने महत्वपूर्ण हैं इस पर बीबीसी संवाददाता मोहनलाल शर्मा ने वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार से बात की.
तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों का ऐलान
असम में गोबर क्यों ढूंढ रही रमन सरकार
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EPA/RAJAT GUPTA
पढ़ें मुकेश कुमार का नज़रिया
देश की राजनीति में पूर्वोत्तर के चुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं. भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों को कांग्रेस मुक्त बनाने का अभियान छेड़ा हुआ है.
पूर्वोत्तर में अभी केवल मेघालय में कांग्रेस की सरकार है. अगर भाजपा मेघालय में जीत जाती है तो उसका एक बड़ा अभियान पूरा हो जाता है.
दूसरा, इस साल अभी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और मिज़ोरम में भी चुनाव होने हैं. अगर इन चुनावों में भाजपा और उसके साथी दलों का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो निश्चित रूप से उसका मनोबल बढ़ेगा.
कांग्रेस के लिहाज़ से देखें तो मेघालय बचाना उसके लिए राहत की बात होगी. अपने अस्तित्व को बचाने के लिहाज़ से कांग्रेस के लिए ये एक बड़ी चुनौती है. निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर इसका संदेश जाएगा.
पूर्वोत्तर में भाजपा की स्थिति
पूर्वोत्तर में भाजपा का प्रभाव नहीं था. उसने वहां जोड़-तोड़ और हिंदुत्व के बल पर काम किया है. असम में अगर कांग्रेस से टूट कर लोग नहीं आए होते और हेमंत बिस्व सरमा ने कमान नहीं संभाली होती और असम भाजपा को नहीं मिलता.
हेमंत बिस्व सरमा ने ही पूर्वोत्तर के अन्य सभी राज्यों में भाजपा को कई ऐसे मददगार लोग और दल दिए हैं जिससे वो अपना वजूद बना भी सकती है और मजबूत भी कर सकती है.
ऐसा नहीं है कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भाजपा हिंदुत्व का इस्तेमाल नहीं कर रही. त्रिपुरा में जिस प्रकार का सांप्रदायिकता का माहौल बनाया गया है वो उसी के परिणाम थे.
असम में वो हिंदुत्व की राजनीति के बल पर ही जीते थे. हिंदुत्व के बल पर वोटों का ध्रुवीकरण किया गया था. इसकी वजह से ही भाजपा ने असम में झंडा गाड़ा था.
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EPA/STR
क्या कर रही है भाजपा?
भाजपा की नीति पूर्वोत्तर में अपना आधार बढ़ाने की है. वो इसके लिए बिल्कुल भी परहेज नहीं कर रही कि जो लोकतांत्रिक तौर तरीके हैं उनका ख्याल रखा जाये या ना रखा जाए.
त्रिपुरा में उसने तृणमूल के लोग तोड़े हैं. मेघालय में कांग्रेस के लोग टूटे हैं. अरुणाचल में बड़े स्तर पर दल बदल करवाया गया.
वहां पर भाजपा के विचारधारा काम नहीं कर रहे इसलिए वो साम-दाम-दंड-भेद सभी प्रकार के तरीके अपना रही है.
उसके बल पर एक ओर वो अपना जनाआधार बना रही है तो दूसरी तरफ प्रतिद्वंद्वी दल कांग्रेस का सफाया भी कर रही है.
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