नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि कि बागवानी क्षेत्र के विकास के लिएबहुत अच्छी संभावना है औरवर्तमान कार्यकलापों को अपस्केल करके उपलब्ध क्षमता के दोहन के लिए हमें ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है । श्री राधा मोहन सिंह ने यह बात आज नई दिल्ली में आयोजित कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की बैठक में कही।
श्री सिंह ने कहा कि इस सत्र मेंन सिर्फसमेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) यथा एनएचएम, एचएमएनइएच, सीडीबी, एनएबीएम, एनएचबी,सीआईएच उप-स्कीमों सहित बागवानी क्षेत्र की उपलब्धियों और बागवानी क्षेत्र मे आने वाली चुनौतियों पर विचार करेंगे बल्कि अनुसंधान संस्थानों, राज्य बागवानी मिशनों, आजीविका कार्यक्रमों और उद्यमियता के बीच अभिसरण सुनिश्चित करके भारत के खेत मैदानोंको परिवर्तित कर इस क्षेत्र कोविकास का मुख्य आधार बनाने के लिए रणनीतियों पर भी विचार करेंगे ।
कृषि मंत्री ने कहा कि देश में बागवानी क्षेत्र में फलों, सब्जियों और कंद फसलों, मशरुम, तराशे गए फूलों सहित सजावटी पौधों, मसालों, रोपण फसलों, औषधीय और सुगंधित पौधों की व्यापक किस्में शामिल हैं और यह क्षेत्र बहुत से राज्यों में आर्थिक विकास के लिए मुख्य आधार बन गया है।भारत वर्तमान में लगभग 24.4 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र से लगभग 286 मिलियन टन बागवानी उत्पादकों का उत्पादन कर रहा है जो फलों के कुल विश्व उत्पादन का लगभग 13 प्रतिशत है तथा आम, केला, पपीता,चीकू, अनार, नींबू तथा आंवला के उत्पादन में विश्व में अग्रणी है ।
श्री सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि भारत, चीन के बाद सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और मटर व भिण्डीजैसी फसलों के उत्पादन में अग्रणी है ।इसके अलावा भारत बैंगन, गोभी और प्याज के उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है और आलू व टमाटर के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है । समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के अंतर्गत संरक्षित खेती के तहत सब्जी उत्पादन पर विशेष बल दिया जा रहा है ।
कृषि मंत्री ने कहा कि बागवानी के अंतर्गत सफलता की बहुत सी कहानियां है उदाहरण के लिए महाराष्ट्रऔर तमिलनाडु में केला,छत्तीसगढ़ में अमरुद और टमाटर, गुजरात में अनार व आम,नागालैड में अनानास, अरुणाचल में किवी, सिक्किम में आरकिड और उत्तराखंड में बेमौसमीय सब्जियां आदि। खाद्य प्रसंस्करण,शीत श्रृंखला कृषि लाजिस्टिक, कृषि व्यापार, कृषि संबंधित सेवाएं, कृषि ऋण, बीमा और मूल्य श्रृंखला संबंधित सेवाओं का अनुपूरण करना इत्यादि प्रमुख चुनौतिया है ।
श्री सिंह ने कहा कि बागवानी के मामले में शीत श्रृंखला पूरी मूल्य श्रृंखला प्रणाली को मजबूत करती है और किसानों का सामाजिक-आर्थिक सुधार करती है । किसानों की आय को दोगुणा करने के लिए शीत श्रृंखला यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि किसान लाभप्रद आर्थिक उत्पादकता के लिए उत्पाद मूल्य प्राप्त कर सकें । प्रशिक्षित और कुशल श्रम के विकास और स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों के अनुकूल गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री की उपलब्धता को सुनिश्चित करना भी अनिवार्य है । मानव संसाधन विकास के लिए किसानों,बागवानी उद्यमियों/पर्यवेक्षकों और क्षेत्र कर्मियों के क्षमता निर्माण के लिए बल दिये जाने की आवश्यकता है ।
श्री सिंह ने कहा कि रोपण सामग्री की आपूर्ति और किसानों के लिए प्रौद्योगिकी प्रसार हेतु हब के रुप में कार्य करने के लिए प्रत्येक राज्य में फसल आधारित उत्कृष्टता केन्द्रों (सेंटर ऑफ एक्सलेन्स) की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है । अब तक इंडो-इजरायल सहयोग से 27 उत्कृष्टता केन्द्रों की स्थापना की गई है और अन्य देशों के सहयोग से ओर केन्द्रों को खोलने की प्रक्रिया जारी है ।
कृषि मंत्री ने उम्मीद जताई, कि अंतरसत्रीय परामर्शदात्री समिति के विचार-विमर्श से बागवानी द्वारा किसानों के आजिविकों विकल्पो के सुधार, कृषि के विविधीकरण और किसानों को अधिक आय सुनिश्चित करने मे मदद मिलेगी ।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री, श्री परषोत्तम रुपाला, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री, सुदर्शन भगत, संसद सदस्यों, श्री चिंतामण नवशा वनागा (लोकसभा), श्रीमती कमला देवी पटेल (लोकसभा), श्री मनशंकर निनामा (लोकसभा), श्री कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल (लोकसभा), श्री रोडमल नागर (लोकसभा), श्री संजय शामराव धोत्रे (लोकसभा), श्री सुमेधानंद सरस्वती (लोकसभा) और डॉ तापस मंडल (लोकसभा) ने परामर्शदात्री समिति की अन्तरसत्रीय बैठक में हिस्सा लिया
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