भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने आज राजस्थान में किशनगढ़ हवाई अड्डे पर गगन (जीपीएस एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन) आधारित एलपीवी संचालन प्रक्रियाओं का उपयोग करके सफलतापूर्वक हल्का परीक्षण किया। यह सफल परीक्षण भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र के इतिहास में एयर नेविगेशन सर्विसेज (एएनएस) के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि और प्रमुख मील का पत्थर है। भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र का ऐसा पहला देश बन गया है जिसने इस तरह की उपलब्धि हासिल की है।
एलपीवी (लोकलाइजेशन परफॉर्मेंस विद वर्टिकल गाइडेंस) विमान निर्देशित पद्धति की अनुमति देता है जो जमीन आधारित उड़ान संबंधी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता के बिना परिचालन रूप से कैट-आईआईएलएस के बराबर है। यह सेवा इसरो द्वारा शुरू किए गए जीपीएस और गगन भू-स्थिर उपग्रहों (जीसैट-8, जीसैट-10 और जीसैट-15) की उपलब्धता पर निर्भर करती है।
गगन एक भारतीय उपग्रह आधारित संवर्धन प्रणाली (एसबीएएस) है जिसे एएआई और इसरो ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। यह भूमध्यरेखीय क्षेत्र में भारत और इसके पड़ोसी देशों के लिए विकसित इस तरह की पहली प्रणाली है। गगन सिस्टम को डीजीसीए ने 2015 में एप्रोच विद वर्टिकल गाइडेंस (एपीवी 1) और एन-रूट (आरएनपी 0.1) संचालन के लिए प्रमाणित किया था। भारत (जीएजीएएन-गगन), अमेरिका (डब्ल्यूएएएस), यूरोप (ईजीएनओएस) और जापान (एमएसएएस) नाम से दुनिया में केवल चार अंतरिक्ष-आधारित संवर्धन प्रणालियां उपलब्ध हैं। भूमध्यरेखीय क्षेत्र में भारत और पड़ोसी देशों के लिए विकसित गगन ऐसी पहली प्रणाली है।
इंडिगो एयरलाइंस ने अपने एटीआर विमान का उपयोग करते हुए गगन सेवा के जरिए 250 फीट के एलपीवी मिनिमा के साथ एक इंस्ट्रूमेंट एप्रोच प्रोसीजर (आईएपी) उड़ाया है। राजस्थान के किशनगढ़ हवाई अड्डे पर यह परीक्षण प्रारंभिक गगन एलपीवी उड़ान परीक्षणों के हिस्से के रूप में डीजीसीए टीम की देख-रेख में किया गया था। डीजीसीए की अंतिम मंजूरी के बाद, वाणिज्यिक उड़ानों के उपयोग के लिए यह प्रक्रिया उपलब्ध होगी।
एलपीवी एक उपग्रह आधारित प्रक्रिया है जिसका उपयोग विमान ने आज किशनगढ़ हवाई अड्डे (राजस्थान) पर उतरने के उद्देश्य से किया है। एलपीवी पद्धति से उन हवाई अड्डों पर उतरना संभव हो जाएगा जहां विमान उतारने की महंगी प्रणाली (इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम) नहीं हैं, इसमें कई छोटे क्षेत्रीय और स्थानीय हवाई अड्डे शामिल हैं। विमान उतारने का फैसला लेने की 250 फीट तक की ऊंचाई खराब मौसम और कम दृश्यता की स्थिति में परिचालन का पर्याप्त लाभ प्रदान करती है। इस प्रकार, कोई भी हवाई अड्डा जिसे अब तक उच्च दृश्यता मिनिमा की आवश्यकता होगी, वह ऐसे विमान को स्वीकार करने में सक्षम होगा जो दूरस्थ हवाई अड्डों को लाभान्वित करता है और सटीक क्षमता वाले उपकरणों से रहित हैं।
गगन आधारित एलपीवी उपकरण पद्धति प्रक्रियाओं के विकास के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) के तहत आने वाले हवाई अड्डों सहित कई अन्य हवाई अड्डों का सर्वेक्षण किया जा रहा है ताकि लैंडिंग के दौरान बेहतर सुरक्षा, ईंधन की खपत में कमी, देरी, दिशा में बदलाव, और रद्दीकरण आदि में कमी लाने के लिए उपयुक्त रूप से सुसज्जित विमान अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) के समन्वय में एएआई ने गगन संदेश सेवा (जीएमएस) लागू की है जिसके माध्यम से बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में मछुआरों, और आपदा प्रभावित लोगों को अलर्ट संदेश भेजे जाएंगे। रेलवे, सर्वेक्षण, कृषि, बिजली क्षेत्र, खनन आदि जैसे गैर-विमानन क्षेत्र में गगन का उपयोग करने के लिए इसकी अतिरिक्त क्षमताओं का भी पता लगाया जा रहा है।
गगन प्रक्रियाओं के डिजाइन के लिए हवाईअड्डे के पर्यावरण परिवेश और सतही बाधाओं के सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण की आवश्यकता होती है। ये डेटा जटिल विमान पद्धति युद्धाभ्यास के साथ सहसंबद्ध हैं और डिजाइन की गई प्रक्रिया की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसे एक सॉफ्टवेयर में लगाया गया है। इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम की मदद के बिना लैंडिंग के लिए इन प्रक्रियाओं को भारत के किसी भी हवाई अड्डे के लिए विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार की प्रक्रियाएं विमान को कम दृश्यता की स्थिति में लगभग श्रेणी -1 इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) के बराबर बनाती हैं। वर्तमान में इंडिगो (35), स्पाइसजेट (21), एयर इंडिया (15), गो फर्स्ट (04), एयर एशिया (01) और अन्य एयरलाइंस के बेड़े में इन एलपीवी प्रक्रियाओं का उपयोग करने में सक्षम विमान हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने 22 ऐसी प्रक्रियाएं विकसित की हैं और संचालन के लिए कुछ वाणिज्यिक उड़ान डीजीसीए से अनुमोदन की प्रक्रिया में हैं। आत्म-निर्भर भारत की केंद्र सरकार की पहल के अनुरूप भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र को और अधिक आत्म-निर्भर बनाने के लिए सभी नागरिक हवाई अड्डों के लिए एलपीवी प्रक्रियाओं को विकसित किया जा रहा है।
एएआई भारत में इस तरह के तकनीकी विकास के जरिए हवाई संचालन (एयर नेविगेशन) सेवाओं की उपलब्धता,निरंतरता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही भारत एशिया का पहला देश बन गया है जिसके पास उपग्रह आधारित लैंडिंग प्रक्रिया है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण 2002 के बाद से गगन कार्यक्रम को डिजाइन और कार्यान्वित करने के लिए इसरो की ईमानदारी से सराहना करना चाहता है। डीजीसीए गगन के संचालन को सुनिश्चित करने में अत्यधिक सक्रिय था। एएआई किशनगढ़ में सुरक्षित उड़ान परीक्षण करने के लिए इंडिगो एयरलाइंस के सहयोग की भी सराहना करता है।