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बैंक यूनियन का दर्द,’नोटबंदी से कर्मचारियों पर पड़ी है भारी मार’

बैंक यूनियन का दर्द,'नोटबंदी से कर्मचारियों पर पड़ी है भारी मार'
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केंद्र सरकार की ओर से पिछले साल नवंबर में लिए गए नोटबंदी के फैसले से बैंक कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ने के चलते उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. वहीं, कस्टमर्स को अपने पैसे निकालने और जमा करने के लिए बैंकों के काउंटरों के सामने घंटों कतारों में इंतजार करने पड़ते थे, जिससे बैंककर्मियों को उनका गुस्सा भी झेलना पड़ता था.

बैंक कर्मचारी संघ की माने तो 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने जो 500 और 1000 रुपये के नोटों पर बैन लगाया था यानी दोनों ही मूल्य के नोटों को चलन से बाहर करने का जो फैसला था उससे सबसे ज्यादा प्रभावित बैंक कर्मचारी ही हुए थे.

AIBEA ने क्या कहा?

ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन (AIBEA) के महासचिव संजय दास ने कहा कि नोटबंदी से पहले बैंक कर्मचारी नॉन प्रॉफिक एसेट की वसूली के लिए जद्दोजहद कर रहे थे लेकिन नोटबंदी की घोषणा के बाद उनको अपनी पूरी ताकत कस्टमर सर्विस में झोंकनी पड़ गई और वो दिन-रात जुटकर कस्टमर्स की रकम जमा करने लगे. बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के मुताबिक नोटबंदी के दौरान हुई अव्यवस्था के चलते 100 से ज्यादा लोगों की जानें गईं, जिनमें 10 बैंक कर्मचारी और अधिकारी भी थे.

दास ने बताया कि कर्मचारियों से एक्स्ट्रा काम करवाया गया लेकिन बहुत कम लोगों को इसके लिए भुगतान किया गया. तकरीबन 50 फीसद कर्मचारियों को अब तक नोटबंदी के दौरान किए एक्स्ट्रा कामों के लिए भुगतान नहीं मिला है.

‘बैंकरों को नुकसान पहुंचा है’

AIBEA के महासचिव सीएच वेंकटचलम के मुताबिक नोटबंदी के दौरान जो अनुभव हुआ उससे बैंकरों के धक्का लगा है. उन्होंने बताया कि लाखों कर्मचारी बैंकों की शाखाओं में रकम जमा करवाने पहुंचने वाले करोड़ों लोगों को सेवा दे रहे थे जो एक कठिन काम था.

उन्होंने कहा कि बैकरों को आम लोगों ने ये कहकर प्रताड़ित किया कि वो उन्हें नए नोट न देकर दूसरे रास्ते से दूसरे लोगों को बांट रहे हैं. उसमें भी RBI ने तो यS कहकर उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी कि बैंकों को पर्याप्त नए नोट मुहैया करवा दिए गए हैं. बैंक मैनेजमेंट को शाखा के अधिकारियों की समस्याओं की कोई परवाह नहीं थी. RBI ने तो बैंकरों को दिन-रात काम पर लगा दिया.

‘एटीएम रिकैलिब्रेशन की भरपाई भी नहीं’

भारतीय बैंक कर्मचारी महासंघ के महासचिव प्रदीप विस्वास ने बताया कि कर्मचारी को ही नहीं बैंकों को भी सरकार की ओर से एटीएम के रिकैलिब्रेशन यानी एटीएम मशीन में किए गए तकनीकी परिवर्तन पर आए खर्च की भरपाई नहीं की गई है. नोटबंदी की आलोचना करते हुए विस्वास ने इस बात पर संदेह जताया कि कालाधन बरामद करने के लिए ये सब किया गया था. RBI ने अपनी सालाना रिपोर्ट में जाहिर किया है कि नोटबंदी के बाद 15.28 लाख करोड़ रुपये सिस्टम में वापस आए जोकि रद्द किए गए 15.44 लाख करोड़ रुपये का 99 फीसदी हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नोटबंदी कालेधन को सफेद करने की कोई योजना थी? विस्वास ने इसपर हैरानी जताई. उन्होंने कहा कि सरकार का ये दावा कि नोटबंदी से आतंकियों की फंडिंग और जाली नोट पर रोक लगी है, उसमें भी दम नहीं है.

दास ने कालेधन की अर्थव्यवस्था पर लगाम लगाने के मकसद से अमल में लाई गई नोटबंदी की योजना को नाकाम करार दिया और कहा कि इससे बैंकिग का क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है. उन्होंने बताया कि इससे बैंक के रोजाना कामकाज पर असर पड़ा है और बैंक अधिकारी क्रेडिट डिस्बर्समेंट पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. उन्होंने जानकारी दी कि बैंक क्रेडिट में बढ़ोतरी की दर 2016-2017 में घटकर 5.1 फीसदी आ गई, जोकि पिछले साल औसत 11.72 फीसदी थी.

‘अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा’

कुछ वरिष्ठ बैंक अधिकारी यूनियनों की इस बात से सहमत नहीं हैं कि नोटबंदी से लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. पंजाब नेशनल बैंक के कार्यकारी निदेशक संजीव शरण का कहना है कि अभी लोग शिकायत कर रहे हैं लेकिन एक बात साफ है कि भारी मात्रा में नोट चलन में आ चुके हैं.

उन्होंने कहा कि एक साल बीत चुका है अब आर्थिक दशाओं में सुधार होगा और कम लागत की हाउसिंग स्कीम, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर सरकार के जोर देने पर साख मांग में तेजी आएगी. शरण ने कहा कि अभी लगता है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है लेकिन लंबी अवधि में इसके फायदे देखने को मिलेंगे.

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